Recall: बर्फ की सिल्लियों वाली AC Train, 72 घंटे में मुंबई से पहुंचती थी पेशावर

punjabkesari.in Sunday, Sep 01, 2019 - 12:48 PM (IST)

फिरोजपुरः यहां तकनीक के क्षेत्र में भारत लगातार तरक्की कर रहा है। वहीं आपको शायद ही पता हो कि यही   ए.सी. बोगी वाली ट्रेन आज के दिन ही 91 साल पहले दौड़ी थी। यह ट्रेन आज भी पटरियों पर दौड़ रही है। अब इसका नाम बदलकर गोल्डन टैम्पल रख दिया गया है, लेकिन इसकी पुरानी शान कायम है। देश की ए.सी. इस ट्रेन को फ्रंटियर मेल के नाम से जाना जाता था। इस ट्रेन को ब्रिटिश सरकार ने 1 सितंबर 1928  को शुरू किया था। इसमें राष्‍ट्रपिता महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी यात्राएं की थीं। यह ट्रेन स्‍वंतत्रता आंदोलन की गवाह रही है। इसमें अनोखी ए.सी. बोगी होती थी,जिसे ठंडा रखने के लिए इसमें बर्फ की सिल्लियां रखी जाती थीं। इस ट्रेन की कहानी बेहद रोचक है।
 PunjabKesari
मुंबई से अफगान बार्डर पेशावर तक की लंबी दूरी तय करती थी फ्रंटियर मेल
फ्रंटियर मेल 1 सितंबर 1928 को मुंबई के बल्लार्ड पियर मोल रेलवे स्टेशन से अफगान बार्डर पेशावर तक शुरू की गई थी। अंग्रेज अफसरों के अलावा यह आजादी के दीवानों को भी उनकी मंजिल तक पहुंचाती थी। इस ट्रेन की सबसे बड़ी खासियत इसकी ए.सी.   बोगी होती थी। इस बोगी को शीतल बनाए रखने के लिए बर्फ की सिल्लियों का प्रयोग किया जाता था। जिनके पिघलने पर विभिन्‍न स्टेशनों पर उनका पानी निकलकर उनकी जगह बर्फ की नई सिल्लियां लगाई जाती थीं। 1934 में ट्रेनों में एसी लगाए जाने का काम शुरू हुआ और इस इस मामले में फ्रंटियर मेल अव्‍वल रही। भारत की पहली एसी डिब्बों वाली रेलगाड़ी होने का गौरव इसे मिला।   

PunjabKesari

72 घंटों में पूरी करती थी यात्रा
यह ट्रेन मुंबई से पेशावर तक 2335 किलोमीटर लंबी यात्रा को 72 घंटों में पूरा करती थी। इसकी सबसे बड़ी खूबी थी कि यह कभी लेट नहीं चलती थी। रेल अधिकारी एस.पी. सिंह भाटिया ने बताया कि ब्रिटिश शासन के समय एक बार यह ट्रेन 15 मिनट लेट हो गई थी। इस पर उच्च अधिकारियों के नेतृत्व में जांच बैठा दी गई थी। 1930  में द टाइम्स समाचार पत्र ने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेनों में फ्रंटियर मेल को सबसे प्रमुख व मशहूर ट्रेन बताया। आजादी के बाद यह ट्रेन अमृतसर और मुंबई के बीच 1896 किलोमीटर की दूरी तय कर रही है। 

PunjabKesari

इस कारण पड़ा फ्रंटियर मेल नाम 
मुंबई से पेशावर तक चलने के कारण ही इसका नाम फ्रंटियर मेल पड़ा था। पहले इसमें ब्रिटिश साम्राज्य के अधिकारी ही यात्रा करते थे, लंदन से भारत आने वाले अंग्रेज अधिकारियों के जहाज के साथ ही इस ट्रेन का टिकट भी जुड़ा होता था, यहीं नहीं उनकी सुविधा के लिए इस रेलगाड़ी को समुद्र के किनारे बने बल्लार्ड पियर मोल रेलवे स्टेशन से चलाया जाता था, ताकि वह जहाज से उतरने के बाद इसमें बैठ सके। स्ट्रीम इंजन व लकड़ियों व लोहे के बने कोचों से शुरु हुआ इस रेलगाड़ी का सफर अब बिजली वाले इंजन व आधुनिकतम कोचों तक पहुंच गया है। 

PunjabKesari

1996 में बदला गया नाम 
फ्रंटियर मेल का नाम 1996 में बदलकर गोल्डन टेंपल मेल (स्वर्ण मंदिर मेल) कर दिया गया। आजादी से पहले यह ट्रेन बंबई, बड़ौदा, रतलाम, मथुरा, दिल्ली, अमृतसर, लाहौर, रावलपिंड़ी से होते हुए पेशावर तक जाती थी। इस ट्र्रेन के मुंबई पहुंचने से पहले स्टेशन की साफ-सफाई के साथ ही विशेष लाइटों से सजाया जाता था। लाइटों को देखकर दूर ही लोग समझ जाते थे, कि फ्रंटियर मेल आने वाली है। यही नहीं इस गाड़ी के दिल्ली पहुंचने पर मुंबई के अधिकारियों को टेलीग्राम भेजा जाता था, कि रेलगाड़ी सुरक्षित पहुंच गई है।

PunjabKesari


सबसे ज्यादा पढ़े गए

swetha

Recommended News

Related News