फिर तो राजधानी को दिल्ली से कहीं और करना पड़ेगा शिफ्ट!

punjabkesari.in Friday, Nov 15, 2019 - 10:11 AM (IST)

जालंधर(सूरज ठाकुर): सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद पराली जलाने के मामले को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली की सरकारें गंभीरता से नहीं ले रही हैं जिसके चलते इन राज्यों के मुख्य शहरों का दम तो घुट ही रहा है, साथ में दिल्ली के हालात ऐसे हो गए हैं कि केजरीवाल की ऑड-ईवन की थ्योरी भी फेल हो गई है।

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इन राज्यों में पराली न जलाने को लेकर किसानों के हित में वित्तीय लाभ देने के फैसले तो लिए जा रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर इसके कोई परिणाम नजर नहीं आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में पंजाब और हरियाणा में किसानों को 1 लाख 3 हजार ही पराली नष्ट करने की मशीनें मुहैया करवाई गई हैं। इसी गति से दोनों राज्यों के 50 लाख किसानों को यह मशीनें उपलब्ध करवाने में करीब 60 साल तक का समय लग जाएगा। किसी भी गंभीर मसले पर सुप्रीम कोर्ट के तलब करने पर राज्य सरकारों का हलफनामा दायर करना रस्म अदायगी की प्रथा बनती जा रही है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो जाता है कि क्या दम घुटती देश की राजधानी दिल्ली को ही कहीं और शिफ्ट करना पड़ेगा।


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दिल्ली ने पंजाब-हरियाणा पर जड़े आरोप
दिल्ली में आजकल वायु में घुल रहे जहर के लिए सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। हालांकि इसमें दिल्ली सहित उत्तर प्रदेश भी शामिल है। पराली जलाने की समस्या के प्रति पंजाब और हरियाणा सरकार की गंभीरता की बात करें तो बता दें कि इन राज्यों के पर्यावरण मंत्री 11 नवम्बर को उस बैठक में शामिल ही नहीं हुए जो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद केंद्र सरकार की ओर से बुलाई गई थी। इस बैठक में पराली जलाने की समस्या को रोकने के लिए रोड मैप तैयार किया जाना था। इसके बाद दिल्ली के पर्यावरण मंत्री कैलाश गहलोत ने आरोप जड़ा कि पंजाब और हरियाणा सरकार पराली जलाने की समस्या को लेकर गंभीर नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायालय के सख्त निर्देशों के बावजूद पंजाब और हरियाणा की ओर से बैठक में कोई नहीं पहुंचा। प्रदूषण पर दिल्ली की गंभीरता की बात करें तो एम.सी.डी. और डी.डी.ए. के अधिकारी भी इस बैठक से नदारद थे।

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क्या सुप्रीम कोर्ट को गंभीरता से लेते हैं नौकरशाह
उत्तरी भारत में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 6 नवम्बर को पंजाब सहित उक्त सभी रा’यों की ङ्क्षखचाई की थी। शीर्ष अदालत ने पराली जलाने पर गरीब किसानों के काटे जा रहे चालानों को लेकर भी आपत्ति जाहिर की थी और कहा था कि किसानों को सजा देना कोई समस्या का समाधान नहीं है। रा’य सरकारों को कोर्ट ने यह भी पूछा था कि वे खुद ही क्यों नहीं किसानों से पराली खरीदतीं। पंजाब के मुख्य सचिव से सीधे तौर पर पूछा गया कि क्या आपके पास फंड हैं। यह भी कहा था कि नहीं हैं तो हम आपको फंड मुहैया कराएंगे। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस मिश्रा ने गुस्से में आकर मुख्य सचिव को निलंबित करने की चेतावनी भी दे डाली थी। कोर्ट ने सरकारों को पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए एक साल पहले ही उपाय न करने पर लताड़ भी लगाई थी। यहां तक कह डाला था कि आप महंगे टॉवरों में बैठते हो और राज करते हो। इतना कुछ होने के बाद इस बात का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है कि सरकार और नौकरशाह जनता का किस कदर ख्याल रखते हैं।


ऐसे मदद कर रही हैं केंद्र और राज्य सरकारें
पराली को नष्ट करने की मशीनें किसानों को बहुत ही धीमी गति से मुहैया करवाई जा रही हैं। मीडिया रिपोटर््स के मुताबिक पराली की समस्या के समाधान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया गया है उसमें कहा गया है कि पंजाब और हरियाणा में किसानों को 2018-2019 में 63 हजार और 2019-2020 में 40 हजार मशीनें उपलब्ध करवाई गई हैं। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में 20,65,067 और हरियाणा में 30,18,014 किसान हैं। दोनों रा’यों के करीब 50 लाख से अधिक किसानों को इसी रफ्तार से अगर मशीनें दिलाने का सिलसिला चलता रहा तो पूरी प्रक्रिया में करीब 60 साल लग जाएंगे। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के चले डंडे के बाद पंजाब सरकार ने किसानों को पराली न जलाने को लेकर 2500 रुपए प्रति एकड़ देने का ऐलान किया है जबकि हरियाणा सरकार ने भी अपने किसानों को एक हजार रुपए प्रति एकड़ और एक क्विंटल धान पर 100 रुपए बोनस देने का फरमान जारी किया है जिसके लिए कई तरह की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद किसानों के खाते में डायरैक्ट पैसा ट्रांसफर करने का वादा है। सरकारों के आनन-फानन में किए गए इस ऐलान पर किसान यूनियनों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। किसान नेता अब सरकारों पर आरोप लगा रहे हैं कि यह सब सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से बचने के लिए किया जा रहा है।


पराली से देश को 2 लाख करोड़ रुपए का नुक्सान
अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आई.एफ.पी.आर.आई.) की एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर भारत में जलने वाली पराली से देश को लगभग 2 लाख करोड़ रुपए का नुक्सान होता है। संस्थान ने इसका आकलन वायु प्रदूषण के कारण हाने वाली बीमारियों के खर्च आधार पर किया है। उल्लेखनीय है कि यह राशि केंद्र सरकार के स्वास्थ्य बजट से लगभग 3 गुना ज्यादा है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अकेले पंजाब में अनुमानित 44 से 51 मिलियन मीट्रिक टन धान अवशेष जलाया जाता है। इससे होने वाला प्रदूषण हवाओं के साथ दिल्ली एन.सी.आर. में पहुंच जाता है। आई.एफ.पी.आर.आई. के एक अन्य शोध के अनुसार पटाखों से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण भारत को हर साल लगभग 7 बिलियन डॉलर यानी 50,000 करोड़ रुपए का नुक्सान झेलना पड़ता है।


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