पद्मश्री भाई निर्मल सिंह का बिछोड़ा सिख समाज व संगीत जगत की बड़ी हानि

punjabkesari.in Friday, Apr 03, 2020 - 09:24 AM (IST)

जालंधर (बुलंद): भाई निर्मल सिंह दुनिया भर में फैली महामारी कोरोना वायरस का शिकार हुए और उनका देहांत हो गया। उनका बिछोड़ा न सिर्फ सिख समाज के लिए बल्कि गुरमति संगीत के क्षेत्र में भी एक बड़ी हानि के तौर पर देखा जा रहा है।

12 अप्रैल, 1952 में फिरोजपुर के गांव जंडवाला भीम शाह में जन्मे भाई निर्मल सिंह खालसा श्री दरबार साहिब अमृतसर के हजूरी रागी भी रहे। भाई साहिब ने संगीत की शिक्षा शहीद मिशनरी कॉलेज अमृतसर तथा गुरमत कॉलेज ऋषिकेश में ली। इसके बाद वह गुरबाणी कीर्तनीए व संगीत शिक्षक के तौर पर सेवा निभाते रहे। उनको श्री गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज 31 रागों का पूर्णतया ज्ञान था।क्लासिकल कीर्तन में महारत रखने वाले भाई निर्मल सिंह राग गुरबाणी के ज्ञाता थे। उन्होंने सारी उम्र गुरमत अनुसार जीवन व्यतीत किया तथा अपनी काबिलियत के आधार पर वह श्री दरबार साहिब के हजूरी रागी बने। वह 1979 से लेकर अपने अंतिम समय तक दरबार साहिब में कीर्तन की सेवा निभाते रहे। संगत में उनकी प्रसिद्धि इस कदर थी कि जब वह कीर्तन करते तो सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता।  साल 2009 में भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की ओर से उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। अपने कीर्तन गायन की प्रसिद्धि के चलते भाई साहिब ने दुनिया के 50 से ’यादा देशों का भ्रमण किया। उन्होंने क्लासिकल कीर्तन की दर्जनों एलबम निकालीं जो दुनिया भर में पसंद की गईं। 


वेरका में भाई निर्मल सिंह का अंतिम संस्कार न करने देना अफसोसजनक : अरनेजा
सिख कारोबारी इकबाल सिंह अरनेजा ने बताया कि दोपहर होते-होते पूरे सिख समाज में इस बात को लेकर रोष पाया गया कि  वेरका गांव के लोगों ने कोरोना वायरस के डर से भाई निर्मल सिंह का संस्कार वेरका में नहीं होने दिया। यहां तक कि शिअद के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने अपने फेसबुक अकाऊंट से मुख्यमंत्री से अपील की कि भाई साहिब का संस्कार वहीं करवाया जाए।  


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