महाराजा रखते थे साबुन की डिब्बी में 900 करोड़ का हीरा, पेपरवेट के लिए करते थे इस्तेमाल

punjabkesari.in Tuesday, Sep 10, 2019 - 08:52 AM (IST)

जालंधर। आजादी से पहले महाराजाओं के शौक बहुत निराले थे। महाराजा रणजीत सिंह की बात करें तो उनके पास विश्व का सबसे बड़ा कोहिनूर हीरा था। पटियाला महाराजा भूपिंदर सिंह की बात करें तो उनके पास 2930 हीरों वाला नैकलेस था। यही नहीं आपको बताते हैं कि विश्व का सातवां बड़ा जैकब हीरा भी हैदाराबाद के छटे निजाम महबूब अली पाशा  के पास था। सातवें निजाम उस्मान अली खान इस हीरे को साबुन की डिब्बी में रखते थे और पेपरवेट के लिए इस्तेमाल करते थे। अब इसे दिल्ली स्थित नेशनल म्यूजियम में रखा गया है और इसे देखने के लिए 50 रुपए का टिकट रखा गया है। म्यूजियम में यह हीरा लोगों को बहुत ही लुभा रहा है। जैकब डायमंड नाम का यह हीरा अब 184.75 कैरेट का है, जबकि कोहिनूर का वजन सिर्फ 105.6 कैरेट था।

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पिता ने जूते में छिपा रखा था हीरा
हैदराबाद के अंतिम व सातवें निजाम उस्मान अली खान को जैकब हीरा उनके पिता की मृत्यु के कई सालों बाद में उनके जूते के अगले हिस्से में मिला। यह हीरा कोहिनूर की टक्कर का माना जाता है। जैकब हीरे को लेकर एक किस्सा बहुत मशहूर है। कहते हैं निजाम उस्मान अली खान इस हीरे को साबुन की डिब्बी में रखते थे और लिखते वक्त इसे टेबल पर पेपरवेट के रूप में इस्तेमाल करते थे। इस किस्से का जिक्र दीवान जरमनी दास ने अपनी किताब "महाराजा" में बखूबी जिक्र किया है।PunjabKesari

उन्होंने लिखा है कि हैदराबाद के निजाम के पास दुनिया का मशहूर जैकब नाम का हीरा था जो वजन में 186 कैरेट था। उसकी बनावट पेपर-वैट जैसी थी। उस पर किसी को नजर न लगे, इस ख्याल से निजाम उसे क्यूटीकोरा साबुन की डिब्बी में रखा करते थे। जब मौज आती तब अपनी लिखने की मेज पर पेपर-वेट की जगह उस हीरे का इस्तेमाल करते। सर सुल्तान, अहमद, जो निजाम के खास सलाहकार की हैसियत से सभी वैधानिक मामलों में सलाह दिया करते थे, जब अपनी सेवाओं और चापलूसी से लिए देखने को उनके हाथ में दिया। सुलतान अहमद के हाथ में हीरे पर निजाम की नजरें इस तरह जमी हुई थी कि उनका हा बरबस कांपने लगा।PunjabKesari

दक्षिण अफ्रीका से आया हैदराबाद
यह हीरा 1884 में दक्षिण अफ्रीका की किंबर्ली खदान  से निकला था। इसके बाद इसे लंदन के डायमंड बाजार में बेच दिया गया था। डायमंड का कारोबार करने वाले व्यापारी अलेक्जेंडर जैकब ने  इसे 1891 हैदराबाद के निजाम महबूब अली पाशा खान को बेचा था। जैकब ने उस समय इसका दाम 1 करोड़ 20 लाख रुपये आंका था। पर सौदा 46 लाख में तय हुआ। निजाम ने जैकब को हीरे को हिन्दुस्तान में लाने के लिए 20 लाख रुपये दिए थे। जैकब जब हीरा लेकर आया तो निजाम ने इसे लेने से इनकार कर दिया और 20 लाख रुपए वापिस मांग लिए। ब्रिटिश रेजीडेंट की आपत्ति के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट में मुकदमा चला और सुलह के बाद यह डायमंड निजाम को मिल गया। बाद में यह जैकब डायमंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 


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Suraj Thakur

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