फतेहवीर की मौत के लिए आखिरकार कौन जिम्मेदार !

punjabkesari.in Tuesday, Jun 11, 2019 - 03:52 PM (IST)

संगरूर: गांव भगवानपुरा का 2 वर्षीय मासूम फतेहवीर आखिरकार जिंदगी की जंग हार गया। 9 इंच के बोरवैल में 150 फुट की गहराई तक 5 दिन जिंदगी और मौत के साथ-साथ लड़ते हुए आखिरकार फतेह ने मंगलवार सुबह सबको अलविदा कह दिया।  फतेह 6 जून को सांय 4 बजे घर के बाहर बने बोरवैल में गिर गया था। उसको निकालने  के लिए 110 घंटों तक का लम्बा रैसक्यू आप्रेशन चलाया गया। जिला प्रशासन, एन.डी.आर.एफ. और समाज  सेवीं संस्थाओं ने फतेह के रैसक्यू करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, परन्तु फिर कमी कहां रह गई? आखिर क्यों  फतेहवीर के बचाव कार्य में वह तेजी नहीं आई, जो आनी चाहिए थी। उस मासूम का असली गुनाहगार कौन है? इन सवालों के जवाब शायद कभी न मिलें।  

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तकनीक की कमी
आज हर तरफ डिजिटल इंडिया का बोलबाला है, परन्तु फतेह के मामले में उच्च तकनीक का प्रयोग क्यों नहीं किया गया? क्या आधुनिक मशीनों का प्रयोग करने की जरूरत नहीं थी? गड्ढा खोदने का काम मशीनों की बजाए   हाथ से क्यों किया गया। वहीं जो गड्ढा खोदा गया था, उसका प्रयोग तो फतेहवीर को बाहर निकालने के लिए किया ही नहीं गया। रैसक्यू आपरेशन के दौरान बालटियों के साथ मिट्टी निकाली गई। यदि आज फतेहवीर इस दुनिया को अलविदा कह गया है तो उसके लिए कहीं न कहीं प्रशासन जिम्मेदार है, जो हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल करने में असमर्थ नजर आया। 

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सेना को क्यों नहीं सौंपी गई कमान  
जब रैसक्यू टीमें फतेहवीर को बाहर निकालने में असमर्थ नजर आई तो उस समय सेना की मदद क्यों नहीं ली गई। भारतीय सेना विश्व की उत्कृष्ट सेनाओं में जानी जाती है। सेना के पास माहिरों के साथ-साथ ऐसी स्थिति से निपटने का प्रशिक्षण होता हैं।  

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रैसक्यू आप्रेशन में नहीं दिखाई गई फुर्ती
फतेह के रैसक्यू आप्रेशन में मुस्तैदी नहीं दिखाई गई। प्रशासन, एन.डी.आर.एफ. या फिर पुलिस किसी को भी फतेह को बाहर निकालने की कोई जल्दी ही नहीं थी। इस लेट लटीफी का नतीजा आज सब के सामने है। 

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वोट मांगने में अव्वल पर मुसीबत में गंभीर दिखाई नहीं दिए नेता 
चुनाव के समय जनता का पानी भरने वाले नेता भी इस मामले में कोई बहुत गंभीर दिखाई नहीं दिए। बस, आए और हाजिरी लगवा कर चलते बने। बेशक कैबिनेट मंत्री विजेइन्दर सिंगला मौके पर आए और काफी देर वहां रहे भी, परन्तु उनकी मौजूदगी का कोई खास फायदा नहीं हुआ। वहीं विधायक परमिद्र ढींडसा तथा सांसद भगवंत मान ने भी एक चक्कर लगाकर अपना पल्ला झाड़ लिया। चुनाव के समय गाड़ियों पर भंगड़ा डालने वाले मान की आवाज इस मामले में दबी क्यों रही? यदि यही हादसा चुनाव से चार दिन पहले हुआ होता तो पूरे पंजाब की लीडरशिप ने भगवानपुरा में डेरे लगा लेने थे। 

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सरकार की लापरवाही 
फतेह के मामले में सबसे बड़ा गुनाहगार पंजाब सरकार को माना जा रही है। शुरू से लेकर आखिर तक सरकार ने अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभाई और न ही इस मामले की पूरी पैरवी की। ऐसे मौके पर हर तरह की मशीनरी और अपेक्षित सुविधा मुहैया करवाना सरकार का फर्ज होता है। इस सबकी मांग करना डी.सी. की ड्यूटी है, पर अफसोस कि उन्होंने अपनी बात सही ढंग से नहीं रखी।  मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने भी मामले की 4 दिन बाद सुध ली।


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परिवार की जिम्मेदारी 
सरकार की जिम्मेदारी की बात तो हो गई, परन्तु इस  मामले में परिवार की जिम्मेदारी को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। बिना शक कोई भी माता-पिता अपने बच्चे को मौत के मुंह में नहीं डालते परन्तु सावधानी बहुत जरूरी होती है। खास कर तब जब पता हुए कि आस-पास खतरनाक बोरवैल अन्य चीजें हैं। 

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