आसान है प्रदूषण फैलाकर पैसा कमाना, मुश्किल है पैसे से पर्यावरण बचाना

punjabkesari.in Wednesday, Feb 05, 2020 - 09:41 AM (IST)

जालंधर(सूरज ठाकुर): केंद्र सरकार को इस वित्तीय वर्ष में वायु प्रदूषण पर काबू पाने के लिए यदि 4400 करोड़ के बजट का प्रावधान करना पड़ा है तो इस बात का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है कि देश में पर्यावरण पर संकट के बादल किस हद तक मंडरा रहे हैं। केंद्र सरकार ने 2019-20 के बजट में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 460 करोड़ का बजट रखा था जिसे इस बार 10 गुना अधिक करना पड़ा है। हैरत की बात तो यह है कि पिछले बजट की राज्यों को अभी तक 38 फीसदी ही राशि जारी हो पाई है। ऐसे में नए बजट की राशि राज्य सरकारों तक पहुंच पाएगी या नहीं यह अपने आप में बड़ा सवाल है। पर्यावरणविदों की मानें तो प्रदूषण फैलाकर पैसा कमाना आसान है जबकि पैसे से इसकी भरपाई करना मुश्किल है। मतलब जब पर्यावरण ही नहीं रहेगा तो पैसों से जीवन नहीं खरीदा जा सकेगा।

हर साल मरते हैं 10 लाख भारतीय, हर 3 मिनट में एक बच्चे की मौत
वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, तापीय प्रदूषण, विकिरण प्रदूषण और न जाने कितने ही तरीकों से पर्यावरण से देश में छेडख़ानी की जा रही है। हालात ये हैं कि विकास के नाम पर जंगलों को काटा जा रहा है। नदियां और समुद्र निरंतर दूषित हो रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि वायु प्रदूषण से होने वाली प्रमुख 10 बीमारियों में से एक की वजह से भारत में हर 3 मिनट में एक बच्चे की मौत हो रही है। आंकड़ों से एक तस्वीर तो साफ  है कि देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में लोग मौत के मुहाने पर खड़े हैं। हर साल वायु प्रदूषण के कारण 10 लाख से ज्यादा भारतीय मारे जाते हैं और दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से कुछ शहर भारत में हैं।

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क्या पर्याप्त है 4400 करोड़ का बजट
शहरों की आबोहवा सुधारने के लिए शुरू किए गए राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम (एन.ए.सी.पी.) की बात करें तो इसके तहत 2019 में पी.एम. 2.5 और पी.एम. 10 के मापदंडों को पूरा न करने वाले 122 शहरों की पहचान की गई थी। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत शहरों की आबादी 10 लाख से कम है जबकि अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा है कि 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले नगरों में स्वच्छ हवा ङ्क्षचता का विषय है। सरकार उन राज्यों को प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव करती है जो 10 लाख से अधिक आबादी वाले नगरों में स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं बना रहे हैं और उन्हें कार्यान्वित कर रहे हैं। इस प्रोत्साहन के मानदंड पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किए जाएंगे।  यदि केंद्र सरकार अपने ऐलान के मुताबिक ही बजट की राशि मुहैया करवाती है तो 122 में से 70 फीसदी शहर बजट का फायदा नहीं उठा पाएंगे। इसका फायदा बेंगलूर, दिल्ली, कोलकाता और मुम्बई जैसे महानगरों को ही मिलेगा जबकि वर्ष 2024 तक देश के कम से कम 102 शहरों में 20-30 प्रतिशत वायु प्रदूषण कम करने का लक्ष्य रखा गया है।

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कहां गया पिछले बजट का 460 करोड़
अब जिक्र करते हैं वायु प्रदूषण पर 102 शहरों पर खर्च होने वाले 460 करोड़ रुपए के उस बजट का जो 2019-2020 में जारी हुआ था। आर.टी.आई. कानून के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार करीब 16 राज्यों को महज 38 फीसदी राशि जारी हो पाई है। दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद समेत 12 शहरों को फिलहाल कोई राशि नहीं मिली है। हंसिका सिंह की आर.टी.आई. पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 1 जनवरी, 2020 को दिए अपने जवाब में कहा कि 90 शहरों को 172 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई है। इन शहरों से मिले प्रस्तावों के आधार पर यह राशि जारी की गई है जो प्रस्तावित राशि का करीब 60 फीसदी है। यानी राज्यों की तरफ  से प्रस्ताव करीब 290 करोड़ के आए हैं। इस राशि से 90 शहरों में प्रदूषण से निपटने के लिए कार्य शुरू हो गया है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जरिए यह कार्य किया जा रहा है।

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क्या कहती है ग्रीन पीस इंडिया की ताजा रिपोर्ट
हाल ही में ग्रीन पीस इंडिया द्वारा जारी एयरपोकैलिप्स रिपोर्ट के मुताबिक 231 भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण का उच्च स्तर बरकरार है। इन शहरों में पी.एम.-10 की मात्रा तय राष्ट्रीय मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कहीं ज्यादा दर्ज की गई। इस रिपोर्ट को 287 शहरों के 52 दिनों से अधिक के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया गया। रिपोर्ट कहती है कि कोयला खदानों के लिए मशहूर झारखंड का झरिया सबसे प्रदूषित शहर है। पिछले 2 वर्षों की तुलना में दिल्ली के वायु प्रदूषण की स्थिति में सुधार हुआ है। इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली भारत का 10वां सबसे प्रदूषित शहर है। मिजोरम के लुंगलेई में सबसे कम वायु प्रदूषण पाया गया। क्लाईमेट ट्रैंड्स की निदेशक आरती खोसला कहती हैं कि वायु गुणवत्ता के प्रबंधन के लिए आबंटित बजट का ठीक से इस्तेमाल नहीं किया गया तो इसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलेगा। उनका कहना है कि वायु प्रदूषण एक जटिल विषय है। वह उम्मीद जताती हैं कि बढ़े बजट से राज्यों में सहयोगात्मक बेहतर तंत्र बनेगा। 


 

राज्य 2019-20 में कितनी राशि जारी    (रुपए में)
महराष्ट्र (17 शहर)    25.20 करोड़
ओडिशा (5 शहर)  6.18 करोड़
पंजाब (9 शहर)   12.48 करोड़
राजस्थान (5 शहर)   18.12 करोड़
आंध्र प्रदेश (4 शहर)  6.24 करोड़
तेलंगाना (3 शहर)    6.12 करोड़
चंडीगढ़     6 करोड़
छत्तीसगढ़ 12.06 करोड़
गुजरात  (2 शहर)   12 करोड़
हिमाचल (4 शहर)    24 लाख
जम्मू    12 लाख
कर्नाटक (4 शहर)  6.30 करोड़
मध्य प्रदेश (6 शहर)     12.36 करोड़
पश्चिम बंगाल (एक शहर)     6 करोड़
असम  (5 शहर)  36 लाख
नागालैंड (दो शहर) 12 लाख

 


   
 
 
  




  


  
    


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