लोकसभा उपचुनाव जीतने के बाद जालंधर में ठप्प हुईं ''आम आदमी पार्टी'' की गतिविधियां

punjabkesari.in Wednesday, Jun 28, 2023 - 01:13 PM (IST)

जालंधर (सोमनाथ): जालंधर लोकसभा चुनाव को करीब डेढ़ महीना बीत गया है मगर अपनी प्रत्याशी सुशील रिंकू की जीत के जश्न से आम आदमी पार्टी बाहर नहीं निकल पा रही है। हालांकि सांसद सुशील रिंकू सरकारी कार्यक्रमों के तहत अपने दौरों पर बराबर निकल रहे हैं लेकिन बाकी शहर के चारों विधानसभा हलकों में एक हलके को छोड़कर बाकी हलकों, विशेषकर वैस्ट में आम आदमी पार्टी की गतिविधियां लगभग ठप्प होकर रह गई है। यही नहीं, वैस्ट हलके से विधायक भी बहुत कम नजर आ रहे हैं। जहां तक इस हलके में विकास की बात है तो एक-दो सड़कों के बन जाने के बाद कहीं विकास नजर नहीं आ रहा है।

यही हाल बाकी विधानसभा हलकों में भी है। पानी जैसी समस्या को लेकर लोग खाली बाल्टियां लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। चिलचिलाती गर्मी के बीच नारेबाजी करते नजर आ रहे हैं, मगर उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। रोष में भरे लोग राह ताक रहे हैं मगर ‘आप’ नेता नजर नहीं आते हैं। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी भले ही लोकसभा उपचुनाव हार गई है लेकिन पार्टी ने अभी से लोकसभा चुनावों की तैयारियां नहीं शुरू कीं, बल्कि बैठकों का दौर भी शुरू हो गया है। केंद्रीय मंत्री जालंधर आकर शहर की नब्ज टटोल रहे हैं तथा पार्टी नेताओं और कार्यकर्त्ताओं की पीठ थपथपा रहे हैं, जिस देखकर लग रहा है कि जालंधर में भारतीय जनता पार्टी मजबूत स्थिति की ओर जा रही है।

अगर समय रहते आम आदमी पार्टी ने मौका नहीं संभाला तो पार्टी को नुक्सान पहुंच सकता है। चेयरमैनी और प्रधानगी के लारों ने मायूस किए पार्टी में शामिल नेता जालंधर लोकसभा उपचुनाव जीतने के लिए आम आदमी पार्टी को बड़ी कसरत करनी पड़ी। रोज किसी न किसी नेता को भारी संख्या में कार्यकर्त्ताओं और परिवारों के साथ आम आदमी पार्टी में शामिल किया गया। ‘आप’ में शामिल करने के दौरान कई नेताओं को लोकसभा चुनाव की टिकट देने जोकि चुनाव लड़ने के दावे भी करते रहे और कुछ को जिला प्रधान बनाने तथा कइयों के चेयरमैन बनाने के वायदे भी किए लेकिन आप प्रत्याशी की जीत के चेयरमैनी और प्रधानगी नहीं मिलने के कारण दूसरी पार्टियां छोड़कर आम आदमी पार्टी का दामन थामने वाले नेता खुद को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं और पार्टी में अपनी भूमिका तलाश रहे हैं।

कुछ नेताओं ने तो कहा है कि वे पार्टी हाईकमान और पंजाब प्रधान के साथ जल्द सीधी बात करेंगे कि अगर उन्हें कोई भूमिका नहीं देनी है या कोई चेयरमैनी, प्रधानगी या हलका इंचार्ज नहीं देनी है तो स्पष्ट किया जाए ताकि वे समय रहते अपने बारे में स्वयं सोच सकें।

कांग्रेस जैसी गलती कर रही ‘आप’

