किसान ट्रैक्टर मार्च: किसानों की मांगों के आगे झुकने को मजबूर हुई केंद्र !

punjabkesari.in Friday, Jan 22, 2021 - 12:56 PM (IST)

अमृतसर (दीपक): किसानों के आंदोलन में 26 जनवरी के ट्रैक्टर मार्च ने केंद्र सरकार को अब किसानों की मांगों के समक्ष झुकने पर मजबूर कर दिया है, क्योंकि देश के गणतंत्र की स्थापना के बाद अब यह पहला अवसर है कि जब किसान केंद्र सरकार के विरोध में समांतर ट्रैक्टर-परेड का लागू करने पर अटल है। जाहिर है यदि केंद्र सरकार अपना बचाव इस 26 जनवरी की परेड को रोककर कर सकती है तो किसानों की तीनों काले कानून वापस लेकर रद्द करने की मांग को मानना ही पड़ेगा। 

केंद्र सरकार की अब यही कोशिश होगी कि किसी न किसी तरीके से 26 जनवरी के ट्रैक्टर मार्च को रद्द करवाया जाए, इसलिए आज की होने वाली बैठक का फैसला 25 जनवरी तक की जाने वाली बैठकों तक भी जा सकता है, क्योंकि सरकार फूंक-फूंक कर धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही है। सरकार भयभीत होने के कारण किसानों की इस मांग को भी मान सकती है कि इन कानूनों को पांच वर्षों तक  लटक जाए, ताकि  आने वाली किसी भी पार्टी की सरकार इस मुद्दे से निपट सके। सरकार तीनों काले कानूनों को रद्द करके अपनी जिद्द को भी तोडऩा नहीं चाहती। कोई बीच का रास्ता निकलता हो तो शायद ही किसान उसे मान सके। किसानों को सरकार को और झुकाने का ढंग पूरी तरह से समझ में अब आ गया है। 

जहां तक सुप्रीम कोर्ट का संबंध है कोई भी न्यायधीश किसानों के पक्ष में तीनों काले कानूनों को रद्द करने का फैसला देने की हिम्मत नहीं कर सकता। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने अपना फैसला तो मास में करने के ऐलान को अपने आपको बचाने का एक हथकंडा अपनाया है। यदि केंद्र सरकार और किसानों के बीच 26 जनवरी से पहले यदि मामले का समाधान नहीं निकलता तो आंदोलन क्या रूप लेता है? 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली को यदि सरकार अपनी एजैंसियों द्वारा या शरारती तत्वों के सहयोग से गड़बड़ करके असफल करती है तो इसका अच्छा प्रभाव किसानों पर पडऩा लाजमी है। जैसा की केंद्र सरकार ने पंजाब के आढ़तियों, ट्रांसपोर्टो, कई किसान नेताओं पर एन.आई.ए. का प्रयोग करके अपनी बदनामी खुद करवाई है। 

किसान नेताओं ने सियासी नेताओं को अब तक अपने आंदोलन से रखा दूर 
वैसे सियासी हालात के मुताबिक भाजपा को छोड़ सभी सियासी पाॢटयां किसानों के आंदोलन का श्रेय और सहयोग लेने तो बिना पानी मछली के समान तडफ़ तो रही है, परंतु किसान नेताओं ने अब तक किसी राजनीतिक  पार्टीं के साथ अपनी सियासी स्टेज सांझी न करने के फैसले को अटल रखते हुए सभी सियासी नेताओं को अपने आंदोलन से तो दूर रखा है, परंतु आंतरिक रूप से जहां किसानों के इस आंदोलन में तन,  मन, धन से शिरोमणि अकाली दल ने अपना पूरा सहयोग जारी रखा हुआ है। वहां किसान नेता इस मुद्दे के रहस्य को बेनकाब नहीं कर रहे है। जाहिर है शिरोमणि अकाली दल जो अपने आपको किसान की पार्टी कहती है, किसानों के आंदोलन का सही सियासी सहयोग और लाभ इनको मिलना तय है। जहां तक कांग्रेस पार्टी और कैप्टन अमरेंद्र सिंह द्वारा सियासी लाभ उठाने की बात है। अकाली दल को लाभ पहुंचाने के लिए कई बार किसान नेता कांग्रेस की बयानबाजी का विरोध भी करते हैं। किसान आंदोलन से अकाली दल के सभी पुराने और मौजूदा दाग धोने में देरी नहीं लगेगी, जबकि अब 328 स्वरूपों का मुद्दा भी काफी हद तक ठंडा पड़ता जा रहा है, क्योंकि केंद्र सरकार ने अकाल तख्त के जत्थेदार से इस आंदोलन को खत्म करवाने की जो कोशिश की थी। 

अब ट्रैक्टर परेड को रोकना बहुत बड़ी चुनौती 
ताजा तस्वीर के अब दो पहलू सामने आए हैं। पहला यदि केंद्र सरकार समझौता करके किसानों की मांगों को मानकर या लटका कर कोई साजिश रचती है तो यह निर्भर करेगा किसानों पर कि वह क्या, कौन सा फैसला स्वीकार करते है। दूसरे पहलू पर नजर डाली जाए तो किसानों की मांगें यदि किसी भी समझौते के तहत पूरी नहीं होती तो केंद्र के समस्त किसानों के 26 जनवरी को होने वाली ट्रैक्टर परेड को रोकना बहुत बड़ी चुनौती होगी, जो किसी भी टकराव का कारण भी बन सकती है। पुलिस किसानों को दिल्ली के अंदर दाखिल नहीं होने देंगी और किसान रिंग रोड में दाखिल होकर अपना ट्रैक्टर मार्च जारी करने का फैसला नहीं बदलेंगे। जाहिर है तनाव पूर्ण वातावरण दोनों पक्षों में बढ़ भी सकता है, क्योंकि अब पंजाब के साथ हरियाणा के किसान भी उग्र विरोध करने के लिए बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं।
 


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Tania pathak

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