कंसल्टेंट्स और स्मार्ट सिटी के यह अफसर जा सकते हैं सलाखों के पीछे
punjabkesari.in Monday, Jan 16, 2023 - 02:39 PM (IST)

जालंधर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्मार्ट सिटी मिशन के तहत जालंधर में सैकड़ों करोड़ रुपए के काम करवाए गए । पिछले 5 सालों दौरान स्मार्ट सिटी मिशन के तहत जालंधर स्मार्ट सिटी ने कुल 64 प्रोजैक्ट बनाए जिनमें से करीब 30 प्रोजेक्ट तो पूरे हो चुके हैं परंतु 34 प्रोजेक्ट अभी भी ऐसे हैं जो किसी न किसी कारण लटक रहे हैं। पिछले लंबे समय से लटक रहे इन प्रोजैक्टों के कारण जालंधर शहर के निवासी कई समस्याएं झेल रहे हैं जिस कारण न केवल पहले की कांग्रेस सरकार बल्कि इस समय की ‘आप’ सरकार को भी घोर आलोचना झेलनी पड़ रही है।
सभी राजनीतिक दलों के नेताओं की मांग पर आम आदमी पार्टी की सरकार ने करीब 6 महीने पहले जालंधर स्मार्ट सिटी द्वारा करवाए गए सभी प्रोजैक्टों की जांच का जिम्मा विजिलैंस ब्यूरो को सौंप दिया था परंतु कई कारणों की वजह से विजिलैंस ने इस जांच को ज्यादा महत्व नहीं दिया । कुछ महीनों बाद विजिलैंस ब्यूरो के जालंधर यूनिट के एस.एस.पी और डी.एस.पी का तबादला हो गया जिसके बाद आए नए अधिकारियों ने नए सिरे से स्मार्ट सिटी के कामों की जांच की।
पता चला है कि फिलहाल स्मार्ट सिटी के चुनिंदा प्रोजैक्टों संबंधी दस्तावेजों की जांच तेजी से चल रही है जिस दौरान कई गड़बड़ियां भी सामने आ रही हैं। विजिलैंस ब्यूरो ने पंजाब सरकार को पत्र लिखकर टेक्निकल टीमें मांग रखी हैं ताकि स्मार्ट सिटी के ठेकेदारों द्वारा किए गए घटिया कामों की जांच की जा सके। पता चला है कि पंजाब सरकार जल्द ही पी.डब्ल्यू.डी. विभाग पर आधारित टेक्निकल टीमों को जालंधर भेज सकती है जिसके बाद विजिलैंस टीम भी साइट पर जाकर जांच प्रारंभ करेगी।
डी.पी.आर. और टैंडरों के उल्ट जाकर करवाए गए कई काम
विजिलैंस ब्यूरो की दस्तावेजी जांच के दौरान जो बात प्रमुख रूप से उभर कर सामने आ रही है, उसके अनुसार स्मार्ट सिटी के विभिन्न प्रोजेक्टों की जो डी.पी.आर. बनी या टैंडर लगे, उनके उल्ट जाकर ही कई ऐसे काम करवाए गए जिनका उल्लेख ही डी.पी.आर. और टैंडर में कहीं नहीं था। 21 करोड़ रुपए के चौक सौंदर्यीकरण प्रोजैक्ट की बात करें तो शहर में दो स्थानों पर सड़क पार करने के लिए एस्केलेटर युक्त फुटओवर ब्रिज बनाने के एस्टीमेट डाल दिए गए जिन पर 6-7 करोड़ रुपए का खर्च आना था। बाद में एस्केलेटर की आइटम को फिजूल बता दिया गया। अब सवाल यह उठता है कि अगर जालंधर में सड़कों पर एस्केलेटर लगने ही नहीं थे तो फिर उन्हें डी.पी.आर. और टैंडर में शामिल क्यों किया गया। टैंडर में 11 चौराहे सौंदर्यीकरण के लिए लिए गए थे परंतु उनमें से 3 को डिलीट कर दिया गया और 8 चौराहों पर केवल 8 करोड़ रुपए खर्च हुए । यह 8 करोड़ रुपए भी इधर उधर की आइटमों इत्यादि पर ही खर्च कर दिए गए और चौराहों को लेकर साइट पर कोई भी काम नहीं किया गया जिस कारण किसी शहर निवासी को 8 करोड रुपए खर्च होते दिखाई ही नहीं दिए।
ऐसा स्कैंडल स्मार्ट सिटी के कई प्रोजैक्टों में हुआ। एल.ई.डी स्ट्रीट लाइट प्रोजैक्ट की बात करें तो उसमें केवल पुरानी लाइटों को बदलने का ही प्रावधान था परंतु कंपनी ने दस हजार से भी ज्यादा नई लाइटें न जाने कहां लगा दीं जिनका अब पता ही नहीं चल पा रहा है। वह लाइटें किस खाते में से लगवाई गई, इसे लेकर भी बड़ा स्कैंडल सामने आ रहा है। नहर के सौंदर्यीकरण संबंधी प्रोजैक्ट में भी काफी गड़बड़ी की गई। पहले नहर किनारे बनने वाले वाकिंग ट्रैक को मिट्टी का बना दिया गया परंतु बाद में उस पर टाइलें लगवा दी गई।
