फसलों के लिए प्राकृतिक आपदा से कम नहीं 10 डिग्री सैल्सियस से नीचे का तापमान, पढ़ें विशेषज्ञों की सलाह
punjabkesari.in Saturday, Dec 27, 2025 - 05:14 PM (IST)
गुरदासपुर (हरमन): पिछले कुछ समय के दौरान मौसम में आ रहे लगातार बदलाव ने जहां जलवायु संतुलन को प्रभावित किया है, वहीं मानवीय स्वास्थ्य और रोजमर्रा की जिंदगी पर भी इसके गंभीर असर सामने आ रहे हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, जब तापमान लंबे समय तक 10 डिग्री सैल्सियस से नीचे बना रहता है, तो पाला (कोहरा) पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, जो गेहूं, गन्ना, आलू और सब्जी की फसलों के लिए काफी नुकसानदायक साबित होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, कम तापमान में पड़ने वाला पाला फसलों के लिए किसी प्राकृतिक आपदा से कम सिद्ध नहीं होता। वर्तमान समय में गुरदासपुर और अमृतसर जिलों में बन रहे मौसमी हालातों ने किसानों के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग की चिंता भी बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाला सिर्फ फसलों की हानि तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसका सीधा असर मानवीय स्वास्थ्य, सुबह की आवाजाही, मजदूर वर्ग और विद्यार्थियों की दैनिक दिनचर्या पर भी पड़ता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, पाला एक ऐसी प्राकृतिक आपदा के रूप में सामने आया है, जिसके कारण विशेष रूप से सब्जियों और बागवानी फसलों को भारी नुकसान होता है।
सर्दियों के दौरान जमीन, पत्तों और अन्य ठोस सतहों पर जमने वाली बर्फ की पतली तह को 'कोहरा या पाला' कहा जाता है। भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों, विशेषकर पंजाब में, यह दिसंबर और जनवरी के महीनों के दौरान आमतौर पर होता है। ज्यादा ठंड के दौरान जब जमीन, पौधों या अन्य चीजों की सतह का तापमान पानी के जमने के तापमान (फ्रीजिंग पॉइंट) से नीचे गिर जाता है, तो ऊपर बर्फ की पतली परत बन जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, हवा के तापमान का पाला पड़ने या न पड़ने पर सीधा असर नहीं पड़ता, बल्कि जमीनी सतह का तापमान ही मुख्य भूमिका निभाता है।
तीव्रता के आधार पर कोहरे के प्रकार
हल्का कोहरा (1.7 से 0.1 डिग्री सैल्सियस) इससे नाजुक पौधे झुलस जाते हैं, लेकिन बाकी वनस्पति पर कम असर पड़ता है। मध्यम कोहरा (-3.9 से -2.2 डिग्री सेल्सियस) इससे ज्यादातर वनस्पति और फलदार पौधों को भारी नुकसान होता है। गंभीर कोहरा (-4.4 डिग्री सैल्सियस या उससे कम) इसमें अधिकांश पौधों का भारी विनाश हो जाता है।
कोहरे के लिए अनुकूल हालात
पंजाब में पाला आमतौर पर दिसम्बर, जनवरी और फरवरी में पड़ता है, जिसमें जनवरी के दौरान पाले वाले दिन सबसे अधिक होते हैं। साफ रातों के दौरान जब जमीन से गर्मी निकल जाती है और जमीनी सतह का तापमान ऊपरी हवा की तुलना में काफी कम हो जाता है, तब पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।
यदि मौसम विभाग द्वारा हवा का तापमान 0 से 4 डिग्री सैल्सियस के बीच रहने की भविष्यवाणी की जाए और हवा में नमी अधिक हो, तो जमीनी पाले का खतरा और बढ़ जाता है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि 1970 के दशक के दौरान पाले के दिन सबसे अधिक थे, जिससे साबित होता है कि उस समय रातें और भी अधिक सर्द होती थीं।
हालांकि, साल 2000 के बाद पाले के दिनों और इसकी तीव्रता में लगातार गिरावट आई है। 2020 से 2024 के दौरान सर्दियों में केवल 2 से 10 दिनों तक ही पाला पड़ने की पुष्टि हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसका मुख्य कारण क्षेत्रीय जलवायु ऊष्मीकरण, शहरीकरण का विस्तार और सर्दियों के न्यूनतम तापमान में वृद्धि है।
फसलों पर प्रभाव
तापमान 10-12 डिग्री सैल्सियस से नीचे गिरने पर रबी की फसलों को भारी नुकसान का डर बना रहता है। खासतौर पर पाला पड़ने के कारण आलू, मटर, टमाटर और शिमला मिर्च जैसी सब्जियां भूरे रंग की हो जाती हैं, जिसे किसान 'फसल का झुलसा रोग' कहते हैं। दिसम्बर 2022 से जनवरी 2023 के बीच शिवालिक पहाड़ियों से सटे इलाकों में शीत लहर और पाले के कारण आम की 40 से 100 प्रतिशत और लीची की 50 से 80 प्रतिशत फसल प्रभावित हुई थी, जबकि अमरूद, बेर और किन्नू के फलों की गुणवत्ता भी गिर गई थी।
बचाव के लिए विशेषज्ञों की सलाह
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, गन्ने की पाला-रोधी किस्मों की खेती करनी चाहिए और दिसम्बर-जनवरी के दौरान हल्की सिंचाई जारी रखनी चाहिए। गेहूं, आलू और सब्जियों के लिए उचित उर्वरक, सही सिंचाई और पौधों की सुरक्षा से पाले के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही सरकंडे या प्लास्टिक की चादरों से नाजुक पौधों को ढकना और पाले वाली रातों के दौरान पौधों को गीला करने से बचने की सलाह दी गई है।
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