पंजाब चुनावों में मुद्दे गायब, लग रहे चेहरों पर दाव

punjabkesari.in Friday, Jan 28, 2022 - 02:55 PM (IST)

जालंधर(सोमनाथ): पंजाब विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। दल बदले जा रहे हैं और बागियों की बल्ले-बल्ले हो रही है। इसके साथ ही नशा, चुनावी फंडिंग और मनी लॉड्रिंग के केस भी खुल रहे हैं। ई.डी. की कार्रवाइयों को बदले की राजनीति बताया जा रहा है। 20 फरवरी को होने वाले मतदान के लिए करीब 25 दिन का समय बचा है। 

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ये विधानसभा चुनाव जनता के किन मुद्दों पर लड़े जा रहे हैं वे मुद्दे चुनावी परिदृश्य से लगभग गायब हैं और मुख्यमंत्री के चेहरे पर सियासत हो रही है। मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर नवजोत सिंह सिद्धू के पंजाब कांग्रेस प्रधान बनने के बाद सियासत तेज हो गई है। हालांकि कांग्रेस में अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि मुख्यमंत्री फेस कौन होगा चरणजीत सिंह चन्नी या नवजोत सिंह सिद्धू। मुख्यमंत्री फेस की घोषणा को लेकर कांग्रेस भी फंसी हुई प्रतीत होती है। अगर नवजोत सिंह सिद्धू को मुख्यमंत्री के रूप में घोषित किया जाता है तो दलित वर्ग की नाराजगी झेलने पड़ सकती है और अगर चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस खुलकर मुख्यमंत्री फेस घोषित करती है तो नवजोत सिंह सिद्धू और जाट वोट बैंक की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। 

मुख्यमंत्री पद और चुनावों में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर शुरू हुई लड़ाई में कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथों कुर्सी तो जाती ही रही साथ में उन्हें कांग्रेस छोड़कर प्रतिष्ठा की लड़ाई में अपनी पार्टी तक बनानी पड़ गई और अब वह भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू फिर भी न तो मुख्यमंत्री बन पाए और न ही अभी तक मुख्यमंत्री फेस घोषित हुए हैं। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की तरफ से सांसद भगवंत मान को मुख्यमंत्री फेस के तौर पर चुनाव में उतारा गया है। वहीं किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा करने वाली भारतीय जनता पार्टी भी अभी तक मुख्यमंत्री फेस की घोषणा नहीं कर पाई है। चाहे देश की दोनों बड़ी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री फेस की घोषणा चुनाव नतीजों के बाद होगी वर्तमान में जनता के मुद्दों पर कोई बात नहीं कर रहा है।

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2017 में ये थे चुनावी मुद्दे 
पंजाब में 15वीं विधानसभा के लिए 2017 में चुनावों में नशा मुख्य मुद्दे के रूप में उभरा था। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में नशे के मुद्दे ने पंजाब की अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार को हिलाकर रख दिया था। हालांकि गठबंधन सरकार ने नशे पर काबू पाने के काफी प्रयास किए लेकिन अपने प्रयासों में गठबंधन सरकार सफल नहीं हो पाई और अंतत: पंजाब की सत्ता हाथों से जाती रही। वहीं नशे का खात्मे के लिए गुटका साहिब की शपथ लेकर सत्ता में आए कैप्टन अमरिंदर सिंह भी नशे पर पूरी तरह से काबू नहीं पा सके और पंजाब में नशे से कई मौतों के बाद आज भी यह मुद्दा कायम है। 

नशे के बाद दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा किसानी आत्महत्याओं का था। कृषि प्रधान पंजाब में चुनावों के दौरान किसानों के कर्ज का मुद्दे हमेशा हावी रहा है। 2017 के विधानसभा चुनावों में किसानों द्वारा कर्ज के कारण  की जा रही आत्महत्याओं का मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया और किसानों का सारा कर्ज माफ करने का वादा कर कैप्टन अमरिंदर सिंह सत्ता में आए थे। नशा और किसानी कर्ज के अलावा तीसरा मुद्दा बड़ा गैंगस्टरों और लॉ एंड ऑर्डर का था। गैंगस्टरों और नशे के बढ़ते कारोबार के कारण लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति पर सवाल उठाए जा रहे थे। नाभा जेल ब्रेक कांड चिंता का विषय बन गया था। राज्य में 57 गैंगस्टरों और 20 हजार के करीब भगौड़े अपराधियों के खुलेआम घूम रहे थे। 

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चुनाव आयोग ने भी गैंगस्टरों और अपराधियों के मामले में चिंता जाहिर की थी। हालांकि कांग्रेस की सरकार आने पर गैंगस्टर विक्की गौंडर के एनकाउंटर के साथ गैंगस्टरों का सफाया शुरू हो गया था। एनकाउंटर के डर से गैंगस्टर स्वयं गिरफ्तारियां देने लग पड़े थे लेकिन इसके आज भी गैंगस्टरों के मॉड्यूलों की उपस्थिति दर्ज हो रही है और पंजाब में आतंकवाद का भी खात्मा नहीं हो सका है। सबसे अहम मुद्दे बेअदबी का था। पंजाब में कांग्रेस को सत्ता में आए पांच साल पूरे होने वाले हैं लेकिन आज तक बेअदबी के दोषियों को सजा नहीं मिल पाई है।

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Content Writer

Sunita sarangal

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