केंद्र से मीटिंगें बेनतिजा रहने से किसान आंदोलन हो सकता है उग्र

punjabkesari.in Saturday, Jan 16, 2021 - 12:48 PM (IST)

अमृतसर(दीपक): किसानों का आंदोलन लगातार 52वें दिनों तक लगातार जारी रहने के अलावा करीब 80 किसानों की मौत होने के बावजूद अब तक लगातार केंद्र सरकार के साथ मीटिंगें करने के परिणाम स्वरूप सुलझता नजर नहीं आ रहा है। जाहिर है, सद्दभावना के माहौल में होने वाली यह मीटिंगें और किसानों द्वारा शांतमयी ढंग से आंदोलन करने के दावों को अहिंसा, खूनी झड़पों और दलबदलू की राजनीति को तेजी से विराट रूप धारण कर सकता है, जिसके गंभीर परिणाम पंजाब, हरियाणा की आम जनता और खास करके भाजपा नेताओं को भुगतने पड़ेंगे, क्योंकि गत दिनों हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की रैली को किसानों ने प्रदर्शन करके हिंसक वातावरण पैदा किया जाना इस बात के संकेत देता है कि आने वाले दिनों में हरियाणा में भाजपा और जे.जे.पी. के विधायकों द्वारा कांग्रेस पार्टी में पलायन तेजी से करना लाजमी होगा, जिसके संकेत हरियाणा की कांग्रेस पार्टी की नेता कुमारी शैलजा पहले ही स्पष्ट रूप दे चुकी है। रही बात चंडीगढ़ और पंजाब के भाजपा नेताओं की, इनका पलायन कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल में धर्म के आधार पर होना भी लाजमी है, क्योंकि मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर की सरकार ने गत दिनों किसानों द्वारा तहस-नहस की गई रैली के आरोप में करीब 900 किसानों के खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज करके भाजपा का पत्तन होना और पलायन कांग्रेस में होना लगभग तय है। 

टकराव से भाजपा की किरकरी होना पूर्ण रूप से तय 
जहां तक किसानों द्वारा 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली निकालकर गणतंत्र दिवस मनाने का जो प्रोग्राम है, उसके लिए केंद्र सरकार जहां तक तीनों कानून वापस न लेने के लिए अड़ी रहेगी। वहीं इस ट्रैक्टर मार्च को रोकने के लिए गृह मंत्रालय अन्य राज्यों अर्द सैनिक बलों के दस्ते मंगवाकर बॉर्डरों पर आंदोलन कर रहे किसानों की 26 जनवरी से पहले मजबूत घेराबंदी करके, किसानों को दिल्ली में दाखिल होने पर पूरी रोक लगाने की तैयारी के मूड में है। परिणाम स्वरूप यदि दोनों धड़ों में तनाव बढ़ता है तो यह टकराव भारी हिंसक रूप धारण करने के अलावा खूनी झड़पों को भी बढ़ावा दे सकता है। भले ही किसान शांति से इस रैली को निकालने की दुहाई तो दे रहे है, परंतु हालात से जाहिर होता है कि यदि गणतंत्र दिवस पर केंद्र सरकार ने दिल्ली के सभी प्रवेश मार्गों पर कफ्र्यू जैसी स्थिति लागू करती है तो देश विदेशों में मोदी सरकार की बदनामी होना तो स्वाभाविक है, जिसके लिए देश के दो गुजराती हुक्मरानों को अपनी साख कायम रखने की भी चिंता है, परंतु यदि तनाव और टकराव उग्र रूप धारण करता है तो इसका पूर्ण श्रैय किसानों को मिलना और भाजपा की किरकरी होना पूर्ण रूप से तय है। 


केंद्र सरकार नहीं करना चाहती कारपोरेट घरानों को नराज
असल में केंद्र सरकार और भाजपा के दो प्रमुख हुक्मरान कारपोरेट घरानों को नाराज करने के लिए कोई भी सद्दभावना भरा समझौता किसानों के साथ नहीं कर सकते। यही कारण है, कि अब केंद्र सरकार किसानों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से आने वाले उस फैसले का इंतजार करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़कर किसानों के आंदोलन से मुक्ति प्राप्त करना चाहती है, ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूट पाए। सुप्रीम कोर्ट से किसानों के विरोध तयशुद्धा कमेटी का होने वाला कोई भी फैसला भी सरकार के पक्ष में होगा। परिणाम स्वरूप केंद्र सरकार यह कह सकती है कि हम तो माननीय उ‘च न्यायलय के फैसले को मानते हैं जो देश को सर्वो‘च न्यायलय है। इसके नतीजे केंद्र सरकार को किसानों द्वारा अपना आंदोलन और तेज करके लोहड़ी और बैसाखी के बीच भुगतने को मिलेंगे, क्योंकि किसान सुप्रीम कोर्ट और उसकी कमेटी के किसी भी फैसले को मानने के लिए तैयार नहीं, इसलिए आंदोलन बढ़ता जाएगा। उग्र रूप भी धारण कर सकता है। 


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