बाल मजदूरी : पढ़ने-लिखने की उम्र में बच्चों का भविष्य हुआ धुंधला

punjabkesari.in Saturday, Feb 18, 2023 - 02:44 PM (IST)

बुढलाडा: गरीब मां-बाप रोटी का जुगाड़ करने के लिए मेहनत मजदूरी करे हैं लेकिन 2 वक्त की रोटी नसीब नहीं होती, वहां मां-बाप अंत की महंगाई के कारण अपने बच्चों को स्कूल भेजने की जगह काम पर भेजने को पहल दे रहे हैं। पढ़ने-लिखने की उम्र में बच्चे घर का खर्चा चलाने के लिए कबाड़ उठाने, फैक्टरियों, दुकानों, ढाबों आदि पर काम करने के लिए मजबूर हैं।

राष्ट्रीय किरत संस्था व यू.नी.सेफ द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट अनुसार संसार भर में बाल मजदूरों की संख्या 25 करोड़ से भी ज्यादा हो गई है। वर्ष 2000 से 2016 के बीच यह संख्या 9 करोड़ दर्ज की गई थी। बाल मजदूरी समाज के लिए एक बड़ी लानत है व बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए इस का खात्मा बहुत जरूरी है। दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र भारत में 10 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी का शिकार हैं।

भारत में 17 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे के पास पैसे अदा कर जो बिना पैसे दिए शारीरिक या दिमागी काम करवाने को बाल मजदूरी माना जाता है। भारत का फैक्टरी एक्ट 1948 तो 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी फैक्टरी में काम करने से मना करता है। मुफ्त व लाजमी शिक्षा का अधिकार 2009 से 6 से 14 वर्ष की उम्र के हर बच्चे के लिए मजदूरी की जगह लाजमी शिक्षा व मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के बात करता है लेकिन यहां हजारों लाखों बच्चे अभी तक भी अनपढ़ घुम रहे हैं।

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News Editor

Urmila

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