क्या कोरोना व इसके वेरिएंट्स उतने ही घातक हैं जितना कि प्रचारित हैं ?

punjabkesari.in Sunday, Jan 01, 2023 - 01:45 PM (IST)

अमृतसर (सोनी): कोविड-19 के आतंक, जिसमें विश्व में लाखों लोगों की जान गई और विभिन्न देशों में लगे लॉक-डाऊन से दुनिया की अर्थ-व्यवस्था तक चरमरा-सी गई, के सहम से दुनिया अभी तक भी उबर नहीं पाई है। अब कोरोना के एक नए, तथाकथित घातक वेरिएंट का शोर उठ रहा है व नए वर्ष के पहले दो-तीन महीनों में इस के घातक परिणाम देखने को मिलने की भविष्यवाणियां की जा रही हैं। ऐसे में एक सहज ही प्रश्न उठता है कि क्या वाकई में कोरोना/कोविड-19 व इसके वेरिएंट्स उतने ही घातक हैं, जितना इनका प्रचार हो रहा है?

अगर विगत, वर्ष मार्च 2020 के घटनाक्रमों को देखें जिस में विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देश पर दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा अपने अपने देशों में कोविड-19 का जमकर हव्वा खड़ा किया गया। इस दौरान भारत समेत विश्व के कई देशों में लंबे लॉक डाऊन घोषित हुए। सभी प्रकार की परिवहन सुविधाएं ठप्प कर डाली गईं। बिना पी.पी. किटों के डॉक्टर्स तक, अस्पताल में पहुंचे मरीजों को हाथ तक नहीं लागते थे। सहम इतना घना था कि मरीजों से अस्पतालों के बेडज भर गए, मरीजों का जमीन पर लिटा इलाज होने लगा। उपचार साधन कम पड़ने लगे, ऑक्सीजन की कमी होने लगी और सरकारों को, सहमे मरीजों के हित में नए उपचार साधन जुटाने की घोषणाएं करनी पड़ीं। इस सबके बावजूद इसी कोविड-19 के आतंक से अस्पतालों में इलाज के दौरान असंख्य लोग मरे, अस्पतालों से ‘मृतकों की बारात’ सी निकली। इस सबसे देश भर में एक ऐसा भीषणतम सहम पैदा हुआ कि लोगों की अस्पतालों की ओर खूब दौड़ लगी रही। विस्मय की बात तो यह रही कि वो डॉक्टर्स जिन्हें इस कोरोना की न्यूनतम मारक क्षमता का बखूबी पता होना चाहिए था, भी इस बेपनाह प्रचार अभियान से इतने आतंकित हुए कि उन डॉक्टर्स को भी पी.पी. किटें पहनने को मजबूर होना पड़ा। इससे कोरोना का आतंक और प्रबल होता गया। इस आतंक को कई गुणा बढ़ाने मे मीडिया ने भी अपना जमकर सहयोग दिया।

भारतीय नैचुरोपैथ डटे

लेकिन कोरोना के भीषणतम सहम के बीच, आशा की किरण बन कर उतरे भारतीय नैचुरोपैथ (प्राकृतिक चिकित्साविद) और आयुर्वेदाचार्य जिन्होंने विभिन्न सोशल मीडिया माध्यमों से घोषणा करनी शुरू कर दी कि कोरोना सिर्फ सर्दी-जुकाम की भांति एक नार्मल वायरल रोग है, जिसकी मारक क्षमता भी नगण्य है। उन्होंने इसे इन्फ्लुएन्जा का ही प्रारूप बताया। इन नेचुरोपैथी ने अपना यह दावा सिद्ध करने के लिए अपने कुछ सहयोगियों को साथ लेकर महाराष्ट्र में एक अस्थायी अस्पताल स्थापित करके कोरोना रोगियों का, बिना पी.पी. किट पहने और बिना किसी दवाई के सफल इलाज करके दिखाया। अपने इलाज में उन्होंने मरीजों को पहले दो दिन सिर्फ सिट्रस फ्रूट (मौसम्मि-संतरा आदि) का जूस और कोकोनट वाटर का सेवन करवाया व बुखार उतारने के लिए हॉट वाटर थेरेपी दी। उपरांत अगले दो दिन उन्हें सलाद व बहुत हल्का भोजन दिया। जिन मरीजों को श्वास लेने में दिक्कत थी, उन्हें औंधे मुंह (पेट के बल) लिटाकर, सहायता देकर उनके श्वास नार्मल किए। किसी ऑक्सीजन सिलैंडर की सहायता नहीं ली गई। इन नेचुरोपैथों के अनुसार उन्होंने 60 हजार से अधिक कोरोना मरीजों को भला-चंगा कर उनके घरों को भेजा। उनके इस इलाज के दौरान किसी एक मरीज की भी मौत नहीं हुई। इन नैचुरोपैथों का यह भी दावा है कि भारत सरकार का आयुष मंत्रालय उनके इस प्राकृतिक उपचार का निरीक्षण करके इस उपचार की सफलता एवं सार्थकता को सहमति भी दे चुका है।

कोविड-19 घातक नहीं तो कैसे मेर लोग?

इस प्रश्न कि अगर कोरोना अथवा कोविड-19 घातक नहीं तो भारत समेत विश्व भर में लाखों लोग मरे कैसे? इसके जवाब में ये नैचुरोपैथ ये कहते हैं कि या तो फैलाए गए बेपनाह डर एवं आतंक की वजह से या फिर मरीजों को उपचार के नाम भारी परिमाण में दी गई गलत दवाइयों के कारण। उनका कहना है कि यह मौतें सिर्फ अस्पतालों में ही हुईं। घरों में हुईं मौतों की संख्या नगण्य है। उनका यह तक कहना है कि कोरोना से बचाव के नाम पर लोगों को दिया जा रहा इंजैक्शन भी हितकारी नहीं। शरीर की इम्युनिटी यानि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इंजैक्शनों से नहीं बढ़ती, बल्कि स्वस्थ एवं शुद्ध खानपान से बढ़ती है। इन नैचुरोपैथों ने कहा कि उन्होंने विभिन्न रोगों के प्राकृतिक इलाज की सुविधा सुलभ कराने के लिए चंडीगढ़ समेत देश के विभिन्न नगरों में अस्पताल खोल रखे हैं, जहां विभिन्न रोगों से पीड़ित रोगियों को स्थायी उपचार सुविधाएं दी जा रही हैं तथा ऐसे ही और स्वास्थ्य केंद्र खोले भी जा रहे हैं। इन नैचुरोपैथों का कहना है कि समय आ गया है कि भारत अपनी प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा विद्या को और अनुसंधान केंद्र, लैबोरेटरीज एवम यूनिवर्सिटीज खोलकर इसे बुलंदियों पर ले जाए, ताकि भारत विश्व को निरोगमय कर पाए।

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News Editor

Urmila

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