नगर निगम का दर्जा मिलने से पूर्व भी सुर्खियों में रही नगर परिषद
punjabkesari.in Wednesday, Sep 27, 2023 - 11:48 AM (IST)

अबोहर: लाखों रुपए के कथित डीजल घोटाले के कारण चर्चा में आई नगर निगम का विधिवत गठन अप्रैल, 2021 में हुआ था लेकिन इससे पूर्व भी नगर परिषद के रूप में घोटालों के कारण यह संस्था सुर्खियों में रही है। पार्षदों की 3 सदस्यीय समिति ने भौतिक व वैज्ञानिक तरीके से जांच के दौरान यह पाया है कि निगम के वाहनों में डीजल की खपत निर्धारित पैमाने से कई गुणा ज्यादा दिखाकर कथित रूप में लाखों रुपए के फर्जी बिल वसूले गए। इस दौरान सफाई व प्रशासकीय कर्मचारियों को वेतन के भुगतान में देरी के कारण कई बार हड़ताल करनी पड़ी लेकिन घोटाला करने वालों की कलम नहीं रुकी।
अब विधायक संदीप जाखड़ ने इस उम्मीद से मुख्यमंत्री भगवंत मान से इस कथित घोटाले की उच्च स्तरीय जांच करवाकर आरोपियों को कटघरे में खड़ा करने की उम्मीद लगाई है। घोटालों के बारे में अतीत में भाजपा-अकाली गठबंधन द्वारा संचालित नगर परिषद की कारगुजारी पर नजर डालते हुए जानकार लोग याद दिलाते हैं कि 2010 में नई सड़क के पास व्यावसायिक प्लाटों की नीलामी में जमकर हेरा-फेरी की गई।
इस बारे में सेवानिवृत्त नगर परिषद कर्मचारी वैल्फेयर एसोसिएशन ने 2015 में प्रदेश सरकार से शिकायत की। इसकी जांच स्थानीय निकाय विभाग के मुख्य सतर्कता अधिकारी और लोकल फंड प्रभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने की। उन्होंने 3 कार्यकारी अधिकारियों भूषण गर्ग, भूषण राणा और जसवीर सिंह धालीवाल को आरोपी करार दिया। सभी ने आरोपों को निराधार बताया लेकिन जांच के दायरे से बाहर नहीं निकले।
जांच रिपोर्ट से संतुष्ट न होने पर एसोसिएशन ने सरकार से प्रॉपर्टी घोटाले की जांच विजिलेंस विभाग को सौंपने की मांग की। जांच के बाद जसपाल सिंह क्लर्क के विरुद्ध और उससे हुई पूछ पड़ताल के बाद तत्कालीन नगर परिषद अध्यक्ष शिवराज गोयल के विरुद्ध मामला दर्ज किया गया। गोयल को अदालत से जमानत मिल गई और अब यह प्रकरण जिला सत्र न्यायालय में चल रहा है जिसकी सुनवाई 4 अक्तूबर को निर्धारित है। इस बीच जसपाल सिंह का निधन हो चुका है।
एसोसिएशन के प्रधान अशोक वाटस बताते हैं कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी न मिलने पर जब प्रांतीय सूचना अधिकारी के समक्ष अपील दायर की तो नगर परिषद ने जवाब दिया कि प्लाटों की नीलामी के समय बनाई गई सी.डी. ही गायब है। एक अन्य अपील के दौरान नगर परिषद ने 10 सालों का रिकार्ड उपलब्ध न होने का जवाब भी सूचना आयोग में दायर किया। रिकार्ड गुम होने के बारे में न तो कोई एफ.आई.आर. दर्ज करवाई गई और न ही विभागीय जांच करके किसी की जिम्मेवारी तय की गई। ऐसे माहौल के चलते अब लोगों में चर्चा चल रही है कि कहीं डीजल घोटाले का हश्र भी पुराने घोटालों जैसा ही न हो। दूध का दूध, पानी का पानी करने के लिए यह जरूरी माना जा रहा है कि नए घोटाले की जांच भी विजिलेंस विभाग को सौंपी जाए।
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