शताब्दी साल में शिरोमणि अकाली दल (बादल) फिर नए संघर्ष की ओर

punjabkesari.in Wednesday, Dec 16, 2020 - 12:10 PM (IST)

 चंडीगढ़(हरिश्चंद्र): शिरोमणि अकाली दल (बादल) के गठन को 100 साल बीत गए हैं मगर पार्टी अपनी 100वीं सालगिरह का जश्न नहीं मना पाई। लंबे संघर्ष के बाद अकाली दल बना था और आज फिर एक अलग ही संघर्ष पंजाब से चल कर दिल्ली की सत्ता के दरवाजे तक पहुंच गया है। अकाली दल को सिखों का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टी माना जाता है और खास बात यह है कि आज जो किसान बीते करीब तीन महीने से संघर्ष कर रहे हैं, उस पर भी अकाली दल अपना दावा जताता रहा है।

मगर पिछले साढ़े 5 महीने के दौरान अकाली दल ने जिस तरह से पहले कृषि बिलों का खुलकर समर्थन किया, पंजाब में इन बिलों की पैरवी की, उसके बाद उसका यह आधार खिसकने लगा था। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने किसानों के साथ दगा करने के आरोपों को इस दौरान जमकर प्रचारित किया। वक्त की नजाकत को समझते हुए अकाली दल ने अपनी एकमात्र केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर का इस्तीफा दिलाने के बाद राजग से अलग होने का भी ऐलान किया लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। यही वजह है कि किसानों का खो चुका विश्वास दोबारा हासिल करने के लिए अकाली दल ने श्री आनंदपुर साहिब का समारोह भी रद्द कर दिया।किसानों का समर्थन तो पार्टी भविष्य में फिर हासिल करने में कामयाब हो सकती है मगर इस मौके पर उसे अब अन्य अकाली दलों से भी जूझना पड़ रहा है।

पार्टी से अलग हुए वरिष्ठ नेताओं और अन्य अकाली दलों का कहना है कि अकाली दल (बादल) को 100वीं सालगिरह मनाने का कोई हक नहीं है। पार्टी एक परिवार तक सीमित है, जो गठन के समय के अकाली दल की मूल भावना के खिलाफ है। गौरतलब है कि 1996 में मोगा रैली के दौरान अकाली दल ने थोड़ी नरम छवि बनाने के प्रयास में भाजपा के साथ राजनीतिक सांझेदारी करते हुए पंजाबियत का एजैंडा अपनाया था। उसके बाद से 24 साल तक दोनों दल हिंदू-सिख एकता के नाम पर साथ-साथ चलते रहे हैं। अब एन.डी.ए. से अलग होने के बाद अकाली दल की जिम्मेदारी बढ़ गई है क्योंकि अब उसे सिखों की सियासत करने के लिए अपने तौर-तरीकों में बदलाव लाना होगा और पार्टी की छवि भी सिखों के इर्द-गिर्द रखनी होगी।

‘सुखबीर बादल के नेतृत्व में अकाली दल बना कार्पोरेट बॉडी: सुखदेव सिंह ढींडसा’
इस मसले पर अकाली दल (डैमोक्रेटिक) के सुखदेव सिंह ढींडसा ने कहा है कि हमारी मंशा थी कि अकाली दल की 100वीं सालगिरह पर बड़े पैमाने पर समारोह मनाते मगर किसानी संघर्ष के कारण अपना मोगा वाला कार्यक्रम भी रद्द कर दिया है। अकाली दल ने बड़ी कुर्बानियां दीं, गुरु घरों को आजाद कराया। बड़ा सुनहरी इतिहास है शिरोमणि अकाली दल का, जब जुनूनी अकाली दल था लेकिन अब अकाली दल बादल सुखबीर सिंह बादल के आने से कार्पोरेट बॉडी बन कर रह गया है।
पार्टी के ही अन्य नेता बीर दविंदर सिंह का कहना है कि 100 साल बाद अब शिरोमणि अकाली दल और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को पुनर्गठित करना जरूरी हो गया है। अकाली दल ने महंतों के कब्जों से गुरुद्वारों को आजाद कराने के लिए लंबा संघर्ष करके एस.जी.पी.सी. बनाई थी मगर अब बादलों द्वारा गुरुद्वारों के महंत बदले जाते हैं। एस.जी.पी.सी. पर लंबे समय से बादलों का कब्जा है और वहां कितने ही घोटाले सामने आ चुके हैं।

‘अब बादल अपने परिवार से अकाली दल को आजाद करें : पीर मोहम्मद’
अकाली दल टकसाली के महासचिव और प्रवक्ता करनैल सिंह पीर मोहम्मद का कहना है कि अकाली दल के 100वें साल में प्रकाश सिंह बादल को भी अकाली दल अपने परिवार से आजाद करने की घोषणा करनी चाहिए। अकाली दल बीते 100 साल से सिखों के सम्मान के लिए संघर्ष करता रहा है। आजादी के आंदोलन में भी सिखों ने कितनी ही कुर्बानियां दीं मगर 1996 के बाद से पार्टी की धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक छवि बिगड़ चुकी है। यही वजह है कि अब कितने ही अकाली दल पंजाब में बन चुके हैं।सिमरनजीत सिंह मान के नेतृत्व वाले शिरोमणि अकाली दल अमृतसर ने भी कहा है कि प्रकाश सिंह बादल संगत का भरोसा खो चुके हैं। उन्हें शिरोमणि अकाली दल की 100वीं वर्षगांठ मनाने का कोई हक नहीं है, क्योंकि वह 1996 में ही मोगा रैली के दौरान अकाली दल का एजैंडा छोड़कर पार्टी को पंजाबी पार्टी बना चुके हैं।

‘देश की दूसरी सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, लेकिन क्षेत्रीय से आगे नहीं बढ़ी’
शिरोमणि अकाली दल देश की दूसरी सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है, क्योंकि कांग्रेस के बाद इसका गठन हुआ था। 100 बरस के दौरान जहां कांग्रेस देश के हर राज्य में अपनी मौजूदगी बना चुकी है, वहीं अकाली दल क्षेत्रीय पार्टी से ऊपर नहीं उठ पाया है। अकाली दल ने हालांकि एक दशक के दौरान पंजाब से बाहर विस्तार का प्रयास किया लेकिन हरियाणा और दिल्ली को छोड़कर और कहीं पर भी सफलता हासिल नहीं हो पाई।


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