मिसालः इन बेटियों ने किया देश का नाम रोशन

punjabkesari.in Saturday, Jan 13, 2018 - 04:41 PM (IST)

लुधियाना(मीनू): आज लोहड़ी का त्यौहार है। हर घर इस दिन लोहड़ी की धूनी जलाकर उसके गिर्द परिक्रमा कर इस त्यौहार को मनाएगा। जिनके घर बेटे की शादी की पहली लोहड़ी है या फिर जिनके घर बेटे का जन्म हुआ है वे इस दिन को खूब धूमधाम तरीके से सैलीब्रेट करेंगे। कई घर ऐसे भी हैं जो आज अपनी बेटियों की लोहड़ी मना रहे हैं और ‘पंजाब केसरी’ ऐसे परिवारों को तहे दिल से सलाम करता है।
 

इस लोहड़ी के त्यौहार को बेटियों के करें  नाम
आज धीयां दी लोहड़ी शीर्षक के तहत हम आपको शहर की ऐसी बेटियों से मिलवा रहे हैं जिन्होंने अपने बलबूते पर शहर ही नहीं अपने राज्य व देश का नाम भी रोशन किया है। बेटियां हमारी शान हैं और बहुएं भी बेटियां ही हैं। महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा भी तभी मिलेगा जब हम सभी मिल कर इस लोहड़ी के त्यौहार को बेटियों के नाम करें। वैसे तो जिले की बेटियों ने यह साबित कर दिया है कि अगर इरादे मजबूत हों तो उडऩे के लिए पंख लग ही जाते हैं। बेटियों को अपनी शक्ति को सामने लाने के लिए सशक्त महिलाओं व युवतियों से प्रोत्साहित होकर आगे बढऩे की ललक पैदा करने की जरूरत है।

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मन की आंखों से रचा इतिहास 
कहते हैं मन के जीते जीत है मन के हारे हार... कुछ कर दिखाने की तमन्ना हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। इसके लिए परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों या शारीरिक अक्षमताएं रहीं हों मंजिल मिल ही जाती है। इसी की उदाहरण है शहर की बेटी संदीप कौर। संदीप ने कई मुश्किलों को पार लगाते हुए खेलों में राष्ट्रीय स्तर पर 4 गोल्ड मैडल, 3 सिल्वर और 1 ब्रांज मैडल हासिल किए हैं। आइए जानते हैं संदीप की जुबानी उसकी संघर्षों से पार सफलता की कहानी। मैं जन्म से ही अंधेपन से पीड़ित हूं। मेरी मां जसविंदर कौर की भी आंखों की रोशनी नहीं है। मेरी परवरिश करने के लिए मेरी मां ने कई मुश्किलों को झेला है, लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी। पहले खुद को आत्मनिर्भर बनाया और फिर मुझे सैल्फ डिपैंडैंट बनाने के लिए पूरी मेहतन कर रही है। मैंने अपनी मां से कड़े संघर्षों को झेलते हुए अपने अधिकारों के लिए लडऩा सीखा है। मैं अपना रोल मॉडल अपनी मां को मानती हूं। आज मैं जो भी कुछ हूं अपनी मां की बदौलत हूं। मुझे यहां तक पहुंचाने में मेरे मामा भगवंत सिंह व गुलवंत सिंह का भी विशेष योगदान है। 

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9वीं कक्षा की अर्चित जैन फैला रही शिक्षा का उजियारा 
जीसेस सैक्रेट हार्ट, साऊथ सिटी की 9वीं कक्षा की अर्चिता जैन अपनी पढ़ाई के साथ साथ झुग्गी झोपडिय़ों के ब"ाों को भी पढ़ाती है। हर शनिवार और रविवार जहां बच्चे अपने स्कूल डेज के होमवर्क और पढ़ाई के स्ट्रेस को कम करने के लिए वीकएंड को एं’वाय करना अधिक पसंद करते हैं, वहीं अर्चिता अपने समय को इन बच्चों को पढ़ाने व इनके साथ खेलने में समय व्यतीत करती है। अर्चिता कहती है कि मुझे इन बच्चो की हैल्प करने में बेहद सुकून मिलता है। मैंने देखा है कि ये बच्चे नंगे पैर सड़कों पर भीख मांगते हैं। कोई इन्हें स्कूल नहीं भेजता। थोड़े से खाने को लेकर टूट पड़ते हैं। मैंने सोचा मैं जो भी कुछ कहती हूं मेरे मम्मी और मेरी नानी उसे उसी समय पूरा कर देती हैं। मुझे अच्छी शिक्षा दिला रहीं हैं और मेरी हर बात को अहमियत देती हैं। लेकिन ये भी तो बच्चे हैं क्या इनका मन नहीं करता कि ये भी हमारी तरह स्कूलों में पढऩे जाएं और कोई इन्हें भी प्यार के साथ खाना खिलाएं। मेरी इस धारणा की कदर मेरी मां निधि जैन और मेरी नानी किरण जैन ने की। उन्होंने मेरा पूरा सहयोग किया। मैं हर शनिवार व रविवार बच्चों को पढ़ाना ही नहीं शुरू किया बल्कि इनबच्चों को खाना भी परोसती हूं। इनमें कंपीटीशिन की भावना पैदा हो इसलिए उपहार स्वरूप चाकलेट भी बांटती हूं। मैं अपनी दोस्तों को भी यहीं कहती हूं कि कम से कम एक बच्चे को भी अगर हम वह शिक्षा दें जो हमें मिल रही है तो इन बच्चों की जिंदगी ही संवर जाए।

