मकसूदां सड़क घोटाले में आया नया मोडऩगर निगम रिकार्ड से गुम है टैंडर की एम.बी. बुक

punjabkesari.in Saturday, Sep 21, 2019 - 11:39 AM (IST)

जालंधर(खुराना): पिछले करीब 8-10 सालों से मकसूदां रोड घोटाले की जांच विजीलैंस द्वारा की जा रही है, परंतु अभी तक इस मामले में विजीलैंस द्वारा कोई कार्रवाई न किए जाने से स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि कहीं न कहीं विजीलैंस की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है।गौरतलब है कि अकाली-भाजपा कार्यकाल दौरान 2010-11 में मकसूदां रोड के निर्माण हेतु 3.75 करोड़ रुपए की भारी-भरकम राशि के टैंडर लगे थे। टैंडर लेने वाले ठेकेदार ने किस्तों में काम किया और कई महीनों बाद भी जब सड़क को पूरा नहीं बनाया तो कांग्रेस पार्षद देसराज जस्सल ने इसे घोटाला बताते हुए इसकी शिकायत विजीलैंस को कर दी।

पिछले कई सालों दौरान विजीलैंस ने कई बार सड़क संबंधी रिकार्ड को निगम से लिया और कई बार मौके पर जाकर सड़क की जांच भी की, परंतु अभी तक विजीलैंस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। गत दिवस विजीलैंस की टैक्रिकल टीम ने मकसूदां सड़क घोटाले के मामले में जालंधर निगम पर छापेमारी की थी। इस दौरान इस सड़क के टैंडर से लेकर पेमैंट तक का सारा रिकार्ड तलब किया गया था। कुछ रिकार्ड विजीलैंस के पास पहले से ही था, परंतु अब सुविज्ञ सूत्रों से पता चला है कि निगम रिकार्ड में मकसूदां सड़क घोटाले से संबंधित एम.बी. बुक (मेजरमैंट बुक) ही गायब है।

इस एम.बी. बुक का नं.-355 बताया जा रहा है, जो इस 3.75 करोड़ रुपए के टैंडर वाली फाइल की आखिरी एम.बी. बुक है और इसी एम.बी. के आधार पर संबंधित ठेकेदार को फाइनल पेमैंट हुई थी। इस एम.बी. को किसने गुम किया और आखिरी बार यह किसके पास थी, अब विजीलैंस अगर इस मामले की भी जांच करे तो घोटाले की परतें अपने आप खुलनी शुरू हो जाएंगी।

ठेकेदारों के हाथ में रहती है एम.बी. बुक
निगम रिकार्ड में एम.बी. बुक अति महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो कानूनन जे.ई. के पास रहती है और उस एम.बी. बुक में विकास कार्य से संबंधित सारा डाटा, सारी गिनती-मिनती व पैमाइश रहती है तथा निगम का ऑडिट तथा अकाऊंट्स विभाग इसी एम.बी. बुक के आधार पर ठेकेदार को पेमैंट करता है। जालंधर निगम में वर्षों से यह चलन है कि ज्यादातर ठेकेदार अपने कामों से संबंधित एम.बी. बुक अपने पास रख लेते हैं और खुद ऑडिट तथा अकाऊंट आफिस से बिल क्लीयर करवाते समय एम.बी. बुक उन अधिकारियों को सौंपते हैं। 
निगम में चर्चा है कि मकसूदां सड़क घोटाले संबंधी जो फाइनल एम.बी. बुक गायब है, वह उस समय के ठेकेदार के पास थी, जिसने इसे ऑडिट विभाग में देने के बाद उसे रिसीव तक किया था। अब सवाल यह है कि अगर ऑडिट वालों के पास ठेकेदार की रिसीविंग है तो संबंधित जे.ई. या संबंधित पी.डब्ल्यू.सी. (क्लर्क) के पास यह रिकार्ड क्यों नहीं था?

कांग्रेस से भी नहीं टूट रहा ठेकेदार व निगमाधिकारियों का नैक्सस
अकाली-भाजपा के 10 साल के शासन दौरान विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने खूब शोर मचाया कि सत्तापक्ष घोटाले कर रहा है और निगम में ठेकेदारों तथा अधिकारियों का नैक्सस होने की वजह से कमीशनबाजी जोरों पर है।हैरानीजनक बात यह है कि पंजाब में कांग्रेस को आए अढ़ाई साल हो चुके हैं और कांग्रेस को निगम की सत्ता सम्भाले दो साल होने को आए हैं, परंतु कांग्रेस से भी ठेकेदारों व निगमाधिकारियों का नैक्सस तोड़ा नहीं जा रहा। आज भी निगम के ज्यादातर ठेकेदार निगम की हर फाइल तक आसानी से पहुंच रखते हैं। ज्यादातर अफसरों व कर्मचारियों से उनकी पूरी सैटिंग है। निगम के दर्जनों कर्मचारी सालों से मलाईदार पोस्टों पर चिपके बैठे हैं जिन्हें हिलाने की जुर्रत कोई नहीं कर रहा, इसीलिए लोग यह कहने पर विवश हैं कि निगम में सरकार तो बदल गई है, परंतु सिस्टम नहीं बदला।
 
मकसूदां घोटाले में सामने आ रही राजनीतिक रंजिश
चूंकि मकसूदां सड़क घोटाला अकाली-भाजपा कार्यकाल दौरान हुआ और उस समय के निगमाधिकारियों तथा भाजपा नेताओं पर इस घोटाले को संरक्षण देने के आरोप लगे, इसलिए अब सत्ता में बैठे कांग्रेसी नेता प्रयास कर रहे हैं कि विजीलैंस जल्द इस जांच को पूरा करे। यह भी पता चला है कि अपने कांग्रेसी आका को खुश करने के लिए एक निगमाधिकारी ने खुद विजीलैंस वालों को सिटी स्केप प्रोजैक्ट की फाइल सौंप दी। हालांकि मकसूदां सड़क और सिटी स्केप प्रोजैक्ट दोनों अलग-अलग मामले थे तथा इनमें कोई भी समानता नहीं थी।  निगम में चर्चा है कि निगमाधिकारी के माध्यम से विजीलैंस तक सिटी स्केप प्रोजैक्ट की फाइल पहुंचाने का मकसद कहीं न कहीं उस समय के आरोपी भाजपा नेताओं पर और शिकंजा कसना हो सकता है। अब विजीलैंस इस मामले में क्या घोटाला ढूंढती है, इस पर कई नेताओं व अधिकारियों का भाग्य टिका हुआ है।


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