राजनीतिक उतार-चढ़ाव वाला रहा 2019,सत्तापक्ष और विपक्ष में चले आरोप-प्रत्यारोप के बाण

punjabkesari.in Tuesday, Dec 31, 2019 - 12:46 PM (IST)

जालंधरः पंजाब के लिए वर्ष 2019 राजनीतिक तौर पर काफी अहम रहा। पूरा साल राजनीतिक उतार-चढ़ाव के चलते सत्तापक्ष व विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर वर्ष के अंत तक खूब चला। इसी वर्ष के दौरान लोकसभा के आम चुनाव व उसके बाद 4 विधानसभा हलकों के उपचुनावों के अलावा हुए अन्य स्थानीय चुनावों में जहां कांग्रेस की विजय का सिलसिला बरकरार रहा, वहीं विपक्षी पार्टियां आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल के ग्राफ में गिरावट जारी रही। अकाली दल में लोकसभा चुनाव के दौरान सिर्फ सुखबीर और हरसिमरत की जोड़ी के अलावा विधानसभा उपचुनाव में 4 में से सिर्फ 1 सीट जीतने के अलावा दल को सफलता नहीं मिली। 

लोकसभा चुनाव में प्रमुख पार्टियों का पंजाब में ऐसा रहा प्रदर्शन

कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में पार्टी की देश के अन्य राज्यों में हुई दुर्गति के बावजूद पंजाब की 13 में से 8 सीटों पर जीत प्राप्त की। आम आदमी पार्टी 4 सीटों से सिमटकर 1 सीट ही जीत पाई और वह भी संगरूर से भगवंत मान अपने जनाधार के कारण जीते। भाजपा 2 लोकसभा सीटों पर विजय का आंकड़ा बरकरार रख पाई। इनमें गुरदासपुर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ को हराकर फिल्म स्टार सन्नी दिओल ने भाजपा की तरफ से अहम जीत दर्ज की। वर्ष के दौरान कै. अमरेंद्र सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू विवाद लंबा समय छाया रहा। 

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लौंगोवाल तीसरी बार बने एस.जी.पी.सी. अध्यक्ष

इसी वर्ष एस.जी.पी.सी. अध्यक्ष चुनाव में गोबिंद सिंह लौंगोवाल तीसरी बार विजयी हुए। बेशक इस वर्ष के दौरान चुनावी मैदान में कांग्रेस को बड़ी सफलताएं मिलीं परंतु नवम्बर माह में पार्टी में मुख्यमंत्री व सरकार के प्रति विधायकों की नाराजगी भी सामने आई। अकाली दल के सभी पदों से इस्तीफा देकर सक्रिय राजनीति से अलग होकर बैठे राज्यसभा सदस्य व वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींडसा द्वारा अकाली दल के स्थापना दिवस पर 14 दिसम्बर को शिरोमणि अकाली दल से अलग हुए अकाली दल टकसाली से हाथ मिलने से भी राजनीति में नया मोड़ आया। इसी वर्ष के दौरान करतार साहिब कॉरिडोर की स्थापना भी राज्य के लोगों के लिए एक बड़ी उपलब्धि रही।   

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 छाया रहा सिद्धू-कैप्टन विवाद 

2019 के राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच पंजाब में मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच छिड़ा विवाद खूब छाया रहा। कई माह तक यही विवाद सुॢखयों में रहा। लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान विवाद उस समय चरम सीमा पर पहुंचा जब नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेसी उम्मीदवार के पक्ष में हुई रैली में सार्वजनिक रूप से मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए बेअदबी मामलों में कार्रवाई न होने की बात करते हुए बादलों से मिलीभगत तक के आरोप लगा दिए। इसके बाद चुनाव परिणाम वाले दिन ही मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह ने सिद्धू के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसके बाद सिद्धू से स्थानीय निकाय विभाग लेकर कम महत्व वाला विभाग दिया गया। इस कार्रवाई से नाराज सिद्धू ने राहुल गांधी को इस्तीफा सौंप दिया और इसके सार्वजनिक होने पर मुख्यमंत्री द्वारा इसे स्वीकार कर लिया गया। इस्तीफा देने के 6 माह बाद भी अब सिद्धू ने सक्रिय राजनीति से अलग होकर चुप्पी साधी हुई है और वह अपने क्षेत्र अमृतसर तक सीमित हैं।

