जालंधर लोकसभा चुनावों के परिणामों पर निर्भर करते हैं नगर निगम चुनाव
punjabkesari.in Wednesday, Apr 19, 2023 - 11:18 AM (IST)

जालंधर: करीब 3 सप्ताह बाद जालंधर में लोकसभा के उपचुनाव होने जा रहे हैं जिसके लिए सभी राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेताओं ने इन दिनों जालंधर में डेरे डाल रखे हैं।
इस बार इन चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। इसी कारण हर पार्टी इन चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। इन चुनावों में खास बात यह है कि चाहे यह उपचुनाव 9 विधानसभा सीटों पर आधारित सीट पर हो रहा है परंतु सबसे ज्यादा सरगर्मी जालंधर में ही देखने को मिल रही है जहां हर आए दिन किसी ना किसी राजनीतिक पार्टी का बड़ा नेता आ धमकता है।
अजीब तरह की राजनीति का गढ़ बना जालंधर वैस्ट
यह उपचुनाव चाहे 9 विधानसभा क्षेत्रों में है परंतु जालंधर वैस्ट विधानसभा क्षेत्र सबसे अजीब तरह की राजनीति का गढ़ बना हुआ है। साल पहले हुए विधानसभा चुनावों के दौरान मुख्य मुकाबला कांग्रेस के सुशील रिंकू, 'आप' के शीतल अंगुराल तथा भाजपा के महेंद्र भगत के बीच था। तीनों ही उम्मीदवारों ने दूसरी विरोधी पार्टियों पर जमकर प्रहार किए और एक-दूसरे को हराने के लिए हर संभव प्रयास किया। वैस्ट में सुशील रिंकू और शीतल अंगुराल की पारंपरिक दुश्मनी किसी से छिपी हुई नहीं है। भाजपा में रहते हुए शीतल अंगुराल ने भी हर अवसर पर महेंद्र भगत को पटखनी देने का ही प्रयास किया।
वर्तमान की बात करें तो साल पहले एक दूसरे के दुश्मन तीनों नेता आज एक दूसरे का हाथ पकड़े नजर आते हैं। शीतल अंगुराल आज सुशील रिंकू के लिए वोट मांग रहे हैं और महेंद्र भगत अपने क्षेत्र के विधायक और हमेशा प्रतिद्वंद्वी रहे सुशील रिंकू की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। जिन नेताओं ने पिछले विधानसभा चुनावों में रिंकू को हराने के लिए जी तोड़ मेहनत की, अब उन्हीं नेताओं पर रिंकू को जिताने की जिम्मेदारी आन पड़ी है। एक ही साल में हुए हृदय परिवर्तन के ऐसे मामलों को अब क्षेत्र के मतदाता किस भावना से लेते हैं यह तो खैर आने वाला समय ही बताएगा परंतु इतना निश्चित है कि लोकसभा उपचुनाव के नतीजों पर न केवल वैस्ट की आगामी राजनीति निर्भर करती है बल्कि कुछ ही महीनों बाद होने वाले निगम चुनाव भी इन नतीजों से खासे प्रभावित होंगे।
क्या दोबारा कौंसलर बनने की मनोकामना पूरी होगी
कुछ ही महीनों बाद होने जा रहे जालंधर नगर निगम के चुनावों को देखते हुए पिछले कुछ सप्ताह से शहर के कई पूर्व पार्षद दलबदल करके दूसरी पार्टियों में जा चुके हैं। ज्यादातर पूर्व पार्षदों को लालच या आश्वासन दिया गया है कि उन्हें आगामी निगम चुनावों में भी कौंसलर की टिकट देकर नवाजा जाएगा। अब सवाल यह उठता है कि दोबारा कौंसलर बनने की चाह लेकर दलबदल कर चुके नेताओं की इच्छा क्या पूरी हो सकेगी। साल पहले हुए विधानसभा चुनाव दौरान आम आदमी पार्टी के नए-नए उभरे उम्मीदवारों ने अपनी पार्टी में शामिल कैडर को कौंसलर की टिकटों संबंधी जो आश्वासन दे रखे हैं, अब उनका क्या बनेगा।
ऐसे में कई वार्डों में टिकटों को लेकर कशमकश देखने को मिल सकती है। यह भी एक सवाल कईयों के मन में है कि अगर दलबदल करने वाले नेता टिकट लेने में कामयाब हो जाते हैं तो पार्टी कैडर में मेहनत करने वाले नेता क्या उनकी जीत को हजम कर पाएंगे। इसीलिए माना जा रहा है कि आगामी निगम चुनाव बहुत ही ज्यादा दिलचस्प, हंगामापूर्ण और अनिश्चितता से भरे होंगे।
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