पंजाब में 13 में से 6 लोकसभा सीटें रैड जोन में आईं

punjabkesari.in Tuesday, May 07, 2019 - 11:52 AM (IST)

जालंधर (चोपड़ा): देशभर में अगर कांग्रेस के लिए चुनावों में जीत के लिए कोई श्रेष्ठ प्रदेश है तो वह है पंजाब, जहां से उसे सभी 13 सीटें जीतने की उम्मीद है। राज्य में चुनाव होने में अब 13 दिन बाकी रह गए हैं, मगर ये 13 दिन कांग्रेस के लिए अशुभ दिखाई दे रहे हैं क्योंकि राज्य में 5 ऐसी लोकसभा सीटें हैं जोकि ‘रैड जोन’ में हैं, जहां कांग्रेस को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से 5 में कांग्रेस को जीत हासिल करने के लिए अतिरिक्त जोर लगाना पड़ेगा। इन सीटों में बङ्क्षठडा, फिरोजपुर, गुरदासपुर, संगरूर, होशियारपुर व अमृतसर शामिल हैं। पार्टी को इस अवधारणा को लेकर चलना होगा कि कड़ा मुकाबला होने के कारण कांग्रेस इन सीटों को खो सकती है। इन 6 में से 2 लोकसभा हलकों में स्थिति बेहद खराब है जिनमें गुरदासपुर व बठिंडा शामिल हैं। 

पंजाब प्रदेश कांग्रेस के प्रधान सुनील जाखड़ गुरदासपुर से दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। वह तब तक बेहद सुखद स्थिति में थे जब तक भाजपा ने फिल्म अभिनेता सन्नी देओल को वहां से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया था। भाजपा का आकलन यह है कि सन्नी देओल के गुरदासपुर से चुनाव लडने का पड़ोसी निर्वाचन क्षेत्रों विशेषकर होशियारपुर व अमृतसर पर भी असर पड़ सकता है। 

राजनीतिक तौर पर सन्नी देओल का सुनील जाखड़ के साथ कोई मुकाबला नहीं है। विनोद खन्ना के गुरदासपुर से चुनाव लडऩे के बाद उक्त हलका भाजपा का एक गढ़ बन गया है। यहां तक कि कांग्रेसी नेता प्रताप सिंह बाजवा ने 2009 में डा. मनमोहन सिंह के पक्ष में राष्ट्रव्यापी लहर के दौरान विनोद खन्ना को मात्र 8000 के अंतर से हराया था। गुरदासपुर सीट कांग्रेस के लिए बेशक कठिन हो सकती है ,मगर पार्टी के लिए इस पर अपना कब्जा बरकरार रखना असंभव नहीं है। गुरदासपुर लोकसभा हलका के अंतर्गत आते 9 विधानसभा हलकों में से 7 पर कांग्रेस के विधायक काबिज हैं। अगर सभी विधायक एक साथ मिलकर काम करें तो कांग्रेस गुरदासपुर किला फतेह भी कर सकती है। 

फिरोजपुर व बठिंडा 2 सबसे बड़ी ‘हॉट सीट्स’ हैं और इन पर सभी राजनीतिक विशेषज्ञों की निगाहें टिकी हुई हैं। बठिंडा से हरसिमरत कौर बादल और फिरोजपुर से सुखबीर सिंह बादल अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। परम्परागत रूप से फिरोजपुर अकालियों का गढ़ रहा है। इसके साथ ही इस क्षेत्र में स्थानीय कांग्रेस नेताओं में शेर सिंह घुबाया को चुनाव मैदान में उतारने को लेकर भारी असंतोष व्याप्त है। घुबाया हाल ही में अकाली दल को अलविदा कह कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। यह असंतोष कांग्रेसी उम्मीदवार को भारी पड़ सकती है। 

बठिंडा को भी अकालियों का गढ़ समझा जाता है मगर बरगाड़ी कांड के बाद की स्थिति और अकाली दल सरकार के 10 वर्षों के सरकार विरोधी लहर व लोगों की भावनाओं के चलते यह सीट हरसिमरत बादल के लिए सुरक्षित नहीं रही। यहां चौकोनी मुकाबला है। ‘आप’ की बलविंद्र कौर और पीपुल डैमोक्रेटिक अलायंस के सुखपाल सिंह खैहरा मैदान में हैं जिस कारण बादल विरोधी वोटों के विभाजित होने की संभावना है, जिससे कांग्रेस उम्मीदवार अमरेंद्र सिंह राजा वडिंग के खिलाफ हरसिमरत कौर को लाभ मिल सकता है। अन्यथा राजा वडिंग कांग्रेस के लिए उपयुक्त उम्मीदवार साबित होंगे।संगरूर भी एक सीट है, जो कांग्रेस के लिए रैड जोन में आती है। यहां कांग्रेस के केवल सिंह ढिल्लों आम आदमी पार्टी के निवर्तमान सांसद भगवंत सिंह मान और अकाली दल-भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी परमिंद्र सिंह ढींडसा के बीच तिकोना मुकाबला है।
 
ढिल्लों पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह के बेहद करीबी हैं और कै. अमरेंद्र ने ही ढिल्लों को टिकट दिलाने में बड़ी भूमिका अदा की है इसलिए कै. अमरेंद्र को इस सीट पर जीत दिलाने को अधिक मेहनत करनी होगी। ढिल्लों ने पूर्व आई.पी.ए.सी. पेशेवरों की टीम की सेवाएं ली हैं जबकि भगवंत मान व परमिंद्र ढींडसा अपने खुद के समर्थकों के साथ कड़ी चुनौती दे रहे हैं। होशियारपुर में भी कांग्रेस के प्रत्याशी डा. राजकुमार चब्बेवाल व भाजपा के सोमप्रकाश के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है, क्योंकि कांग्रेस उम्मीदवार को कैप्टन अमरेंद्र सरकार के 2 वर्षों की सरकार विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही मतदाताओं के एक वर्ग में मोदी समर्थक भावनाएं भी जुड़ी हुई हैं। 

वहीं, अमृतसर से दूसरी बार चुनाव मैदान में उतरे गुरजीत सिंह औजला को भी केंद्रीय शहरी विकास व राज्य मंत्री हरदीप पुरी से कड़ी टक्कर मिल रही है। 1974 बैच के भारतीय विदेश सेवा अधिकारी रह चुके हरदीप पुरी जनता के बीच अमृतसर के विकास को लेकर डाटा बेस विजन पेश कर रहे हैं। शहरी वर्ग पुरी को खासा पसंद कर रहा है जबकि देहाती इलाकों में भी अकाली दल के प्रभाव के अलावा सन्नी देओल की लोकप्रियता को भाजपा अमृतसर में भुना सकती है। कांग्रेस के ज्यादातर विधायक गुरजीत औजला से नाराजगी के चलते उन्हें पुन: टिकट देने के पक्ष में नहीं थे। अगर पार्टी ने अमृतसर से पूरी एकजुटता का प्रदर्शन न किया तो अमृतसर की जीत की राह भी कांग्रेस के लिए कांटों से भरी साबित हो सकती है। ऐसा नहीं कि बाकी 7 सीटों पर कांग्रेस की जीत की डगर आसान होगी लेकिन इन 6 सीटों पर कांग्रेस को निश्चित रूप से कड़ा मुकाबला मिलेगा। 


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