शहद से मीठी 'पंजाबी' मातृभाषा का जानें इतिहास
punjabkesari.in Friday, Feb 21, 2020 - 12:29 PM (IST)
जालंधर(ब्यूरो): आज इंटरनेशनल मदर लैंग्वेज डे पर हम बात करेंगे पंजाबी मातृभाषा की। पंजाबी कैसे अस्तित्व में आई? समय-समय पर इसमें क्या बदलाव आए? इसे 'मातृभाषा' ही क्यों कहा जाता है? ऐसी बातों से आज हम इसका इतिहास जानेंगे।
क्या है मातृभाषा
इंसान का सबसे गहरा रिश्ता मां के साथ होता है अगर मां इंसान को जन्म देती है, तो भाषा उसे जिंदगी के अर्थ बताती है। जीने का ढंग समझाती है। इतने गहरे संबंध के कारण ही इंसान ने भाषा का रिश्ता 'मां' से जोड़ा। मातृभाषा वह भाषा होती है, जिसे बच्चा मां के गर्भ में ही सीख लेता है। इसी तरह मां जैसे भाषा से भी उसका रिश्ता जन्म से पहले ही जुड़ जाता है। यही कारण है कि इसे मातृभाषा कहा जाता है। इसे भूल जाने वाले लोग अकसर इतिहास के पन्नों में खो जाते हैं।
भारत के संविधान के अनुसार देश की कुल 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है जबकि 2011 की मरदमशुमारी के अनुसार 19,569 मातृभाषाएं हैं। हालांकि कुल आबादी के 96 प्रतिशत लोग 22 संवैधानिक भाषाओं को ही मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। देश के हर प्रांत की अपनी अलग भाषा है, जैसे बंगाल की बंगाली, हरियाणा की हरियाणवी और पंजाब की भाषा है पंजाबी।
पंजाबी मातृभाषा
पंजाबी एक इंडो-आर्यन भाषा है। भारत में हिंदी और बंगाली के बाद, दक्षिणी एशिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा पंजाबी है। वर्तमान समय में इंग्लैंड में सबसे अधिक बोली जाने वाली दूसरी भाषा और कैनेडा में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा पंजाबी ही है। भाषाओं से संबंधित एक विशवग्यानकोश "ऐथनोलोग के अनुसार पंजाबी सारी दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली दसवीं भाषा है। माहिरों के अनुसार 13-14 करोड़ लोगों की मातृभाषा पंजाबी है। सबसे अधिक तकरीबन 10 करोड़ पंजाबी बोलने वाले पाकिस्तान में हैं। उसके बाद 3 करोड़ के करीब भारतीय पंजाब और करीब एक करोड़ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जाकर बसे हुए हैं।
पंजाबी की उपभाषाएं
कहते हैं कि कुछ कोस की दूरी पर पानी और भाषा बदल जाती हैं। पंजाबी की भी कई उपभाषाएं हैं, जो अलग-अलग इलाकों में बोली जातीं हैं, जिनमें से मुख्य हैं माझी, दोआबी, मालवे से संबंधित, पुआधी, पोठोहारी, मुलतानी और डोगरी जिसे पहाड़ी भाषा भी कहा जाता है। इनमें से माझी बोली पंजाबी की टकसाली भाषा है। परन्तु क्या हमें पता है कि पंजाबी भाषा कैसे बनी, यह समय के साथ कितनी बदली और पंजाबी में लिखी सबसे पहली किताब कौन सी है?
पंजाबी का मूल रूप
पंजाबी के विभिन्न माहिरों के पंजाबी भाषा के मूल को लेकर विभिन्न तर्क हैं। कुछ का कहना है कि पंजाबी एक इंडो-आर्यन भाषा है, जबकि कुछ पंजाबी भाषा का मूल संस्कृति को नहीं मानते। माहिरों के अनुसार पंजाबी का जन्म सप्तसिंधु के इलाके से हुआ, उस समय इस भाषा को सप्तसिंध भी कहा जाता था। वैसे भारत की सभी भाषाएं ही ब्राह्मी लिपि से जन्मी हैं।
पंजाबी की लिपियां
पंजाबी की दो लिपियां हैं शाहमुखी और गुरमुखी। शाहमुखी उतरते पंजाब की पंजाबी लिपि है, जबकि गुरमुखी चढ़ते पंजाब की लिपि। इन दोनों में अक्षरों की बनावट का फर्क है। पंजाबी में पहली रचना अद्दहमाण की स्नेह रासय है जो कि कई लिपियों का मिश्रण है, जो 9वीं शताब्दी के करीब थी। उसके बाद शाहमुखी में बाबा शेख फरीद जी की रचनाएं और गुरमुखी में गुरु नानक देव जी की पट्टी है।
कहां से आए पैंतीस अक्षर?
