महाराज प्रेमानंद के वक्तव्य को लेकर किया जा रहा भ्रामक प्रचार, असलियत में क्या कहा महाराज ने, पढ़िए
punjabkesari.in Sunday, Feb 09, 2025 - 05:42 PM (IST)
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पंजाब डेस्क : प्रेमानंद जी महाराज द्वारा अपने भक्तों के साथ वार्तापाल की जाती है। इस दौरान वह भक्तों के सवालों का जवाब देते हैं और उन्हें भक्ति का मार्ग दिखाते हैं। ऐसा ही प्रेमानंद जी महाराज एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है जिसमें वह आदि गुरु शंकराचार्य जी को लेकर पूछे गए सवाल पर अपने विचार प्रकट करते हैं। उनके इस वीडियो को लेकर गलत और भ्रामक जानकारी फैलाई जा रही है। इसके बाद इस वार्तालाप की पूरी वीडियो डाली गई है। इसमें महाराज जी ने किसी का नाम नहीं लिया बल्कि कहा कि शंकराचार्य जी को समझना सामान्य लोगों के बस की बात नहीं।
उन्होंने आदि गुरु शंकराचार्य जी को लेकर कहा कि कहां एक मच्छर गरुड़ की महिमा को जान सका है। उन्होंने कहा कि स्वयं भगवन ही शंकराचार्य के रूप में हैं। शंकराचार्य भक्ति के प्रकाशक है जो वेद प्रमाणित है। उन्होंने कहा कि पूजनीय आदि गुरु शंकराचार्य जी के स्थापित मठों में जो गुरुजन विराजमान है वह धर्म का संचालन करने के लिए है। उनकी बातों को समझना बड़ा कठिन है।
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि आजकल लोग साधारण धर्म को लोग समझ नहीं रहे वेदांत को कौन समझेगा। शंकराचार्य जी की बात को समझने के लिए योग्यता चाहिए और ये योग्यता गुरुजनों के चरणों की सेवा कर, पवित्र शास्त्रों का अध्ययन, नाम जपकर आती है। उन्होंने कहा कि आचार्य पीठ पर विराजमान महापुरुष का स्वयं शास्त्र सम्मत आचरण, शास्त्र वाक्य और समाज को शास्त्र के अनुसार चलाना ही कर्तव्य है। आदि गुरु शंकराचार्य जी ने चार मठों को स्थापित करके आचार्य पीठ पर विराजमान होने वाले महापुरुषों के लिए यही आदेश किया है।
उन्होंने कहा कि आचार्य पीठ के महापुरुषों की वाणी में और जीवन में शास्त्र ही होगा। ऐसे महापुरुषों की वाणी को समझने के लिए पहले धर्म को जानना चाहिए। धर्महीन आचरण अगर कोई करता है तो वह शंकराचार्य जी को सुन कर भी उन्हें समझ नहीं सकता। शंकराचार्य जी को सुनने के लिए पवित्र बुद्धि शरणागति चाहिए अभिमानी जीव इसे नहीं समझ पाएगा। उन्होंने कहा कि आचार्य गुरु की कृपा से जन का कल्याण हो रहा है और आगे भी होता रहेगा।
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि आचार्य पीठ पर विराजमान महापुरुषों की महिमा का गायन करने का सामर्थ्य हमारा नहीं है वह तो साक्षात भगवान शंकर हैं। ऐसे ही सनातम धर्म का पालन होता रहे इसलिए आचार्य पीठ पर विराजमान हैं और वह उनके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम करते हैं।
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