केंद्रीय मंत्रालय से हरसिमरत बादल के इस्तीफे के क्या हैं मायने!

punjabkesari.in Friday, Sep 18, 2020 - 01:28 PM (IST)

चंडीगढ़: कृषि ओडीनैसों पर शिरोमणि अकाली दल की नाराजगी गुरूवार को खुलकर सामने आ गई। गुरूवार को लोकसभा में दो बिलों पर चर्चा दौरान अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने कहा कि उनकी पार्टी इन बिलों के पक्ष में नहीं है और इसलिए मंत्री हरसमिरत कौर बादल इस्तीफा दे रही हैं। इससे थोड़ी देर बाद ही हरसिमरत ने इस्तीफा दे दिया, जिसको शुक्रवार सुबह स्वीकार कर लिया गया। गठबंधन रहेगा या नहीं फिलहाल इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है परन्तु ज्यादातर अकाली नेता इस इस्तीफे के बाद सख्त फैसला लेने के लिए पार्टी हाईकमान पर दबाव बना रहे हैं। 

क्या हैं हरसिमरत के इस्तीफे के मायने
खेती प्रधान क्षेत्र मालवे में अकाली दल की अच्छी पकड़ है। अकाली दल को 2022 के विधानसभा चुनाव नजर आ रहे हैं। इस्तीफा देना मजबूरी भी बन गई थी क्योंकि चुनाव में अब लगभग डेढ़ साल का समय ही बचा है। ऐसे में अकाली दल किसानों के एक बड़े वोट बैंक को अपने खिलाफ नहीं करना चाहता है। दूसरा अकाली दल हमेशा यह बात कहता आया है कि किसानों के लिए वह कोई भी बलि दे सकता है, लिहाजा इस इस्तीफे के साथ यह भी संदेश देने का यत्न किया गया है कि किसानी हितों के लिए अकाली दल किसी भी हद तक जा सकता है। 

चारों तरफ से बनाया गया दबाव
बेअदबी और पार्टी की अंदरूनी फूट के साथ जूझ रहे अकाली दल के लिए यह बिल गले की हड्डी बन गए थे क्योंकि अगर अकाली दल इनके लिए हामी भरता है तो राज्य के बड़े वोट बैंक किसानी से हाथ धोना पड़ता। उधर, दूसरी बार मंत्री बनी हरसिमरत पर इन बिलों को लेकर पद छोडऩे का दबाव भी बना हुआ था। 

2 गुटों में बंटा अकाली दल 
पंजाब में बिलों के विरोध में अकाली दल के अलग-अलग नेता हरसिमरत के इस्तीफे को लेकर दो गुटों में बांटे गए थे। सूत्रों अनुसार, अकाली दल के कई सीनियर नेता पार्टी प्रधान को कह चुके थे कि अकाली दल का अस्तित्व किसानों को लेकर ही है। इसलिए अगर केंद्र बात नहीं मानता है तो हरसिमरत को इस्तीफा दे देना चाहिए। यहां ही बस नहीं अब जब हरसिमरत का इस्तीफा मंजूर हो गया है तो ऐसे में अकाली दल के ज्यादातर नेता अब गठबंधन पर भी फैसला लेने के लिए दबाव बना रहे हैं। अकाली दल के सीनियर नेता बलविन्दर सिंह भून्दड़ तो यहां तक कह चुके हैं कि अकाली दल को भाजपा की बैसाखी की जरूरत नहीं है। 

एक तीर के साथ लगाए दो निशाने
बेशक्क अकाली दल को कृषि ओडीनैंसों का समर्थन करने पर काफी किरकिरी का सामना करना पड़ा था परन्तु अकाली दल ने अब एक तीर के साथ दो निशाने लगाने की कोशिश की है। एक तो अकाली दल अपना किसानी वोट बैंक बहाल करना चाहता है और दूसरा वह भाजपा के साथ गठबंधन भी हटाने की कोशिश कर रहा है। राजनीतिक माहिरों मुताबिक अकाली दल अंदरूनी तौर पर यह भी जान चुका है कि बीते समय से भाजपा ने उसे अधिक तवजो नहीं दी जबकि कुछ बागी नेताओं के द्वारा उल्टा अकाली दल को राजनीतिक में नीचा गिराने की कोशिश जरूर की जा रही है। ऐसे में अकाली दल के कुछ नेताओं का मानना है कि इससे पहले भाजपा उनको लाल झंडा दिखा दे क्यों न वह खुद ही ऐसा फैसला करें जिससे किसानी और पंथक वोट बैंक में उनकी लाज बच जाए। 


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Vaneet

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