लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर दलों ने कसी कमर, जनसंपर्क, बैठकों और रैलियों का दौर शुरू

punjabkesari.in Monday, Jun 12, 2023 - 02:00 PM (IST)

चंडीगढ़ : लोकसभा चुनाव में 1 साल भी नहीं बचा है और सभी दलों ने इस चुनाव के लिए कमर कसनी शुरू कर दी है। संसद के निचले सदन के इस चुनाव में राजनीतिक दलों की साख ही नहीं, बल्कि उम्मीदवारों की प्रतिष्ठा भी दाव पर होगी। कांग्रेस 10 साल बाद केंद्र की सत्ता में वापसी की ताक में है तो भाजपा भी अपनी सत्ता को 350 सीट के पार के नारे के साथ बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।

पंजाब में भी मौजूदा सांसदों और टिकट के दावेदारों ने संबंधित हलकों के अपने दौरे तेज कर दिए हैं तो साथ ही संगठन के स्तर पर बैठकों का दौर भी चल पड़ा है। इस समय पंजाब से लोकसभा में सबसे ज्यादा 7 सदस्य कांग्रेस के हैं, जबकि अकाली दल और भाजपा के 2-2 सांसद हैं। 1 सांसद आम आदमी पार्टी से है, जबकि 1 अकाली दल ‘अमृतसर’ से। सूबे में नेताओं की सक्रियता अब बढ़ने लगी है। प्रदेश के नेताओं द्वारा जनसंपर्क मुहिम को तेज कर दिया गया है, जिसमें करीब रोजाना ही किसी न किसी हलके में उनकी कार्यकर्ता बैठकें या छोटी रैलियां हो रही हैं। अकाली दल-बसपा गठबंधन और भाजपा जहां पार्टी स्तर पर कम कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस ने फिलहाल इसे शुरू करना है। कांग्रेस के सांसद जरूर हलकों में अपने स्तर पर जनसंपर्क बढ़ाने लगे हैं।

लोकसभा चुनाव की घोषणा तो अगले साल मार्च-अप्रैल में संभव है मगर अभी से उम्मीदवारों को लेकर पार्टियों में मंथन शुरू हो गया है। विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव का मिजाज अलग ही रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले कांग्रेस या विपक्ष से कौन चेहरा होगा, इस पर चुनाव नतीजे काफी हद तक निर्भर करेंगे। पिछले दोनों लोकसभा चुनाव भाजपा ने मोदी के नाम पर ही लड़े और जीते हैं। मतदाता अपने हलके के प्रत्याशी को प्राथमिकता देगा या प्रधानमंत्री पद के चेहरे को।

कांग्रेस पर पिछला प्रदर्शन दोहराने का दबाव

कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में सूबे की 13 में से 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी। मगर तब कैप्टन अमरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री थे जबकि सुनील जाखड़ प्रदेश प्रधान थे। अब दोनों ही दिज्गज कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं। ऐसे में अगले लोकसभा चुनाव में प्रदेश प्रधान अमरेंद्र सिंह राजा वडिंग और नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा की जोड़ी की अग्नि परीक्षा होगी। साथ ही नवजोत सिंह सिद्धू पर भी कांग्रेस का प्रदर्शन दोहराने का दबाव रहेगा। सिद्धू के कारण ही 2021 में कांग्रेस के समीकरण गड़बड़ाए थे और 77 विधायकों वाली पार्टी 2022 में 20 पर सिमट गई थी। कांग्रेस के कई नेताओं द्वारा भाजपा में शामिल होने के बाद चुनाव प्रचार में उनकी कमी भी खलेगी। भाजपा का दावा है कि लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस के कुछ सांसद, पूर्व सांसद व पूर्व विधायक आदि भी पार्टी छोड़ भाजपा में आएंगे। ऐसे में कांग्रेस को अपने परिवार को एकजुट रखने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है।

आम आदमी पार्टी का दारोमदार सी.एम. भगवंत मान के कंधों पर

आम आदमी पार्टी का सारा दारोमदार मुख्यमंत्री भगवंत मान के कंधों पर रहेगा। सत्ता में आने के बाद से 300 यूनिट मुफ्त बिजली, मोहल्ला क्लीनिक, हजारों कर्मचारियों को पक्का करने आदि जैसे कई फैसले करके पार्टी की पैठ को वह जनता में मजबूती से जमा चुके हैं। जालंधर लोकसभा उपचुनाव में मिली जीत के बाद उनका कद और बढ़ा है। राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी उनका उपयोग कर रही है। चाहे गुजरात हो या हिमाचल और या कर्नाटक, हाल ही में हुए हर विधानसभा चुनाव में वह प्रचार करने गए हैं। ‘आप’ की कार्यप्रणाली पूर्व में स्थापित राजनीतिक दलों से अलग ही रही है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक सरगर्मी चाहे नहीं बढ़ाई हो मगर जिस तरह से चुनावी वादों को ‘आप’ सरकार पूरा करती जा रही है, उससे विपक्ष में भी चर्चा है कि ‘आप’ का चुनाव अभियान तो इन वादों को पूरा करने से ही शुरू हो गया है। बिल्कुल नए चेहरों के सहारे केवल अपनी कार्यशैली के जरिये ही ‘आप’ पंजाब की सत्ता में आई थी। लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ऐसे ही नतीजों की आस लगाए हुए है।

