पंजाब के विधायक भी नाराज परंतु ‘सिंधिया’ की कमी

punjabkesari.in Thursday, Mar 12, 2020 - 03:32 PM (IST)

टियाला/पठानकोट(राजेश/शारदा): मध्य प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरफ से अपने 22 विधायकों को साथ लेकर कांग्रेस से बगावत करने के बाद राजनीतिक गलियारों में राजस्थान व पंजाब कांग्रेस की राजनीति बारे चर्चा शुरू हो गई है। सिंधिया समर्थक विधायकों ने विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया है और खुद सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए हैं। राजनीतिक पंडित अंदाजा लगा रहे हैं कि मध्य प्रदेश में ‘ऑप्रेशन लॉटस’ सफल होने के बाद अब बारी राजस्थान व पंजाब की है।

राजस्थान में भाजपा व कांग्रेस के विधायकों की संख्या में ज्यादा अंतर नहीं है, जबकि पंजाब में भाजपा विधायकों की संख्या मात्र 2 है। राजस्थान में भाजपा का ऑप्रेशन लॉटस सफल हो सकता है क्योंकि वहां पर सिंधिया की तर्ज पर सचिन पायलट मौजूद हैं। इनके पास 3 दर्जन के करीब विधायक हैं परंतु पंजाब में भाजपा के पास नाममात्र विधायक हैं। ऐसे में ऑप्रेशन लॉटस यहां पर सफल होता दिखाई नहीं दे रहा है। पंजाब में 117 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 80 विधायक हैं, जिसके कारण मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह आनंद वाली राजनीति कर रहे हैं। बेशक 2 महीने पहले ही उनके अपने जिले के 4 विधायकों ने सरकार के खिलाफ बगावत की थी परंतु अब वे बिल्कुल शांत हो गए हैं और मुख्यमंत्री को खुश करने की कोशिश में लग गए हैं क्योंकि उन्हें आभास हो गया है कि उनका राजनीतिक अस्तित्व कैप्टन के खेमे में रहने के साथ ही है।

सूत्रों के मुताबिक पंजाब में कोई ऐसा कांग्रेसी नेता नहीं है, जिसके साथ एक दर्जन के करीब विधायक भी हों। यह अलग बात है कि अफसरशाही के हावी होने के चलते सभी विधायक दुखी हैं परंतु किसी के पास ‘सिंधिया’ जैसा नेता नहीं है। बेशक पूर्व पंजाब कांग्रेस प्रधान एवं राज्य सभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा व मौजूदा कांग्रेस प्रधान सुनील जाखड़ अपनी राजनीतिक हैसियत दिखाने के लिए समय-समय पर आवाज बुलंद करते हैं परंतु दोनों के पास समर्थक विधायकों की बेहद कमी है। बगावत करने वाले पटियाला के चारों विधायकों को जाखड़ का समर्थन प्राप्त था परंतु जब उन विधायकों को कैप्टन ने बुलाया तो वे बाग-बाग हो गए और सब कुछ भूल कर कैप्टन की ‘माला’ जपने लगे। 

प्रताप बाजवा के पास 3-4 विधायक भी नहीं हैं, जबकि सुनील जाखड़ खुद भी विधायक नहीं हैं। पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रधान व प्रत्येक कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके मंडी बोर्ड के चेयरमैन लाल सिंह के पास 8-10 विधायक हैं परंतु वह खुद विधायक नहीं हैं। लाल सिंह का रिकॉर्ड बताता है कि वह कभी भी कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ नहीं गए। पार्टी जिसे भी पंजाब का नेतृत्व सौंपती है लाल सिंह उसके साथ ही होते हैं। पंजाब कैबिनेट में होते हुए भी हमेशा कैप्टन सरकार के खिलाफ बोलने वाले सहकारिता व जेल मंत्री सुखजिन्द्र सिंह रंधावा एकमात्र ऐसे नेता हैं जोकि विधायकों को लामबंद कर सकते हैं, परंतु उनके पास इतनी संख्या नहीं है कि वह कैप्टन के खिलाफ बगावत कर सकें। 

जब नवजोत सिंह सिद्धू कैबिनेट मंत्री होते थे तो उस समय उनके पास विधायक जाने लग पड़े थे परंतु उनके मंत्रिमंडल से हटने के बाद 1-2 विधायक ही उनके साथ संबंध रखते हैं। कुल मिला कर पंजाब के कांग्रेसी विधायक बेहद दुविधाजनक स्थिति में हैं। वे सरकार से दुखी तो हैं परंतु उनके पास कोई विकल्प नहीं है। पंजाब कांग्रेस के किसी भी नेता के पास 2 दर्जन विधायक नहीं हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास 22 विधायक थे, जिसके कारण उनकी बगावत का मूल्य पड़ा है। अगर कोई कांग्रेसी नेता पंजाब में बगावत करता है तो वह राजनीतिक तौर पर अपनी आत्महत्या ही करेगा, जिसके कारण सभी चुप हैं और सब्र का घूंट पीने को विवश हैं। पंजाब में सिंधिया की कमी महसूस हो रही है।

मध्य प्रदेश प्रकरण से कैप्टन बेहद खुश
कांग्रेस का मध्य प्रदेश प्रकरण पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के लिए बेहद सुकून भरा है। नवजोत सिंह सिद्धू के सोनिया गांधी व प्रियंका गांधी से मिलने के बाद पंजाब में कई तरह की राजनीतिक अटकलें शुरू हो गई थीं। इस प्रकरण के बाद हाईकमान पर कैप्टन का दबदबा और बढ़ जाएगा। पहले ही कांग्रेस आलाकमान कैप्टन से घबराता है, इसी कारण हाईकमान नवजोत सिंह सिद्धू को फिर से पंजाब कैबिनेट में शामिल नहीं करवा सका। मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार पर संकट आने के बाद अब हाईकमान कैप्टन अमरेंद्र सिंह पर किसी भी तरह का दबाव बनाने से गुरेज करेगा क्योंकि हाईकमान को पता है कि पंजाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह की सरकार है कांग्रेस पार्टी की नहीं।


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