Military Fest: रक्षा विशेषज्ञों की राय कारगिल जैसी घटना को रोकने के लिए मजबूत खुफिया नैटवर्क समय की जरूरत

punjabkesari.in Monday, Dec 16, 2019 - 09:22 AM (IST)

चंडीगढ़(पाल): रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि कारगिल जैसी किसी अन्य घटना को रोकने के लिए खुफिया नैटवर्क को अधिक मजबूत करने की जरूरत है। ‘लैसंस लर्न्ट फ्रॉम द कारगिल वॉर एंड देयर इम्प्लीमैंटेशन’ विषय पर करवाए गए सत्र में हिस्सा लेते हुए रक्षा सचिव (अवकाश प्राप्त) शेखर दत्त ने आज यहां कहा कि हमें केंद्रीय और राज्य स्तर पर खुफिया और निगरानी प्रणाली को मजबूत करने की जरूरत है। 

कारगिल जैसी  घटनाओं से बचने के लिए अधिक से अधिक खुफिया संगठन बनाने पर दिया जोर

लैफ्टिनैंट जनरल जे.एस. चीमा और एयर मार्शल निर्दोष त्यागी समेत सभी पैनलिस्टों ने कारगिल जैसी अचानक घटने वाली घटनाओं से बचने के लिए अधिक से अधिक खुफिया संगठन बनाने और विकसित करने पर जोर दिया। विचार-विमर्श में हिस्सा लेते हुए दत्त ने कहा कि कारगिल ने भारतीय फौज को अचंभे में डाल दिया था कि हमारी सीमा के अंदर घुसपैठिए कैसे आ सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं को टालने के लिए हमें खुफिया तंत्र और निगरानी के सांझे रास्ते विकसित करने पड़ेंगे जिससे अधिक से अधिक तैयारी को यकीनी बनाने के लिए हमारे सुरक्षा बलों को कार्रवाई करने योग्य जानकारी मुहैया करवाई जा सके।  उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा देश के लिए सबसे अधिक प्राथमिकता देने वाला और बुनियादी ढांचे की अपेक्षा कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण मसला है। इसलिए खुफिया प्रणाली को मजबूत करने और इस मंतव्य के लिए  सुरक्षा बलों के ऑप्रेशन कमांडर को हर  संदिग्ध गतिविधि से निपटने के लिए जरूरी साजो-सामान की खरीद के लिए और ज्यादा बजट मंजूर करने की जरूरत है। 

पाबंदी न होती तो 20 दिन पहले खत्म होनी थी कारगिल की लड़ाई

एयर मार्शल त्यागी ने कारगिल जंग के वायु सेना के हमले के 2 वीडियो प्रदॢशत किए जिनमें उन्होंने खुलासा किया कि वायु सेना इतनी ऊंचाई पर ऑप्रेशन करने के लिए उचित रूप में शिक्षित और हथियारों से लैस नहीं थी और हमारे लड़ाकू जहाज (जैट्स) भी कारगिल जैसी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं किए गए थे। उन्होंने कहा कि कारगिल समीक्षा कमेटी ने बताया कि हालात का सही मूल्यांकन करने के लिए फौज ने बहुत लंबा समय लगा दिया, फिर जाकर अहसास हुआ कि स्थिति कितनी गंभीर है और ऑप्रेशन को बुरी तरह प्रभावित करती है और एल.ओ.सी. को पार न करने की रोक के कारण काम और भी चुनौतीपूर्ण हो गया था। यदि एल.ओ.सी. पार करने की पाबंदी न होती तो कारगिल की लड़ाई 15 से 20 दिन पहले खत्म होनी थी। उन्होंने कहा कि कारगिल की लड़ाई ने दिखा दिया कि वायु ताकत को इस तरह की ऊंचाई पर प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है और फौज के उचित प्रयोग और फौज और वायु सेना के आपसी तालमेल से कम जानी नुक्सान और जमीनी कार्रवाई को सफल बनाया जा सकता है। 
2001 में की गई थी ‘चीफऑफ डिफैंस स्टाफ’ की स्थापना