दोबारा स्थापित होना अकाली दल के लिए चुनौती

शिरोमणि अकाली दल चाहे भाजपा के साथ गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में रहा हो मगर पिछले विधानसभा चुनाव और 2 लोकसभा उपचुनाव के नतीजों से जाहिर है कि अकाली दल की कामयाबी में भाजपा का बड़ा हाथ रहा है। अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल तक पिछला विधानसभा चुनाव हार गए थे जबकि भाजपा के प्रदेश प्रधान अश्वनी शर्मा जीतने में कामयाब रहे। कई बड़े नेता अकाली दल छोड़ चुके हैं। ऊपर से प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद पार्टी के पास अनुभवी नेता की बड़ी कमी भी इस चुनाव में खलेगी। अकाली दल को होशियारपुर, अमृतसर और गुरदासपुर में भी उम्मीदवार ढूंढना होगा। बीते 6 लोकसभा चुनाव से अकाली दल ने इन सीटों पर कभी उम्मीदवार ही खड़ा नहीं किया क्योंकि यह सीटें गठबंधन में भाजपा के कोटे में थीं। सुखबीर बादल के समक्ष चुनाव तक अपने नेताओं को समेट कर रखने और पार्टी को दोबारा सूबे की राजनीति में स्थापित करने की चुनौती है। हालांकि अकाली दल अब बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन में है मगर यह गठबंधन अकाली दल के लिए कोई खास नतीजे लाने में नाकाम ही रहा है। लंबे समय से बड़ी जीत का स्वाद चखने को तरस रहे अकाली दल के लिए लोकसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए वोटर का मूड भांपना बेहद जरूरी हो गया है।

कई मायनों में अलग भी रहेगा लोकसभा चुनाव

आगामी लोकसभा चुनाव कई मायनों में अलग भी रहेगा। पिछली बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाले कई उम्मीदवार अब अन्य दलों में जा चुके हैं। कई नेता पाला बदल चुके हैं। 2019 में चरणजीत सिंह अटवाल जालंधर से अकाली प्रत्याशी थे जबकि अब वह भाजपा में हैं। हाल ही में उनके बेटे इंद्र इकबाल सिंह अटवाल ने भाजपा टिकट पर जालंधर लोकसभा उपचुनाव लड़ा। बीबी जागीर कौर ने खडूर साहिब से गत लोकसभा चुनाव लड़ा। अब वह पार्टी से बाहर हैं। केवल सिंह ढिल्लों ने 2019 में संगरूर से कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ा, जबकि 2022 में इसी हलके के उपचुनाव में वह भाजपा प्रत्याशी थे। 2019 में अकाली दल के उम्मीदवार परमिंदर सिंह ढींढसा थे जो पार्टी छोड़ चुके हैं। अब उनके अकाली दल का भाजपा से गठजोड़ है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह, सुनील जाखड़, मनप्रीत बादल, बलबीर सिंह सिद्धू, गुरप्रीत कांगड़ जैसे कई नेता जो पिछली बार कांग्रेस का प्रचार करते नजर आए थे, अब भगवा रंग में रंग कर भाजपा के लिए वोट मांगेंगे।

पटियाला को लेकर स्थिति लगभग साफ

पटियाला से परनीत कौर कांग्रेस की सांसद हैं। उनके पति कैप्टन अमरेंद्र सिंह और बेटी जय इंद्र कौर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। परनीत कौर ने अब तक न कांग्रेस छोड़ी है और न ही पार्टी ने उन्हें निकाला है। परनीत कौर ने गत विधानसभा चुनाव में अपने पति की पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों का प्रचार किया था। प्रदेश नेताओं के बार-बार कहने के बावजूद हाईकमान ने परनीत कौर पर कोई एक्शन नहीं लिया। दूसरी ओर उनकी बेटी जय इंद्र कौर ने हलके में भाजपा का धुआंधार प्रचार शुरू कर दिया है। वह बैठकें कर रही हैं। माना जा रहा है कि शाही परिवार से उनकी बेटी ही अगला लोकसभा चुनाव पटियाला सीट से लड़ेंगी।

 


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News Editor

Urmila

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