पंजाब की सत्ता पर लम्बे समय से सुख भोग चुकी कांग्रेस के साथ करीब 4-4 दशक से जुड़े नेताओं जो केवल कांग्रेसी कार्यकर्त्ता ही बनकर रह गए थे, वे मायूस होकर दूसरी पार्टियों भाजपा या आम आदमी पार्टी में चले गए, जोकि कांग्रेस की पंजाब विधानसभा और जालंधर लोकसभा उपचुनाव में हार का कारण बना। आज भी कांग्रेस में बहुत सारे ऐसे नेता हैं जो चाहते हैं कि कांग्रेस पार्टी की तरफ से उन्हें कोई जिम्मेदारी सौंपी जाए तो वे दोबारा पार्टी को पैरों पर खड़ा कर सकते हैं, मगर जो लोग कांग्रेस या दूसरी पार्टियां छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए हैं, उनकी स्थिति वैसी ही है जो इससे पूर्व उनकी अपनी पार्टियों में थी।

अगर समय रहते दूसरी पार्टियों से शामिल नेताओं को आम आदमी पार्टी में कोई जिम्मेदारी या पद नहीं दिया गया तो पार्टी को नुक्सान हो सकता है क्योंकि ‘आप’ में शामिल होने वाले वे अकेले नहीं उनके साथ कार्यकर्त्ता भी हैं।

भाजपा जैसा रोष ‘आप’ कार्यकर्त्ताओं में

कई दशक बाद भारतीय जनता पार्टी ने शिरोमणि अकाली दल से नाता तोड़कर अपने दम पर पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि इस दौरान भाजपा को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और एकाध अन्य राजनीतिक पार्टी का भी समर्थन हासिल था लेकिन उसकी हार की एक वजह भाजपा कार्यकर्त्ताओं में रोष था। पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान जब भारतीय जनता पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की थी तो रोष से भरे कई नेताओं का कहना था कि जब पार्टी अकाली दल से अलग होकर चुनाव लड़ रही है तो एक तो पार्टी को सभी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए और दूसरा नये चेहरों को मौका देना चाहिए।

उनका इशारा आम आदमी पार्टी की सीधी जीत की तरफ था। सोशल इंजीनियरिंग के तहत पार्टी के नेता जाते थे कि आम आदमी पार्टी नए चेहरों को मौका दे रही है। लोग सभी पार्टियों में पुराने चेहरों को आजमा चुके हैं। लोग भी नए चेहरों को आगे आने का मौका देना चाहते थे। अंत में वही हुआ जो डर था। भाजपा यह चुनाव हार गई। अब जबकि कुछ ही दिनों में निकाय चुनावों की घोषणा होने वाली है। आम आदमी पार्टी ने धड़ाधड़ कांग्रेसी पार्षदों और नेताओं को ‘आप’ में शामिल कर लिया है। ऐसे स्थिति हवा यह बन रही है कि पार्टी द्वारा शामिल किए गए पार्षदों और नेताओं के दम पर ही नगर निगम की सत्ता कब्जाने की कोशिश की जा रही है। अब सवाल उठता है कि अगर आप द्वारा कांग्रेसी पूर्व पार्षदों को ही टिकटें देकर आगे किया जाता है तो ‘आप’ के टकसाली कार्यकर्त्ताओं का भविष्य क्या होगा और यदि आप द्वारा अपने कार्यकर्त्ताओं को आगे किया जाता है तो दूसरी पार्टियों से आप में शामिल पूर्व पार्षदों और नेताओं का भविष्य दांव पर लग जाएगा।

चर्चा में ‘आप’ के एक नेता के व्हाट्सएप मैसेज

लोकसभा उपचुनाव के दौरान मतदान से पूर्व की रात को एक नेता के व्हाट्सएप मैसेज इन दिनों खूब चर्चा का विषय बने हुए हैं। कहा जा रहा है कि उक्त नेता किसी भी कीमत पर आम आदमी पार्टी की जीत नहीं चाहता था। मतदान पूर्व हुए एक मामूली झगड़े के दौरान मोबाइल के व्हाट्सएप मैसेज पकड़ में आ गए और इसकी जानकारी हाईकमान तक दे दी गई है। ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेस में सुशील रिंकू ने विधानसभा चुनावों में अपनी हार के बाद कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष को एक कांग्रेसी नेता की गतिविधियों की रिपोर्ट सौंपी गई थी और उक्त नेता को पार्टी तक छोड़नी पड़ गई थी।

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News Editor

Urmila

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