जालंधर और अमृतसर बने नकली दवा मैन्युफैक्चरिंग के हब, ऐसे हो रही सप्लाई
punjabkesari.in Sunday, Nov 12, 2023 - 11:40 AM (IST)

जालंधर : दवा उत्पादन के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है तथा अमरीका और पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में दवा उत्पादन की लागत अमरीका और पश्चिमी देशों की तुलना में कम होने के कारण भारत का वित्तवर्ष 2021-22 में दवाइयों का निर्यात 24.62 अरब डॉलर से अधिक था। अरबों डॉलर की दवाओं का निर्माण करने वाले देश में नकली दवाइयों की भी कमी नहीं है। जिस दवा को मरीज स्वस्थ होने के लिए खा रहा होता है, अगर वही दवा नकली हो तो पहले से इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण बीमार पड़े व्यक्ति की जान पर बन आती है। नकली दवा व्यक्ति को स्वस्थ करने की बजाय उसे और बीमार करती जाती है। नकली दवा का सबसे बड़ा असर किडनी, लीवर और हार्ट पर पड़ता है। नकली दवाओं के प्रयोग से रोगी की जान भी जा सकती है।
नकली दवाओं का काला बाजार इतना बड़ा है कि नकली दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग करने वालों के आगे कानून के हाथ भी छोटे पड़ जाते हैं। राजनीतिक और उच्च अधिकारियों का संरक्षण होने के कारण नकली दवा बनाने वालों पर कोई हाथ नहीं डालता है। इस कारोबार की जड़ें इतनी फैल चुकी हैं कि पंजाब का जिला जालंधर और अमृतसर नकली दवा उत्पादन के हब बन गए हैं तथा इन जिलों से बड़े स्तर पर राज्य के दूसरे जिलों में नकली दवाओं के ब्रांडेड लैवल पर सप्लाई होती है।
कब बनती है नकली दवाएं
सूत्रों के मुताबिक मौसम बदलने के साथ ही वायरल सीजन शुरू हो जाता है और बाजार में दवाइयों की मांग बढ़ जाती है। इसी मौके का फायदा उठाकर नकली दवा बनाने वाले ब्रांडेड कंपनियों के ब्रांडेड नाम से थोक में नकली दवाइयों बाजार में उतार देते हैं और करोड़ों के बारे-न्यारे हो जाते हैं।
आम आदमी के लिए नकली दवा पहचान पाना मुश्किल
बाजार में ब्रांडेड कंपनी की ब्रांडेड नाम से बेची जाने वाली नकली दवा आम आदमी के लिए पहचान पाना मुश्किल काम है। क्योंकि जब वही नाम और वही साल्ट की दवा आम आदमी को दी जाती है तो वह पहचान ही नहीं पाता कि यह नकली है। भले ही आम आदमी दवा विक्रेता से दवा का बिल ही क्यों न ले ले।
नकली दवा बनाने के लिए साल्ट कहां से आता है?
सूत्रों के मुताबिक नकली दवा बनने के पीछे कुछ हद तक कुछ कंपनियां भी जिम्मेदार हैं। जब भी कोई दवा बनती है तो बड़ी मात्रा में उसकी स्क्रैप बचती है और यह स्क्रैप नकली दवा बनाने वाली कंपनियों के पास पहुंच जाती है। कंपनियों को स्क्रैप से पैसा बच जाता है और इसी का फायदा नकली दवा बनाने वाले उठाते हैं।
क्यू.आर. कोड से कुछ हद तक रुक सकती है नकली दवा की बिक्री
नकली वस्तुओं की बिक्री रोकने के लिए कंपनियों ने अपने उत्पादों पर क्यू.आर. कोड लगाने शुरू किए हैं। क्यू.आर. कोड की मदद से कौन सा उत्पादक कहां बना है और कब बना है आदि का पता चल जाता है। सरकार और दवा निर्माता कंपनियों को अपनी दवाइयों पर क्यू.आर. कोड लगाना यकीनी बनाना चाहिए।
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