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कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ रही सरकार
  
वर्ष 2019 के दौरान राज्य का वित्तीय संकट भी चर्चा में रहा। नवम्बर माह में तो स्थिति ऐसी हो गई कि कर्मचारियों को वेतन देने की हालत में भी सरकार नहीं थी और किसी तरह जुगाड़ करके देरी से वेतन की अदायगी की गई। राज्य के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने खुद वित्तीय संकट की बात सार्वजनिक तौर पर कबूल की और केंद्र सरकार से सहायता की गुहार लगाई। वह खुद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मिले और राज्य की 4100 करोड़ रुपए की बकाया जी.एस.टी. राशि की अदायगी करने की मांग रखी। मनप्रीत ने केंद्रीय वित्त मंत्री को राज्य की वित्तीय हालत के बारे में बताते हुए तथ्यों की जानकारी देते हुए कहा कि राज्य में ओवरड्राफ्ट की स्थिति है और कर्मचारियों के वेतन की अदायगी तक में सरकार असमर्थ हो रही है। इसी वर्ष के अंत में केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा राज्य को 2228 करोड़ रुपए की बकाया जी.एस.टी. राशि देकर कुछ राहत देने का प्रयास किया गया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने तो सीधे तौर पर वित्तीय हालत के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहराते हुए प्रधानमंत्री के आवास के समक्ष धरना लगाने तक की राज्य सरकार को सलाह दे दी थी।

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विवादों में रही 6 सलाहकारों की नियुक्ति 
 
इसी वर्ष के दौरान पिछले समय में कुछ विधायकों की नाराजगी दूर करने के प्रयासों के तहत मुख्यमंत्री द्वारा 6 सलाहकार बनाए गए। इनमें विधायक कुलजीत नागरा, राजा वङ्क्षडग़, संगत सिंह गिलजियां, इंद्रबीर सिंह बुलारिया, तरसेम डी.सी. व कुशलदीप सिंह ढिल्लों शामिल हैं। विधायकों को मंत्री जैसी सुविधाएं देकर यह पद देने को लेकर अभी तक विवाद चल रहा है। विपक्ष इसे असंवैधानिक कदम बताकर सत्तापक्ष को घेर रहा है। उसका यह भी तर्क है कि एक तरफ राज्य वित्तीय एमरजैंसी की कगार पर है और दूसरी ओर बिना जरूरत के सलाहकार लगाकर फिजूलखर्ची की जा रही है जबकि मुख्यमंत्री के साथ पहले ही बड़ी संख्या में ओ.एस.डी. सियासी पोस्टों पर नियुक्त किए हुए हैं। बेशक सरकार ने विधानसभा में इन विधायकों को लाभ के पद से बाहर रखने का बिल पास करवा दिया परंतु राज्यपाल ने इसी माह के अंत में इस बिल को रोकते हुए सरकार को पत्र भेजकर स्पष्टीकरण मांगा है जो कि विधायकों को दिए जाने वाले वेतन व सुविधाओं के संबंध में है। यह मामला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में भी सुनवाई अधीन है।

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विधायकों की नाराजगी भी आई सामने 

