न विजिलैंस की परवाह न मुख्यमंत्री कार्यालय का डर, निगम को फिर चपत लगाने की तैयारी में अधिकारी

punjabkesari.in Saturday, Mar 04, 2023 - 12:24 PM (IST)

जालंधर : शहर को पानी सप्लाई कर रहे 600 के करीब ट्यूबवैलों पर जालंधर निगम ने पिछले कई सालों से टाइमर लगा रखे हैं जिस कारण यह ट्यूबवेल अपने आप निर्धारित समय पर चालू और बंद हो जाते हैं। इन ट्यूबवैलों के रखरखाव से संबंधित टेंडर लगाते समय कुछ महीने पहले जालंधर निगम के अधिकारियों ने ट्यूबवेलों को चलाने और बंद करने हेतु लेबर रखने का भी प्रावधान कर दिया था और हर 5 ट्यूबवैलों के लिए एक आदमी रखने और उसे डी.सी. रेट पर वेतन देने का प्रावधान भी टैंडरों में कर दिया गया था। तब निगम अधिकारियों पर आरोप लगा था कि अपने किसी चहेते ठेकेदार को करोड़ों रुपए का फायदा पहुंचाने के चक्कर में 3 करोड़ वाला काम 8 करोड़ रुपए में करवाने के लिए टैंडर लगाए जा रहे हैं। इस कांड की शिकायत मुख्यमंत्री कार्यालय को भी हुई थी जिसमें साफ कहा गया था कि टाइमर लगे ट्यूबवैल को चलाने के लिए लेबर की जरूरत ही नहीं है।

इसके आधार पर मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस कांड की जांच के आदेश दे रखे हैं और सारा मामला विजिलैंस को रैफर होने के भी आसार बन रहे हैं परंतु जालंधर निगम के अधिकारी न मुख्यमंत्री कार्यालय और न ही विजिलैंस ब्यूरो की परवाह कर रहे हैं जिसके चलते यह टैंडर बार-बार लगाए जा रहे हैं। अब फिर जालंधर निगम के अधिकारियों ने शहर के 440 ट्यूबवैलों के टैंडर दोबारा लगा दिए हैं जिनमे से जोन 7 के टैंडर 13 मार्च को और बाकी 4 जोन के टैंडर 15 मार्च को खोले जा रहे हैं। इन टैंडरों में निगम अधिकारियों ने 440 ट्यूबवैलों को चलाने के लिए साढ़े 3 करोड़ रुपए के वेतन का प्रावधान रखा है। यह भी माना जा रहा है कि अगर कुछ ठेकेदारों ने आपस में पूल कर लिया तो जालंधर निगम को करोड़ों रुपए की चपत भी लग सकती है।

आऊटसोर्स आधार पर लेबर रखने में अक्सर होता आया है घोटाला

पिछले सालों दौरान निगम कई बार ऐसे टैंडर लगा चुका है जिनमे आऊटसोर्स आधार पर लेबर रखने का भी प्रावधान होता रहा है। बार बार ऐसे आरोप भी लगे कि ठेकेदार ने सिर्फ नाम के व्यक्ति रखे, अपने चहेतों के बैंक अकाऊंट खोलकर उसमें वेतन ट्रांसफर किए, ज्यादातर को प्रोविडेंट फंड या ई.एस.आई. का लाभ ही नहीं दिया और इस प्रकार आऊटसोर्स लेबर रखने के नाम पर जालंधर निगम में कई घोटाले हुए जिनसे अफसरों ने कोई सबक नहीं लिया और अब फिर ठेकेदारों के माध्यम से महंगी लेबर रखने के टेंडर लगाए जा रहे हैं।

ट्यूबवैलों के साथ-साथ ट्रीटमैंट प्लांटों में भी होती है गड़बड़ी

नगर निगम ट्यूबवैलों के साथ-साथ ट्रीटमैंट प्लांटों के संचालन हेतु भी करोड़ों रुपए के टैंडर जारी करता है जिनमें भी करोड़ों की ही गड़बड़ी हो रही है। अक्सर यह ठेकेदार प्लांट चलाने वाली मशीनों और मोटरों की मेंटेनेंस हेतु बहुत कम लेबर रखते हैं और अक्सर मोटरों को रिपेयर इत्यादि करने में कई कई महीने लगा दिए जाते हैं ताकि खर्च कम आए। इस प्रकार प्लांटों के संचालन में और भी बड़े स्तर पर गड़बड़ियां सामने आ रही हैं। इसमें जालंधर निगम के अधिकारियों की मिलीभगत साफ दिख रही है।

आऊटसोर्स आधार पर भर्ती हुए अफसर सरकार से नहीं डरते

जालंधर निगम ने कुछ साल पहले आऊटसोर्स आधार पर जे.ई और एस.डी.ओ. स्तर के अफसर भर्ती किए थे जिन्हें बार-बार एक्सटेंशन दी जा रही है। इस प्रकार यह अफसर अपने आपको जालंधर निगम का पक्का कर्मचारी ही समझने लगे हैं जबकि नियमों के मुताबिक इन पर सरकारी कानून लागू नहीं होते। अगर आऊटसोर्स पर भर्ती हुआ अफसर करोड़ों रुपए का घोटाला भी करता है तो न उसे विजिलैंस कुछ कहती है और न ही सरकार उसे दंड दे सकती है। ज्यादा से ज्यादा उसे नौकरी से ही निकाला जा सकता है।

पिछले समय दौरान जालंधर निगम के कमिश्नरों ने आऊटसोर्स आधार पर भर्ती हुए अफसरों को करोड़ों रुपए से संबंधित महत्वपूर्ण काम दे रखे हैं जिनमें भारी घोटाले भी हो रहे हैं। कांग्रेस सरकार के समय दौरान ऐसे अफसर राजनीतिज्ञों की भी जेबें गर्म करते रहे जिस कारण उनके द्वारा किए गए घोटालों की जांच ही नहीं हुई। अब धीरे-धीरे ऐसे अफसरों के कारनामे सामने आ रहे हैं। ट्यूबवैल मेंटेनेंस से जुड़ा करोड़ों का घोटाला भी आऊटसोर्स आधार पर भर्ती हुए अफसरों की देन है जो ट्रीटमैंट प्लांटों के चार्ज से भी विवादों में आ चुके हैं। कुछ सूत्र तो यह भी बताते हैं कि आऊटसोर्स आधार पर भर्ती एक एस.डी.ओ. जल्द ही अमरीका सैटल हो जाने की फिराक में है, इसलिए वह ऊपरी अफसरों की भी परवाह नहीं कर रहा।

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News Editor

Urmila

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