सलाखों के पीछे जा सकते हैं कुछ कंसल्टेंट्स और स्मार्ट सिटी के पूर्व अफसर
स्मार्ट सिटी मिशन वैसे तो पिछले 5-6 साल से चल रहा है परंतु इस मिशन के तहत ज्यादातर काम पिछले 3 सालों दौरान हुए। इस दौरान कई प्रमुख प्रोजैक्टों की डी.पी.आर. बनी और टैंडर लगाए गए परंतु हालात यह बन गए कि उस समय स्मार्ट सिटी में रहे अधिकारियों ने न केवल हर डी.पी.आर. और हर टैंडर को अपनी मनमर्जी से बदल डाला बल्कि ठेकेदारों से भी मनमर्जी के ही काम करवाए। क्वालिटी का कोई ध्यान नहीं रखा गया। न किसी ठेकेदार को नोटिस जारी हुआ, न उन्हें ब्लैक लिस्ट किया गया और ना ही किसी प्रकार का कोई जुर्माना ही लगाया गया। स्मार्ट सिटी के ज्यादातर प्रोजैक्ट गलत डिजाइनिंग और कंसल्टैंसी का शिकार हुए इसलिए माना जा रहा है कि आने वाले समय में विजिलैंस उन चुनिंदा कंसल्टैंट्स पर पर्चा दर्ज कर सकती है जिन्होंने गलत ढंग से प्रोजैक्ट तैयार किए।
इसका एक उदाहरण 120 फुट रोड पर बन रहे फुटपाथ हैं जो स्मार्ट रोड प्रोजैक्ट के तहत बनाए जा रहे हैं। इन फुटपाथों पर चढ़ने उतरने के लिए कोई ‘स्लोप’ नहीं दी गई और इन्हें 11 इंच ऊंचा बना दिया गया। यह फुटपाथ सड़क किनारे बनाने की बजाय सड़क के बीचो बीच बना दिए गए और हर दुकान हर मकान के आगे इन फुटपाथों में से कट दे दिया गया। अब ऐसे फुटपाथ किस कंसलटैंट ने तैयार और किस इंजीनियर ने डिजाइन किए, किस इंजीनियर ने अपनी निगरानी में यह काम करवाया, यह सब विजिलैंस की भी जांच का हिस्सा बनने जा रहा है।
पैसा केंद्र की भाजपा सरकार का, मौज कांग्रेसी विधायकों की लगी रही
पिछले 3 साल जालंधर स्मार्ट सिटी की कार्यप्रणाली पर यदि नजर दौड़ाई जाए तो साफ पता चलेगा कि जालंधर को स्मार्ट बनाने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार ने खुले दिल से करोड़ों रुपए पंजाब भेजे परंतु उन पैसों का इस्तेमाल जालंधर के कांग्रेसी विधायकों को खुश करने पर ही किया गया। स्मार्ट सिटी का ज्यादातर पैसा सड़कों, नालियों स्टॉर्म वॉटर सीवर, पार्कों, ग्रीन बेल्ट इत्यादि पर ही खर्च कर दिया गया जबकि यह सारे काम जालंधर निगम के पैसों से होने चाहिए थे। स्मार्ट सिटी की एल.ई.डी. स्ट्रीट लाइट प्रोजैक्ट कंपनी पर दबाव बनाकर हजारों स्ट्रीट लाइटें उस समय के विधायकों और पार्षदों के घर पहुंचा दी गई। इसी कारण अब मौजूदा अफसर एल.ई.डी. कंपनी को कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं।
इसी प्रकार पिछले 3 सालों दौरान स्मार्ट सिटी के करोड़ों रुपए के प्रोजैक्ट कुछ ऐसे ठेकेदारों को अलाट कर दिए गए जो यारी दोस्ती की श्रेणी में आते थे। इसी कारण माना जा रहा है कि दस्तावेजी जांच पूर्ण होते ही विजिलैंस ब्यूरो द्वारा जालंधर स्मार्ट सिटी में पिछले समय दौरान रहे अधिकारियों को भी तलब किया जा सकता है और उन पर केस तक दर्ज होने की संभावनाएं बन रही हैं। पिछले समय दौरान स्मार्ट सिटी में रहे अधिकारियों ने किसी प्रोजैक्ट में सामने आई गड़बड़ी की ओर भी कोई ध्यान क्यों नहीं दिया, इसकी जांच भी विजिलैंस द्वारा की जा रही है। पिछले समय दौरान रहे अधिकारियों ने तो पंजाब सरकार द्वारा भेजी गई थर्ड पार्टी एजेंसी की सिफारिशों को भी रद्दी की टोकरी में फैंक दिया था जिसके आधार पर अब मौजूदा अधिकारी स्मार्ट सिटी के प्रोजैक्टों की गड़बड़ियों को ठीक करवाने में लगे हुए हैं। खास बात यह है कि स्मार्ट सिटी में रहे कई अधिकारी अब या तो रिटायर हो चुके हैं या नौकरी छोड़ कर जा चुके हैं। कुछेक को तो नौकरी से निकालने तक की नौबत आई।
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