जन्म के कुछ घंटों बाद मौत, कोरोना के डर से भागे मां-बाप, 65 दिन बाद हुआ अंतिम संस्कार

punjabkesari.in Friday, Dec 25, 2020 - 10:59 AM (IST)

चंडीगढ़ (अर्चना सेठी) : मां की कोख से जन्म लेने के कुछ घंटों बाद मौत की नींद सोए मासूम को 65 दिन बाद अंतिम संस्कार की मिट्टी नसीब हो सकी। कोरोना वायरस के खौफ से घबराए मां-बाप मासूम के शव को अस्पताल में ही छोड़ कहीं गायब हो गए थे। हालांकि नवजात की कोरोना जांच रिपोर्ट नैगेटिव थी। 

अस्पताल प्रशासन से लेकर चंडीगढ़ पुलिस ने मासूम के मां बाप को तलाशने की बहुत कोशिश की परंतु उनका पता भी गलत निकला। नवजात बच्चे की दोनों आंखें और दोनों किडनी का इस्तेमाल दूसरे पेशैंट्स को जीवन देने के लिए किया जा सकता था परंतु अस्पताल ने नवजात के अंगों को बचाने के लिए कोई जदोजहद ही नहीं की। जबकि पी.जी.आई. ने इससे पहले फरवरी के महीने में एक अन्य मामले में 68 घंटों के नवजात बच्चे की मौत के बाद उसकी दोनों किडनी 21 साल की महिला के शरीर में ट्रांसप्लांट कर उसे नया जीवन देकर पूरे देश में नया कीर्तिमान स्थापित किया था। 

सिर्फ इतना ही नहीं दिसंबर के महीने में ही 39 दिन की मासूम बच्ची की मौत के बाद उसकी दोनों किडनी एक किशोर उम्र के लड़के में ट्रांसप्लांट कर उसे नया जीवन दिया गया था।  पी.जी.आई. के डॉक्टरों की मानें तो जी.एम.सी.एच. में जन्मे और मौत के आगोश में सोए मासूम केअंगों का भी दूसरे पेशैंट्स को जीवनदान देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था।

मासूम को छोड़ गए मां-बाप
रोपड़ की सुषमा ने 20 अक्तूबर को जी.एम.सी.एच.-32 में एक बच्चे को जन्म दिया। जन्म के कुछ घंटों बाद बच्चे की मौत हो गई। डॉक्टरों ने बच्चे के पिता रामफल से कहा कि बच्चे का शव कोरोना जांच के बाद ही सौंपा जा सकता है। कोरोना का नाम सुनते ही बच्चे के मां बाप बच्चे को अस्पताल में ही छोड़कर वहां से नौ दो ग्यारह हो गए। बाद में बच्चे की कोरोना रिपोर्ट नैगेटिव आई और अस्पताल के डाक्टर्स समेत चंडीगढ़ पुलिस ने मासूम के अभिभावकों को ढूंढने की बहुत कोशिश की परंतु वे कहीं नहीं मिले और उनका पता भी गलत निकला। ऐसे में बच्चे का शव अस्पताल की मोर्चरी में ही पड़ा रहा। लावारिश शव को दफनाने के लिए स्वयंसेवी संगठन के मदन लाल वशिष्ट ने पुलिस विभाग से लगातार गुहार लगाते रहे परंतु बच्चे का शव संस्कार के लिए 65 दिन बाद ही मिल सका।

दूसरों के शरीर में रह सकता था मासूम जीवित
पी.जी.आई. के रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी के एच.ओ.डी. प्रो. आशीष शर्मा का कहना है कि एक दिन के इस बच्चे की मौत के बाद भी उसे दूसरों के शरीर में जीवित रखा जा सकता था। बच्चे के मां बाप अगर उसे छोड़कर चले गए थे तो अस्पताल प्रशासन भी उसके अंगों के ट्रांसप्लांट को लेकर फैसला ले सकता था। एक दिन के नवजात की किडनियां किसी दूसरे के शरीर में इस्तेमाल की जा सकती थी। पी.जी.आई. 68 घंटों के मासूम की किडनियां किसी पेशैंट में ट्रांसप्लांट कर चुका है। एक महीने तक नवजात की किडनियों का वही आकार रहता है। ये किडनियां दूसरे के शरीर में जाने के बाद एक साल के अंदर शरीर के अनुपात में बढ़ जाती हैं। 

उधर, पी.जी.आई. के पूर्व नेत्र रोग विशेषज्ञ प्रो.अशोक शर्मा का भी यही कहना है कि मासूम की दोनों आंखों से दो नेत्रहीनों के जीवन का अंधेरा दूर हो सकता था। नवजात की आंखों में बढ़ी उम्र के लोगों की तुलना में बड़ी संख्या में कोर्निया सैल्स होते हैं। बच्चे की मौत के छह घंटों तक आंखें निकाली जा सकती थी। सर्दी के दिनों में दस घंटों और कूलिंग चैंबर में 24 घंटों में आंखें निकाली जा सकती हैं। देश में हर साल नेत्रहीनों की संख्या में 25 हजार नए नेत्रहीन जुड़ जाते हैं ऐेसे में आंख जैसे अनमोल अंगों की महत्वता को समझना होगा।  


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Tania pathak

Recommended News

Related News