वर्ष 2019 के आखिरी महीनों में अपनी ही सरकार के खिलाफ कांग्रेस विधायकों की नाराजगी भी खुलकर सामने आ गई। बेशक पहले भी कई विधायक व नेता किसी न किसी रूप में उनकी सरकार में सुनवाई न होने को लेकर नाराजगी जताते रहते थे परंतु नवम्बर माह में तो मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह के जिले पटियाला से संबंधित 4 विधायक हरदयाल सिंह कम्बोज, मदन लाल जलालपुर, राजिंद्र सिंह व निर्मल सिंह ही बगावत पर उतर आए। आखिरकार इन विधायकों के समर्थन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ को उतरकर शिकायतों का निपटारा करवाने का आश्वासन देकर मामले को शांत करना पड़ा। कांगे्रसी विधायक परगट सिंह अपनी ही सरकार की पंचायती जमीनों को बेचने की नीति के खुलकर विरोध में आ गए और कुछ दिन पहले ही चंडीगढ़ में कुछ जन संगठनों द्वारा रखी कांफ्रैंस में शामिल होकर अपने विचार रखे। राज्यसभा सदस्य व पूर्व प्रदेशाध्यक्ष शमशेर सिंह दूलो ने राज्य सरकार द्वारा बिजली दरों में की गई वृद्धि का सीधा विरोध करते हुए अपनी नाराजगी दिखाई है। इसी तरह कई अन्य विधायक व वरिष्ठ नेता भी वर्ष के अंत में किसी न किसी मुद्दे पर अपनी ही सरकार को निशाने पर लेते दिख रहे हैं।

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नशे खिलाफ शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार करने पर विधायक जीरा को देखना पड़ा बाहर का रास्ता
12 जनवरी को नवनिर्वाचित सरपंचों एवं पंचों के नशे के खिलाफ शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार करने वाले फिरोजपुर हलके से विधायक कुलबीर सिंह जीरा पर भी इस साल गाज गिरी। सरेआम अपनी सरकार पर सवाल उठाने वाले विधायक जीरा ने कहा था कि फिरोजपुर जिले में अवैध शराब की बिक्री के खिलाफ  कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। इसके बाद कांग्रेस से उन्हें सस्पैंड कर बाहर का रास्ता दिखाया गया। प्रदेश में पार्टी अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने उनकी सस्पैंशन का ऐलान किया था। उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था जिसमें वह अपना पक्ष स्पष्ट नहीं कर पाए। 

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जनसभाओं में अफसरों को धमकियां देते दिखे राजा वडिंग

गिद्दड़बाहा से विधायक और ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग भी अपने अटपटे बयानों के कारण चर्चा में रहे। लोकसभा चुनाव के दौरान फरीदकोट में चुनाव प्रचार दौरान उनका सबसे विवादित बयान था कि पंजाब सरकार द्वारा प्रदेश में इस तरह के श्मशानघाट बनाए जाएंगे कि 80 साल के बुजुर्गों का मन करेगा कि वे जल्द ही मर जाएं और श्मशानघाट में अंतिम संस्कार के लिए पहुंचें। इसके अलावा उन्होंने एक और विवादित बयान देते हुए जनसभा में ही अफसरों को धमकी भरे लहजे में बोला कि संभल जाओ ‘नहीं तां छित्तर वी खाओगे ते डांगां वी खाओगे’। लंबी में लगे किसानों के धरने को समाप्त करवाने के दौरान उन्होंने जल स्रोत विभाग के अबोहर स्थित कार्यकारी इंजीनियर को जूते खिलाने की बात कही थी। इसके अलावा उनका मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर दिया बयान भी चर्चा में रहा। इसमें उन्होंने कहा था कि ‘जिन मंत्रियों की कारगुजारी ठीक नहीं, उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर करो’। 

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सुखबीर-ढींडसा के बीच खिंची तलवारें 