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सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता : रुचि भंडुला 
सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं है। मुकाम को पाने के लिए कड़ी मेहनत कनी पड़ती है। मन में कुछ कर दिखाने का जोश जज्बा हो तो मंजिल के रास्ते भी खुद-ब-खुद साफ दिखाई देने लगते हैं। ऐसा कहना है उद्यमी रुचि भंडुला का। रुचि टप्पर वेयर कंपनी की पंजाब चैप्टर की सी.ई.ओ. है। रुचि कहती है कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी मेहनत इतने बड़े प्लेटफार्म पर मुझे लाकर खड़ा कर देगी। इसके लिए सबसे पहला क्रैडिट मैं अपने पति संजय भंडुला और अपने परिवार को देना चाहूंगी। जिन्होंने मेरे सपनों को साकार करने में मेरा सहयोग दिया। एक बहू भी बेटी ही होती है यह मेरे ससुराल पक्ष ने साबित कर दिया और मेरा पूरा सहयोग दिया। मेरे अंडर 3 हजार महिलाएं काम करती हैं। कई महिलाओं को सशक्त बनाया है। खुद पर किसी की बेटी तो किसी की बहू होने का अभिमान है। मैं अपनी बेटी को भी अपनी शान मानती हूं। मेरा हर कदम महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की ओर अग्रसर है और मैं इसे अपनी खुशकिस्मती मानती हूं। 

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बोल्ड एंड कांफीडैंट होना बेहद जरूरी : कुलदीप
महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि आज के पेरैंट्स अपनी बच्चियों को खूब पढ़ाएं और इस काबिल बनाएं कि समाज में उनकी अलग पहचान हो। ये बेटियां ही हमारी शान और हमारा अभिमान है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के अभियान को तेज कर रहीं सामाजिक कार्यकत्र्ता कुलदीप कौर अपने क्लब पंजाबी दीवाज सोशल लेडीज क्लब के माध्यम से अपनी टीम के साथ जहां महिला सशक्तिकरण पर काम कर रहीं हैं वहीं समाज में गरीब जरूरतमंद बच्चियों को नि:शुल्क कोचिंग देने के अभियान को भी तेज कर रही हैं। कुलदीप कौर लिटल चैंप स्कूल चला रहीं हैं और क्लब की ओर से जरूरतमंद व गरीब बच्चों के लिए नि:शुल्क कोचिंग सैंटर भी शुरू किया गया है। जिसमें 50 बच्चों को शिक्षा दी जा रही है। शिक्षा से बढ़ कर कोई दान नहीं है। सभी क्लब की महिलाएं एकजुट होकर शिक्षा का उजियारा फैलाने के लिए कार्य कर रही हैं। इसके अलावा कई गरीब लड़कियों की शादी का भी जिम्मा उठाया है।

PunjabKesariकिचन तक ही सीमित नहीं है दुनिया : रेणुका नागपाल
मिसेज नार्थ इंडिया में ब्यूटीफुल आइज टाइटल विनर रेणुका नागपाल ने कहा कि महिलाओं की दुनिया सिर्फ किचन तक ही सीमित नहीं है इससे आगे भी बहुत कुछ करने को है। अगर महिलाएं चाहे तो कुछ भी कर सकती हैं, क्योंकि ममता की देवी कही जाने वाली नारी में पुरुषों से अधिक काम के प्रति डेडीकेशन, व सहनशीलता छिपी है। मैंने भी शादी के बाद पहले पहल तो इसी बात से समझौता कर लिया था कि महिलाओं का काम घर परिवार को संभालना व बच्चों की परवरिश करना ही है। लेकिन बाद में यह महसूस हुआ कि मैं अपने टैलेंट को दबा रही हूं। कॉलेज के दिनों में तो खूब स्टेज परफार्म किया। कई ब्यूटी प्रतियोगिताओं में भाग लिया। बस फिर क्या था मैंने अपने पति, बच्चों व ससुराल परिवार के समक्ष अपनी बात रखी। उन्होंने भी मेरा पूरा सहयोग दिया। मैंने पहली बार बिगेस्ट लूजर कंटैस्ट में हिस्सा लिया और विनर रही। इसके बाद समर क्वीन प्रतियोगिता में भाग लिया। इससे मेरा कांफीडैंस और बूस्ट हो गया। मैंने नार्थ मिसेज इंडिया में भाग लिया। इसमें टाइटल विनर रही। अब डेजल कंपनी इंटरनैशनल की पूरे पंजाब चैप्टर की डायरैक्टर बनाया गया है। 
 

 

 


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