15 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच 101 साल पहले पंजाब में महामारी से हुई थी करीब 8 लाख लोगों की मौत

punjabkesari.in Sunday, Sep 27, 2020 - 03:17 PM (IST)

जालंधर। जब तक कोई दवा या वैक्सीन इजाद नहीं हो जाती तब तक कोरोनावायरस से बचने का अब एक ही इलाज है जागरुकता और अपने को भीड़ से अलग रखना। पंजाब में अब किसान आंदोलन के चलते यह बहुत ही मुश्किल दिखाई दे रहा है। संयोगवश यह महामारी यदि एक शताब्दी पहले की तरह स्पैनिश फ्लू (इंफ्लुएंजा) की तर्ज पर इतिहास दोहराती है, तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। करीब 101 साल पहले 15 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच स्पैनिश फ्लू से पंजाब में करीब 8 लाख लोगों की जान चली गई थी। यह आंकड़े तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के गैजेट्स में आज भी दर्ज हैं। सूबे के सीएम कैप्टन अमरेंद्र सिंह भी पीजीआई के पूर्व एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट के आधार पर यह कई बार जता चुके हैं की इसी दौरान यह बीमारी पीक होगी और हमें एहतियात बरतने होंगे।

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जालंधर में गई थी 31803 लोगों की जान
1918 में देश भर में फैली बीमारी जहां करीब दो करोड़ भारतीयों को मौत की नींद सुला दिया था, वहीं पंजाब में 8 लाख 16 हजार 317 लोगों की जान चली गई थी। इतिहासकारों के मुताबिक पंजाब की 4 फीसदी से ज्यादा आबादी 25 दिनों में ही घट गई थी। उस समय सूबे की कुल आबादी 1 करोड़ 93 लाख 37 हजार 146 थी और इसमें हिमाचल, हरियाणा और लाहौर के इलाके भी शामिल थे। जालंधर शहर की बात करें तो यहां 31803 लोगों की मौत हुई थी।

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शिमला से हुई थी महामारी
पंजाब में सबसे पहले स्पैनिश फ्लू की शुरूआत अंग्रेजों की सैनिक छावनियों से शुरू हुई थी। इससे ग्रस्त होने वाले ज्यादातर अंग्रेज सैनिक ही थे। ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 1 अगस्त 1918 को शिमला में स्पैनिश फ्लू पहला मरीज सैनिक पाया गया था। इसके बाद हिमाचल की जतोग, डगशाई, सोलन और कोटगढ़ की छावनियों में मरीज सामने आए। हरियाणा की अंबाला और पंजाब के लाहौर, अमृतसर, फतेहगढ़ की छावनियों में भी यह फ्लू फैल गया। शिमला में इस बीमारी की चपेट में आने वाले सभी लोग यूरोपियन थे जबकि पंजाब सहित अन्य मैदानी इलाकों में भारतीय थे। जुलाई 1918 तक पंजाब में स्पैनिश फ्लू होने के बारे में अनश्चितता बनी हुई थी और लाहौर के अलबर्ट विक्टर और मेयो अस्पताल में किसी भी मरीज को भर्ती नहीं किया गया था। अगस्त माह में अमृतसर, शिमला और लाहौर में यूरोपियन और भारतीयों में स्पैनिश फ्लू के लक्षण पाए गए जो अंग्रेजों में ज्यादा प्रबल थे।  

PunjabKesari25 दिनों में ही कम हो गई थी 4 से 5 फीसदी आबादी
सितंबर के दौरान संक्रमण का क्षेत्र तेजी से बढ़ा। महामारी अपने दूसरे चरण में थी। ऐसा माना जा रहा था कि जैसे कोई शैतान  पूरे पंजाब को घेरने वाला है। अक्टूबर माह में इस महामारी ने सूबे में मौत बनकर अपना तांडव शुरू कर दिया। कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि विभिन्न हिस्सों में शहर और गांव कब्रिस्तान और श्मशान जैसे प्रतीत होने लगे थे। "वास्तव में, अक्टूबर के अंत तक इन्फ्लूएंजा दुनिया के हर हिस्से में फैल गया था, जिसमें स्वीडन, नॉर्वे, हॉलैंड, डेनमार्क अमेरिका और अफ्रीका शामिल थे। अकेले बॉम्बे में इन्फ्लूएंजा ने चार सप्ताह के भीतर लगभग 13,500 लोगों की मौत की नींद सुला दिया था।  मृत्यु दर के अलावा बड़ी संख्या में आबादी इन्फ्लूएंजा और इसके प्रभाव के बाद भी अपंग हो गई थी। इस दौरान पंजाब में 15 अक्टूबर से 10 नवंबर यानि 25 दिन के भीतर सर्वाधिक लोगों की जान गई और सूबे की लगभग 4 से 5 फीसदी आबादी एक महीने से भी कम समय में मर गई। यह सिलसिला ऐसे ही जारी रहता तो साल भर में पंजाब के 60 फीसदी लोग मर जाते।

क्या थे बीमारी के लक्षण
पंजाब के तत्कालीन सेनेटरी कमीश्नर के मुताबिक यह एक ऐसा बुखार था जिसमें मरीज को 80 से 90 की पल्स के साथ 104 डिग्री बुखर आता था। इससक सिर, पीठ और अंगों में बहुत दर्द होता था। मरीज को शरीर के वायु मार्ग में सूजन के साथ-साथ सांस लेने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। इन्फ्लूएंजा के कारण नाक और फेफड़ों से रक्तस्राव होता था। बीमारी के संपर्क में आने वाले लोग अक्सर तीन दिनों के भीतर मर जाते थे। मौत आमतौर पर बैक्टीरिया द्वारा फेफड़ों पर हमला करने के कारण होती थी। इस दौरान "इन्फ्लूएंजा के लिए जिम्मेदार जीव के बारे में समकालीन शोध सुनिश्चित नहीं था। सबसे पहले यह मई 1918 में बॉम्बे में विश्व युद्ध से लौटे सैनिकों में दिखा जहां से यह उत्तरी भारत के दिल्ली और मेरठ जिलों में फैल गया था।

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महामारी से सबक लेने की जरूरत
स्पैनिश फ्लू के प्रसार में संचार ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। संभवतः यह भी कोरोनावायरस की तरह उस समय यह एक आधुनिक बीमारी थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों की आवाजाही, जहाजों के माध्यम से व्यापार और वाणिज्य, और डाक नेटवर्क ने इस बीमारी को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक पहुंचाया। प्रथम विश्व युद्ध और सैनिकों की एक देश से दूसरे देश में आवाजाही से यह बीमारी विश्व के कई देशों में फैली थी। यही वजह है कि आज भारत ने दूसरे देशों में आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया है। स्पैनिश फ्लू से हमें सौ साल बाद भी सबक लेने की जरूरत है। यही वजह है कि बीमारी की रोकथाम को भीड़ से दूर रह कर कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जो गाइडलाइन्स निर्धारित कर रखी है उस पर हमें अमल कर समझदारी दिखानी चाहिए।


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Suraj Thakur

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