वर्ष के अंत में शिअद के अध्यक्ष सुखबीर बादल और पार्टी के वरिष्ठ बागी नेता सुखेदव सिंह ढींडसा के बीच सियासी तलवारें पूरी तरह खिंच गई हैं। सुखबीर का साथ छोड़ कर दिसम्बर 2018 में अकाली दल टकसाली का गठन करने वाले वरिष्ठ अकाली नेताओं रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, सेवा सिंह सेखवां व डा. रतन सिंह अजनाला के साथ अब ढींडसा खुल कर सामने आ चुके हैं। अकाली दल 1920 के अध्यक्ष व वरिष्ठ अकाली नेता रविइंदर सिंह का भी उनको साथ मिला है। बेशक वह टकसाली दल में शामिल नहीं हुए परंतु सुखबीर बादल को अध्यक्ष पद से हटाने, शिअद व एस.जी.पी.सी. को बादल परिवार के कब्जे से मुक्त करवाने के एजैंडे को लेकर मिलकर कार्य कर रहे हैं।  उल्लेखनीय है कि शिरोमणि अकाली दल व टकसाली दल से अलग पंथक दलों का तीसरा फ्रंट भी सक्रिय है जिसमें मुख्य तौर पर सिमरनजीत सिंह मान के नेतृत्व वाले अकाली दल (अमृतसर), दल खालसा व यूनाइटेड अकाली दल शामिल हैं। गर्मदलीय नेताओं के इस फ्रंट का मुख्य लक्ष्य अलग खालसा राज की स्थापना करना है और इन्होंने दोनों दलों से अलग चंडीगढ़ में अकाली दल (अमृतसर) के नेतृत्व में स्थापना दिवस मनाया।

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मजीठिया व रंधावा में टकराव

पटियाला  जेल में बंद  गैंगस्टर जग्गू भगवानपुरिया को लेकर भी वर्ष 2019 के आखिरी महीनों में पूर्व अकाली मंत्री बिक्रम मजीठिया व जेल मंत्री सुखजिंद्र रंधावा के बीच टकराव रहा। मामला नवम्बर के दौरान गुरदासपुर के अकाली नेता दलबीर सिंह ढिलवां की हत्या के बाद बढ़ा। मजीठिया ने इसके पीछे रंधावा का हाथ होने के आरोप लगाए।  जहां मजीठिया ने मंत्री रंधावा पर गैंगस्टर जग्गू भगवानपुरिया को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए कई तस्वीरें पेश कीं, वहीं रंधावा ने मजीठिया व अन्य बड़े अकाली नेताओं पर पलटवार करते हुए उलटा उन पर ही गैंगस्टर जग्गू से संबंध होने के आरोप लगाए हैं। रंधावा ने सुखबीर बादल के अलावा प्रकाश सिंह बादल व मजीठिया के साथ गैंगस्टर जग्गू की तस्वीरें भी मीडिया में पेश की हैं। अब तो वर्ष के अंत में विवाद इतना बढ़ चुका है कि मजीठिया ने आरोप लगाया है कि जग्गू ने उसे खत्म करने के लिए जेल से पत्र भेजा है।

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वित्त मंत्री मनप्रीत की कारगुजारी पर सवाल उठा चर्चा में आए बिट्टू

लुधियाना से कांग्रेसी सांसद रवनीत सिंह बिट्टू भी वित्त मंत्री मनप्रीत बादल पर टिप्पणी कर चर्चा में रहे। बङ्क्षठडा में सांसद बिट्टू ने कहा था कि प्रदेश कांग्रेस की गलत छवि के लिए मनप्रीत बादल जिम्मेदार हैं, जो अपनी ड्यूटी सही ढंग से नहीं निभा सके। विधायक या अधिकारी कांग्रेसी वर्करों के काम नहीं कर रहे। अगर हर विधायक या विभाग को पर्याप्त फंड मिले होते तो वर्कर व विधायक लोगों के काम करवा सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका क्योंकि वित्त मंत्री की ओर से फंडों का प्रबंध नहीं किया गया। बिट्टू ने वित्त मंत्री को सलाह दी थी कि जरूरत पडऩे पर उन्हें 4-5 हजार करोड़ का कर्ज भी ले लेना चाहिए, ताकि कोई काम न रुके।    प्रस्तुति-गुरउपदेश भुल्लर/रमनजीत

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