मिलिट्री फैस्ट के आखिरी दिन ‘चीफऑफ डिफैंस स्टाफ’ के पद के विषय पर पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया। इसका संचालन लैफ्टिनैंट जनरल रिटायर्ड अदित्य सिंह ने किया। वही, साथ ही एयर मार्शल रिटायर्ड मनमोहन बहादुर, पूर्व रक्षा सचिव शेखर दत्त, नई दिल्ली में ब्रिटिश हाई कमिश्नर के सलाहकार ब्रिगेडियर जैविन थोमसन और लै. जनरल रिटायर्ड संजीव लंगेर ने शिरकत की। साल 1999 के कारगिल युद्ध के बाद साल 2001 में मंत्रियों के समूह ने इस पद की स्थापना की सिफारिश की थी। लै. जनरल अदित्य सिंह ने कहा कि इस पद की सृजना करने का मुख्य मकसद थल सेना, जल सेना और वायु सेना के बीच बेहतर तालमेल यकीनी बनाना था। उन्होंने कहा कि ‘चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ’ रक्षा संबंधी सलाह देने के साथ-साथ सेनाओं के अलग-अलग अंगों में तालमेल की भूमिका निभाएगा। 

नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 231 से कम होकर 90 पर आई

 डायरैक्टर काऊंटर इंनसरजैंसी ब्रिगेडियर बी.के. पंवार, रॉ के पूर्व डायरैक्टर के.सी. वर्मा, दिल्ली स्कूल ऑफ इक्नॉमिक्स की प्रो. नंदिनी सुंदर ने रैड कॉरिडोर के विषय पर विचार-चर्चा के दौरान कहा कि साल 2005 व 06 में जहां देश के 231 जिले पशुपति से लेकर तिरुपति तक नक्सलवाद से प्रभावित थे, वहीं आज इन जिलों की संख्या केवल 90 रह गई है।

जल सेना के गुप्त ऑप्रेशन के विभिन्न पक्षों पर हुई चर्चा

पाकिस्तान के साथ सन 1971 की जंग के समय भारतीय जल सेना के गुप्त ऑप्रेशन पर लिखी किताब ‘अनटोल्ड स्टोरी ऑफ इंडियाज कोवर्ट नेवल वॉर इन ईस्ट पाकिस्तान, 1971’ पर पैनल में डिस्कशन की गई। एम.एन.आर. सामंत और संदीप ओनीथान द्वारा लिखी यह किताब बंगलादेश की आजादी की जंग संबंधी भारतीय जल सेना के गुप्त ऑप्रेशन एक्स का अहम दस्तावेज है। किताब के सह-लेखक संदीप ओनीथान ने बताया कि पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान में नस्लीयता शुरू कर दी थी जिस कारण लाखों लोगों को शरणाॢथयों के तौर पर भारत आने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह शरणार्थी बंगलादेश बनाने के लिए अंडर वॉटर गुरिल्ला ऑप्रेशन का प्रशिक्षण लेने के लिए तैयार हुए थे।

10 टैंकों के साथ दुश्मन के 90 से अधिक टैंकों को बनाया निशाना 
इसराइली लोगों के समर्पण और साहसी वचनबद्धता की भावना ने हमेशा ही उनको अरब देशों द्वारा किए गए हमलों का डटकर मुकाबला करने में मदद की है। जंग के दौरान उन्होंने बहुत फुर्ती से टैंकों की मुरम्मत और नवीनीकरण करके हथियारों से लैस दुश्मन का मुकाबला किया। ‘द गोलान हाइट्स-1973’ के विषय पर चर्चा करते हुए इसराइलियों के राष्ट्रवाद की भावना की सराहना की गई।  इसराइली मेजर जनरल योशी बेन हानन ने जंग में अपने दिनों के बारे में बताते हुए कहा कि उनके पास शुरूआत में सिर्फ 10 टैंक थे परन्तु जब उन्होंने दुश्मन के टैंकों को निशाना बनाकर अच्छा प्रदर्शन करना शुरू किया तो अन्य बटालियनों के टैंक भी उनके साथ आ मिले। अपने 10 टैंकों के साथ उन्होंने दुश्मन के 90 से अधिक टैंकों को निशाना बनाया था। 


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