रोजाना 25 पैग ब्रांडी के पी जाते थे ये महाराजा, शेर से लड़वाते थे पालतू चीते

punjabkesari.in Sunday, Sep 08, 2019 - 12:50 PM (IST)

जालंधर। महाराजा रनबीर के नाम का पंजाब के संगरूर जिला के साथ इस कदर जुड़ा है कि यहां के कई संस्थान उनके नाम से चल रहे हैं। जींद रियासत के राजपरिवार से महाराजा रणबीर सिंह का जन्म 11 अक्टूबर 1879 में हुआ था और 31 मार्च 1948 को संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई थी। उन्होंने अपने दादा व पड़दादा के नक्शे कदम पर चलते हुए बेहतरीन ढंग से शासन चलाया व प्रशासकीय स्तर पर कई सुधार किए। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान संगरूर में हास्टल, हाई स्कूल, रणबीर स्केटिंग रिंक, लेडी मिंटो रणबीर ग‌र्ल्स स्कूल, महिलाओं का अस्पताल, रणबीर सिल्वर जुबली अनाथ आश्रम व वेटरनरी अस्पताल का निर्माण करवाया। उनकी निजी जिंदगी के शाही ठाठबाट के कई किस्सों का भी इतिहास के पन्नों में उल्लेख है। रजवाड़ों पर दीवान जरमनी दास की किताब में उनकी दिनचर्या का वर्णन किया गया है। किताब में लिखा है कि महाराजा शिकार और ब्रांडी के बहुत शौकीन थे। वह रोजाना 25 पैग ब्रांडी के पी जाते थे और एक समय ही भोजन करते थे। उन्हें अपने पालतू चीतों को शेरों से लड़वाने का भी शोक था।PunjabKesari 

पालतु चीतों का लड़वाते थे शेर के साथ    
दीवान जरमनी दास अपनी किताब "महाराजा" में लिखा है कि जब कभी वायसराय या दूसरे खास मेहमानों का आना होता, तब उनकी सहूलियत के लिहाज से महाराजा को अपना रोजाना का प्रोग्राम बदलना पड़ जाता। मजबूरी के ऐसे मौकों पर वे बड़े उदास हो जाते मगर शिकार का शौक होने की वजह से वे वक्त के मुताबिक अपने को संभाल लेते थे। चीते के शिकार में महाराजा खास दिलचस्पी रखते थे। अपने पालतू चीतों को शेर से लड़ाने में उनको बड़ा मजा आता। पिंजरों में बंद चीतों को जंगल में ले जाकर शेर का सामना करने को छोड़ दिया जाता। उनमें शाही जंग छिड़ जाती थी। हिरनों के झुंड पर हमला करने के लिए भी चीते छोड़े जाते थे। वे सीखे-सिखाए जानवर होते, इसलिए लड़ाई खत्म होते ही अपने-अपने पिंजरों में वापिस आ जाते थे।PunjabKesari

ऐसे बीत जाते थे साल के 130 दिन
जरमनी दास लिखते हैं कि साल के 365 दिनों में से 130 दिन तो महाराजा इसी तरह शिकार और जानवरों की लड़ाई में बिताते और बाकी दिन उनके दूसरे खेल-तमाशों में गुजर जाते। उनको कुत्ते पालने का भी शोक था। अच्छी से अच्छी नस्ल के सैंकड़ों कुत्ते उनके यहां पले हुए थे। कभी-कभी ऐसा होता कि महाराजा अपने रोजाना दस्तूर के खिलाफ सुबह 8 बजे ही सोकर उठ जाते और सुबह का नाश्ता करके सीधे करीब के जंगल में चले जाते जहां वे मुर्गाबी, तीतर, मोर, हरियल, वगैरह का शिकार करते। उस जंगल में ऐसी चिड़ियां बहुतायत से पाई जाती थीं। दोपहर होने पर महाराजा शिकार से वापस आते।

रियासत का इंतजाम चीफ मिनिस्टरों के हाथों में 
नहा-धो कर 1 बजे महाराजा खाना खाते और करीब 1 घंटा आराम करते। इसके बाद अपने यार-दोस्तों और महल के कुछ खास अफसरों के साथ फिर शिकार पर चले देते। वहां से 8 बजे रात में उनकी वापसी होती। इसके बाद रोज की तरह 11-12 बजे रात तक शराब का दौर चलता।  उनका बहाना रहता था कि डॉक्टरों ने उनकी सेहत के ख्याल से रात का खाना उनको मना कर रखा है। बहाने की जरूरत इसलिए आ पड़ती थी क्योंकि रात के वक्त महाराजा मेहमानों की दावतों में शामिल होने का सारा झंझट और तकल्लुफ झेलने की बजाय अपना 25 पैग ब्राण्डी पीने का रोजाना का प्रोग्राम जारी रखना पसंद करते थे। महाराजा का वक्त ज्यादातर सोने, ब्राण्डी पीने, ताश खेलने और शिकार करने में गुजरता था। रियासत का इंतजाम चीफ मिनिस्टरों के हाथों में रहता था जो ब्रिटिश वायसराय के लोगों के फरमांबरदार गुलाम हुआ करते थे। अंग्रेज वायसराय और पोलिटिकल डिपार्टमेंट की मर्जी और हुक्म के मुताबिक रियासत का इंतजाम चलता था।


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Suraj Thakur

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