हाल-ए-सिविल सर्जन कार्यालय:नया सामान खरीदने के लिए करोड़ों और पुराना ठीक कराने के लिए कोई पैसा नहीं

punjabkesari.in Monday, Sep 23, 2019 - 09:02 AM (IST)

जालंधर(रत्ता): किसी न किसी मुद्दे को लेकर चर्चा में रहने वाले सिविल सर्जन कार्यालय के अधिकारियों व बाबुओं की ढीली एवं घटिया कार्यप्रणाली के किस्से यूं तो अक्सर सुनने को मिलते हैं लेकिन इस बार जो बात सामने आई है, वह वाकई हैरान कर देने वाली है।इस दफ्तर में हर साल नया सामान खरीदने के लिए तो अधिकारी सरकार से करोड़ों रुपए की डिमांड कर लेते हैं और वह पैसा आ भी जाता है जबकि पुरानी चीजों को ठीक करवाने के लिए पैसे न होने का बहाना बनाया जाता है जिससे पुरानी चीज कंडम हो जाती हैं और फिर उसके बाद वही चीज नई खरीद ली जाती है। इसके पीछे क्या कारण होगा यह किसी को बताने की जरूरत नहीं।

क्लर्क फोन करके लोगों को कहते हैं कि चिट्ठी ले जाओ

दफ्तर की ओर से किसी को कोई नोटिस निकालना हो या फिर किसी इंक्वायरी संबंधी किसी व्यक्ति को चिਟ੍ਠੀ के माध्यम से सूचना देनी हो तो इस दफ्तर में डिस्पैच पर बैठे क्लर्क महोदय संबंधित व्यक्ति को फोन करके कहते हैं कि अपनी चिट्ठी ले जाओ क्योंकि शायद उनके पास डाक टिकटें नहीं होतीं।

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काफी समय से खराब पड़ी है फोटोस्टेट मशीन

इस दफ्तर में एक ही फोटोस्टेट मशीन है जोकि पिछले काफी समय से खराब पड़ी है और उसे ठीक करवाने के लिए शायद विभाग के पास पैसे नहीं है। फोटोस्टेट मशीन खराब होने के कारण या तो स्कैनर से जरूरी कागज स्कैन करके प्रिंट निकाल लिया जाता है या फिर बाबू लोग दफ्तर में काम करवाने हेतु आने वाले लोगों की सेवाएं लेते हैं।

दीवारें तो हैं पर छत डलवाने के लिए पैसे नहीं

इसी दफ्तर में कुछ समय पहले पुराना रिकार्ड रखने के लिए किसी अधिकारी ने कुछ वर्ष पहले दफ्तर में ही एक जगह पर चारदीवारें तो बनवा लीं लेकिन उसके बाद शायद छत डलवाने के लिए पैसे नहीं बचे और वे दीवारें आज भी छत का इंतजार कर रही हैं।

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दफ्तर के प्रांगण में लगे रहते हैं कूड़े के ढेर

यूं तो दफ्तर के अधिकारी समय-समय पर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने की बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं और उन्हें स्वच्छता के लिए प्रेरित करते रहते हैं जबकि वास्तव में दफ्तर के अधिकारी कभी अपने प्रांगण में देखते ही नहीं हैैं। इस वक्त दफ्तर के प्रांगण में कूड़े का इतना बड़ा ढेर लगा है कि वहां आने वाले समय में कभी भी बीमारियां फैल सकती हैं।

खड़ी-खड़ी कंडम हो जाती हैं गाडिय़ां

इस दफ्तर की ढीली कार्यप्रणाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब कोई गाड़ी खराब हो जाती है तो उसे ठीक करवाने की जरूरत ही नहीं समझी जाती और वह खड़ी-खड़ी कंडम हो जाती है। यही बस नहीं ऐसी कंडम हुई गाडिय़ों को अगर समय पर बेचा जाए तो अच्छे पैसे मिल सकते हैं लेकिन ये गाडिय़ां तब तक नहीं बेची जातीं जब तक कबाड़ न बन जाएं।

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Reported By

Bhupinder Ratta

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