Sushil Rinku का ये Style नहीं भाया Jalandhar वालों को.. Flop हुआ Experiment
punjabkesari.in Friday, Jun 07, 2024 - 01:56 PM (IST)
जालंधर(अनिल पाहवा) : भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब में 18 प्रतिशत के करीब वोट हासिल किए हैं और पार्टी इसे बड़ी सफलता मानते हुए इसे भुनाने में कोई कमी नहीं छोड़ रही। कम में भी ज्यादा आंकने की पार्टी की यह पुरानी आदत है जो लगातार पंजाब में भाजपा को भारी पड़ रही है, जिसके कारण पार्टी को वो सफलता नहीं मिल रही, जिसका वह हर चुनावों में दम भरती है। 2022 में पार्टी ने चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली और अब 2024 में लोकसभा चुनावों में भी पार्टी दावों से परे रह गई। इसका एक बड़ा कारण था पंजाब में दल बदलुओं के सहारे सफलता हासिल करने की कोशिश करना, जिसमें पार्टी नाकाम रही।
बेवजह का एक्सपैरीमैंट हुआ फ्लॉप
जालंधर से भाजपा ने आम आदमी पार्टी की टिकट हासिल कर चुके सुशील रिंकू पर डोरे डाले और उन्हें अपने खेमे में कर लिया, लेकिन रिंकू भी सफल नहीं हो पाए और पार्टी का एक बेवजह का एक्सपैरीमैंट फ्लाप हो गया। जालंधर में कांग्रेस के उम्मीदवार चरणजीत सिंह चन्नी 1,75,993 मतों से जीत गए और सुशील रिंकू दूसरे नंबर पर रहे। भाजपा के लिए जालंधर में खुश होने का एक बड़ा कारण यह है कि पार्टी के उम्मीदवार को आम आदमी पार्टी से अधिक वोटें मिली। वरना 2023 के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा पर तीसरे नंबर पर रही थी।
पार्टी में नेताओं से घुल-मिल नहीं पाए रिंकू
बड़ा सवाल है कि आखिर जालंधर में रिंकू भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़कर जीत क्यों नहीं सके। इसके पीछे जो प्रमुख कारण है, उनमें से एक बड़ा कारण है रिंकू का भाजपा तथा आर.एस.एस. के नेताओं के साथ उस तरह से न घुल मिल पाना, जिस तरह से चाहिए था। रिंकू कांग्रेस से आप में गए तथा बाद में भाजपा में चले गए। कांग्रेस और आप का कल्चर भाजपा से बिल्कुल अलग है। भाजपा में जो भी फैसले लिए जाते हैं, वह संगठन तथा पार्टी के तौर पर लिए जाते हैं। इन सब फैसलों में कहीं न कहीं संघ की भी अहम भूमिका होती है। संघ नेताओं को बकायदा एक सम्मान दिया जाता है, लेकिन यह सब सुशील रिंकू के लिए नई चीजें थीं।
लगातार पार्टियां बदलने से डैमेज हुआ वोट बैंक
भाजपा से संबंधित कई नेता तो यह भी बता रहे हैं कि सुशील रिंकू अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कई आला संघ अधिकारियों को मिले ही नहीं। भाजपा के नेता भी रिंकू के साथ सहजता महसूस नहीं कर रहे थे और रिंकू भी भाजपा की कार्य करने की शैली में फिट नहीं बैठ रहे थे। यही वजह है कि खुद भाजपा का अपना वर्कर भी चाहकर भी रिंकू को जीत नहीं दिला पाया। इसके अलावा एक बड़ा कारण यह भी रहा कि रिंकू ने एक साल से भी कम के समय में तीन पार्टियों का मजा चख लिया है। 2023 में जालंधर के उपचुनाव से पहले वह कांग्रेस से आप में आए और फिर आम आदमी पार्टी छोड़कर अब लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा में आ गए। इस बात को लेकर न तो भाजपा के लोग खुश थे और न ही जालंधर की जनता संतुष्ट थी।
गैर भाजपा लोगों पर निर्भर थे रिंकू
लोकसभा चुनावों में सुशील रिंकू भाजपा के नेताओं को साथ लेकर चलने में भी सफलता हासिल नहीं कर पाए। उनके साथ वही चंद लोग देखे जाते, जिनका भाजपा से कोई लेना देना नहीं था। ये लोग रिंकू के लिए तो अपने थे, लेकिन रिंकू जिस पार्टी में गए थे, उनके लिए ये नए लोग थे। प्रचार से लेकर प्रसार तक की सारी जिम्मेदारी इन लोगों ने संभाल रखी थी और भाजपा के नेताओं को आसपास भी नहीं फटकने दिया जा रहा था, जिसके कारण भाजपा के लोग रिंकू को सफलता दिलवाएंगे, इसकी गारंटी भी खत्म हो गई।