हर एक वोटर ग्राम सभा में रख सकता है अपनी बात, जानें कैसे

punjabkesari.in Friday, Jul 08, 2022 - 11:39 AM (IST)

खन्ना (सुरेश): ग्राम सभा जिसको कि गांव की ‘पार्लियामैंट’ और आम इजलास भी कहा जाता है। इस ‘पार्लियामैंट’ में गांव का हर एक आम नागरिक शामिल होता है। जिनको गांव की तकदीर आप लिखने का अधिकार होता है कि गांव में कौन-कौन से काम होने चाहिए। देश की पार्लियामैंट में नुमाइंदे लोग आप चुन कर भेजते हैं। परंतु ग्राम सभा की इस ‘पार्लियामैंट’ में कोई चुनाव नहीं होता, बल्कि गांव में जिसकी भी वोट बनी होती है, वह हर नागरिक इस ‘पार्लियामैंट’ का मैंबर होता है। वह गांव के विकास करने की रणनीति में हिस्सेदार होता है।

73वें संशोधन के बाद 21 अप्रैल 1994 को नए पंचायती राज कानून के हद में आने पर वोटरों को ग्राम सभा के अंतर्गत बहुत ताकत दी गई है कि जो मांग इस ग्राम सभा के अंतर्गत गांव के लोगों के लिए मांगी जाती है, उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती। परंतु करीब 25 साल बीत जाने के बाद भी इस कानून के बारे में न तो गांव के किसी वोटर को जानकारी होती है और न ही ग्राम सभा के चेयरमैन (सरपंच) को। अब सरपंची सिर्फ चुनाव लड़ने, लोगों को आपस में लड़ाने व थाने, कचहरियों तक ही सीमित रह गई है। मगर जिन सरपंचों ने इस ग्राम सभा को लागू किया है, उन्होंने गांव की नुहार बदल कर रख दी है।

ग्राम सभा क्या है

ग्राम सभा का भाव गांव के आम लोगों का वह एकत्रता जिसकी गांव में वोट बनी होती है। जो सरपंच द्वारा साल में जून और दिसम्बर में दो बार एकत्र करना होता है। इस एकत्रता से 15 दिन पहले सरपंच द्वारा स्पीकर पर अनाउंसमैंट करवानी होती है कि उस दिन गांव की चौपाल में सभी गांव की ग्राम सभा बुलाई जाएगी। जिस भी गांववासी की कोई मुश्किल है वह लिखित रूप में सरपंच को बताए। चाहे वह गांव के साथ संबंधित किसी भी महकमे से संबंधित हो।

फिर सरपंच उस शिकायत पर संबंधित महकमे के अफसर को लिख कर भेजता है कि उस दिन ग्राम सभा की मीटिंग में आकर उन शिकायतों का जवाब दिया जाए।

ग्राम सभा वाले दिन गांव की चौपाल में सजी ग्राम सभा में सरपंच एक राजे की तरह काम करता है और सभी पंचायत मैंबर उसके साथ ग्राम सभा की नुमाइंदगी करते ‘सत्य को सत्य’ और ‘झूठ को झूठ’ कहने की हामी भरते हैं। सबसे पहले सरपंच ग्राम सभा में अपना पंचायती हिसाब-किताब पढ़ कर सुनाता है कि गांव में कितनी ग्रांट आई है और कहां-कहां कितनी-कितनी लगाई गई है और कितना पैसा बाकी पड़ा है।

उसके बाद सरपंच गांववासियों द्वारा आई शिकायतें पढ़ता है और संबंधित महकमे के अफसर शिकायतकर्ता की लिखित शिकायत वाली कापी पर इसका काम करने का समय लिख देते हैं कि इस शिकायत का काम इतने दिनों में कर दिया जाएगा।

यदि अफसर उस शिकायत का निपटारा करते समय पर नहीं करता तो सरपंच द्वारा उसे एक याद-पत्र भेजा जाता है। यदि फिर भी अफसर वह काम नहीं करता तो ग्राम सभा को अधिकार है कि वह उस अधिकारी को सस्पैंड कर सकती है।

इस सभा में गांव की तकदीर लोग आप लिखते हैं। गांव में गलियों, नालियों, पार्कों, सेहत सहूलियतों आदि के लिए सरकार से फंड की मांग कर सकते हैं। उस फंड को सरकार को हर हाल में जारी करना पड़ता है। यदि कोई सरपंच साल में कोई सभा नहीं बुलाता तो सरपंच को मुअतिल कर दिया जाता है।

कानून तो इसलिए बनाया गया था कि लोग अपने गांव के विकास के लिए अपनी किस्मत आप लिखें, परंतु राजनीतिज्ञों व अधिकारियों ने इसको बक्सों में बंद कर दिया है। अब तक अधिकारियों द्वारा यह प्रयास किए जाते रहे हैं कि लोग इस कानून के बारे में जागरूक न हो सकें, क्योंकि इस कारण उनकी अपनी ताकत जीरो हो जाएगी और लोग ताकत उन पर हावी हो जाएगी। इस कानून के साथ सरपंच को भी समझ आ जाएगी कि मेरी ताकत बी.डी.पी.ओ. या विधायक नहीं, बल्कि मेरी ताकत मेरे गांव के लोग हैं।

इस समय पर यह कानून सिर्फ कागजों में ही काम कर रहा है। इस कानून के बारे में सरपंचों को जानकारी न होने के कारण गांव के विकास काम करवाने के लिए मिले कर्मचारी पंचायत सैक्रेटरी सरपंचों के लिए एक बड़े अफसर से कम नहीं। वह ही ग्राम सभा जाली रूप में करके गांव के लोगों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करता आ रहा है। इस खेल में पंचायत सैक्रेटरी और बी.डी.पी. ओ. ही मुख्य खिलाड़ी होते हैं। क्योंकि हर सरपंची की वोटों के मौके लोग नया सरपंच तो बना लेते हैं। परंतु यह पंचायत सचिव उस सरपंच को इस कानून से जानकार नहीं करवाते और सरपंच को अपनी कठपुतली बना नचाते हैं। इसलिए हर एक गांववासी को इस ग्राम सभा के बारे में ज्ञानवान होना अति जरूरी है।

यदि हर एक गांववासी पंचायती राज एक्ट, ग्राम सभा और मनरेगा जैसी स्कीमों बारे जागरूक हो जाता है तो गांव का आम नागरिक और अनपढ़ सरपंच भी अपने गांव की तकदीर बदल सकता है।

भगवंत मान सरकार ने इस ओर ध्यान दिया है परंतु जो ग्राम सभा की शुरूआत हुई है। उसके नतीजे सकारत्मक नहीं हैं। बी.डी.पी.ओ., पंचायत सैक्रेटरी और सरपंचों द्वारा इसकी खानापूर्ति की जा रही है, मनरेगा वर्कर को इक्ट्ठे करके मत-मर्जी के साथ डाले जा रहे हैं, सरकार से गांवों के आम लोग मांग करते हैं कि इस ग्राम सभा की मीटिंग की वीडियोग्राफी हो और मीटिंग में पत्रकार भाईचारे को शामिल करके गांव के विकास के लिए आए फंड का हिसाब-किताब हर गांव की पंचायत में लिखित रूप में लगाया जाए।

मीटिंग में शामिल हुए हर वोटर की लिस्ट पंचायत में लगाई जाए, फिर कहीं भ्रष्टाचार को लगाम पाई जा सकती है और पंजाब के गांवों का निष्पक्ष विकास हो सकता है।

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News Editor

Urmila

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