माहिरों के अनुसार पैंतीस अक्षर का सबसे पहला सबूत गुरु नानक की पट्टी में मिलता है। उसमें पैंतीस ही अक्षर हैं। उसमें फर्क सिर्फ इतना है कि 'ਉ, ਅ, ਈ' वाली तरतीब अलग थी। उसमें 'ਅ, ਈ, ਉ' लिखा जाता था। बाद में गुरु अंगद देव जी ने यह तरतीब बदल कर 'ਉ, ਅ, ਈ' की। इन 35 में से कोई अक्षर लुप्त तो नहीं हुए बल्कि फारसी के 6 अक्षर अन्य जुड़ गए, जिनके पैर में बिन्दी होती है। इन अक्षरों के साथ इसकी संख्या 35 से 41 कर दी, हालांकि इसे अभी भी 35 ही कहा जाता है।
पंजाबी मातृभाषा के लाल
गुरुओं के इलावा नाथों, जोगियों, बुल्ले शाह, वारिस शाह, शाह हुसैन, कादरयार, शाह मुहम्मद, दमोदर आदि कवियों ने अपनी कविता का माध्यम पंजाबी को बनाया जबकि भाई वीर सिंह, नानक सिंह, गुरदयाल सिंह, संत सिंह सेखों, अजीत कौर, दलीप कौर टिवाना, अमृता प्रीतम, सुरजीत पात्र, शिव कुमार 'बटालवी' और हरभजन सिंह जैसे लेखकों ने इसी भाषा सदका अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के शिखरों को छुआ है। गीत संगीत की दुनिया में भी पगला जाट, गुरदास मान, कुलदीप मानक, हंसराज हंस, सुखविन्दर सिंह और सतिन्द्र सरताज ने पंजाबी मातृभाषा की सेवा की और अपने गीतों द्वारा पंजाबी मातृभाषा को देश-विदेशों में प्रसिद्ध किया।
'पंजाबी को अपनों से खतरा'
गुरुओं की भाषा 'पंजाबी भाषा' के लिए जहां समय-समय पर अनेकों साहित्यकारों, कवियों, पीरों-फकीरों, सूफी और रहबरों, और गीतकारों ने अपनी-अपनी सामर्थ्य और शक्ति अनुसार योगदान डाला और पंजाबी मातृभाषा की सेवा की, वहीं आज पंजाबी को अपनी पढ़ी लिखी पीढ़ी से ही खतरा पैदा होता जा रहा है। आज पंजाबी की जगह अंग्रेजी लेती जा रही है। भारत के पढ़े-लिखे पंजाबी भी पंजाबी नहीं बोलते बल्कि अंग्रेजी बोलते हैं। हालांकि अंग्रेजी या अन्य भाषाएं सीखना बुरी बात नहीं परन्तु अपनी मातृभाषा को भुला देना जरूर गलत है।
बेशक गुरुओं की यह भाषा कभी खत्म नहीं हो सकती लेकिन आज बहुत-से लोग पंजाबी बोलने में झिझक महसूस करते हैं, जोकि अच्छी बात नहीं। वह लोग एक तरह की हीन-भावना का शिकार हैं। 'क्या हम कभी यह हीनता का भाव त्याग सकेंगे? क्या कभी अपनी मातृभाषा के सच्चे कदरदान बनकर इसे अपने अंदर बसा सकेंगे? ऐसे बहुत-से सवाल हैं, जिनका जवाब एक पंजाबी को अपने अंदर से ही ढूंढना पड़ेगा।