पंजाब के Medical Store के मालिक जरा बचकर! आप भी तो नहीं कर रहे कहीं ऐसा
punjabkesari.in Saturday, Sep 20, 2025 - 04:38 PM (IST)

जालंधर (कशिश) : शहर के गल्लियों और मोहल्लों में खुले कई मेडिकल स्टोर अब महज दवा बेचने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि खुद को डॉक्टर साबित करने की होड़ में मरीजों की जिंदगी से खेल रहे हैं। छोटी-मोटी बीमारी हो या कोई गंभीर परेशानी, इन स्टोरों पर बैठा विक्रेता आत्मविश्वास से कहता है – “दो खुराक खा लो, आप बिल्कुल ठीक हो जाओगे।” आमतौर पर 2 से 10 रुपए की साधारण दवाइयों को पैकेट बनाकर 100 से 200 रुपए तक बेचा जाता है। न तो इन दवाओं की क्वालिटी जांची जाती है और न ही मरीज की असली समस्या समझी जाती है। चौंकाने वाली बात यह है कि पढ़ें-लिखे लोग भी समय और पैसे बचाने के चक्कर में ऐसे मेडिकल स्टोरों से ही दवाइयां ले रहे हैं। लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं कि ये गोलियां उनके परिवार की सेहत पर कितना खतरनाक असर डाल सकती हैं।
बिना पर्ची के नशे की दवाइयां
स्थिति और भी गंभीर तब हो जाती है जब यही मेडिकल स्टोर नशे में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां भी बिना किसी डॉक्टर की पर्ची के बेच रहे हैं। ट्रामाडोल, ए्लप्रैक्स, लुप्रास, कोडीन सिरप जैसी दवाइयां नशेड़ियों के लिए आसानी से उपलब्ध हैं। मोहल्लों में रहने वाले लोग बताते हैं कि कई युवक हर रोज़ ऐसे स्टोरों से नशे की गोलियां लेने जाते हैं। एक निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया – “हमारी गली में एक मेडिकल स्टोर है जहां हर समय युवक आते-जाते रहते हैं। ये सब कोई साधारण दवा लेने नहीं आते, बल्कि नशे की गोलियाँ ही उठाते हैं। पुलिस भी जानती है लेकिन कार्रवाई नहीं होती।”
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
सबसे हैरानी की बात यह है कि शहर में जगह-जगह हो रहे इस गोरखधंधे पर प्रशासन की चुप्पी बनी हुई है। स्वास्थ्य विभाग और ड्रग इंस्पेक्शन टीम समय-समय पर जांच के दावे तो करती है, लेकिन गल्लियों-मोहल्लों में खुले इन छोटे मेडिकल स्टोरों पर शायद ही कभी छापा पड़ता है। सवाल उठता है कि जब ये दुकानें खुलेआम दवाइयां बिना पर्ची के बेच रही हैं, तो जिम्मेदार विभाग कार्रवाई क्यों नहीं करते? क्या यह मिलीभगत का नतीजा है या लापरवाही का?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी
डॉक्टरों का कहना है कि बिना पर्ची और बिना जांच के दवाइयां लेना सीधे तौर पर शरीर को नुकसान पहुंचाता है। सिविल अस्पताल जालंधर के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया – “अक्सर मरीज हमें तब दिखाने आते हैं जब गलत दवा खाने से उनकी हालत और बिगड़ जाती है। पेनकिलर या एंटीबायोटिक बेवजह खाने से लीवर और किडनी पर गहरा असर पड़ता है। वहीं, नींद की दवाइयां और ट्रामाडोल जैसी दवाइयाँ धीरे-धीरे लत बन जाती हैं, जो नशे की ओर धकेलती हैं।”
आम जनता की परेशानी
मोहल्लों के लोग भी इस समस्या से परेशान हैं। कई जगह अभिभावक शिकायत करते हैं कि उनके बच्चे मेडिकल स्टोरों से आसानी से नशे की दवाइयां खरीद लेते हैं।
समाज में फैल रहा खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ स्वास्थ्य का नहीं बल्कि समाज का भी गंभीर मुद्दा है। सस्ती और आसानी से मिलने वाली नशे की दवाइयाँ युवाओं को अपराध की ओर धकेल रही हैं। कई बार चोरी-डकैती जैसी घटनाओं के पीछे भी नशे की लत ही सामने आती है।
कानून क्या कहता है?
ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट और एनडीपीएस एक्ट के तहत बिना डॉक्टर की पर्ची के नशे में इस्तेमाल होने वाली दवाइयों की बिक्री सख्त अपराध है। दोषी पाए जाने पर दुकान का लाइसेंस रद्द होने के साथ-साथ जेल की सजा भी हो सकती है। लेकिन सवाल यह है कि जब कानून इतना सख्त है तो कार्रवाई क्यों नहीं होती?