सतलुज-ब्यास प्रदूषण मामला: NGT ने रिव्यू पिटीशन की खारिज, देने होंगे 50 करोड़

punjabkesari.in Thursday, Jan 28, 2021 - 01:58 PM (IST)

जालंधर: राज्य को सतलुज और ब्यास नदियों को प्रदूषित करने के लिए 50 करोड़ रुपए का पर्यावरण मुआवजा देने की जो रिव्यू पिटीशन पंजाब सरकार द्वारा 2018 के आदेश के खिलाफ दायर की थी, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उसे खारिज कर दिया है। 22 जनवरी को मामले की सुनवाई करते हुए, एनजीटी ने पंजाब को निर्देश दिया कि सतलुज और ब्यास नदियों के पर्यावरणीय पुनर्स्थापन के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) के पास 50 करोड़ जमा करवाने होंगे। 

जानकारी के अनुसार पंजाब सरकार ने 19 जनवरी को NGT को दो रिव्यू पटीशन दायर की थीं और कहा था कि राज्य ने कई उपाय किए हैं, जिसमें नदियों से जुड़े नालों का इन-सीटू रीमेडिएशन भी शामिल है। आवेदन में कहा गया है, "राज्य लुधियाना में बुड्ढे नाले के भूनिर्माण पर 50 करोड़ खर्च करने को तैयार है।"

एनजीटी ने कहा कि पंजाब की अपील को पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था और ट्रिब्यूनल के निर्देश को शीर्ष अदालत के आदेश में मिला दिया गया था, इसलिए किसी भी समीक्षा की अनुमति नहीं थी। एनजीटी के आदेश में कहा गया है कि एक साल पहले राज्य की अपील को खारिज करने के बाद भी, 2018 के आदेश का अनुपालन नहीं किया गया है जिसके लिए उन्हें कोई सही कारण नहीं मिला। भविष्य में कदम उठाना हो चुके नुकसान का मुआवजा देना नहीं है।

ट्रिब्यूनल ने कहा कि राज्य को जरुरी आदेशों के अनुपालन का मॉडल होना चाहिए लेकिन “यह कानून के शासन के लिए कोई सम्मान नहीं है।” NGT ने निर्देश दिया कि राशि को CPCB के पास जमा करने की आवश्यकता है, जैसा कि पहले से ही एक योजना के संदर्भ में बहाली पर खर्च करने के लिए CPCB द्वारा मंजूर है। एनजीटी ने आदेश का समापन करते हुए कहा कि “CPCB अध्यक्ष के पुनः विचार के लिए पंजाब द्वारा एक ड्राफ्ट प्लान तैयार किया जा सकता है। यह मुख्य रूप से नदियों की पर्यावरण-बहाली को लेकर होना चाहिए।” 

14 नवंबर, 2018 को, एनजीटी ने अनियंत्रित औद्योगिक निर्वहन (Uncontrolled industrial discharge) के कारण सतलुज और ब्यास को प्रदूषित करने के लिए पंजाब सरकार पर 50 करोड़ का जुर्माना लगाया था। इसने निर्देश दिया कि सीपीसीबी के पास जमा की गई राशि का उपयोग पर्यावरण की बहाली और पीड़ितों को राहत देने के लिए किया जाएगा, जिसमें उद्योग, स्थानीय निकायों, व्यक्तियों और लापरवाह अधिकारियों से राशि वसूलने की स्वतंत्रता होगी।


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Sunita sarangal

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