बिना माल बिके आसानी से मिल जाता है GST का बिल! विभाग की मुश्किलें बढ़ीं
punjabkesari.in Tuesday, Dec 23, 2025 - 12:56 PM (IST)
अमृतसर (इन्द्रजीत): जी.एस.टी. के 18 प्रतिशत के बिल 2 फीसद की दर में बिकने के कारण जहां पर दो नंबर का काम करने वाले लोगों के रास्ते सरल हो चुके हैं। वहीं इसमें जी.एस. टी. विभाग की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। दो नंबरी बिल बेचने वालों के इस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए जी.एस.टी. विभाग के पास फिलहाल कोई योजना नहीं है। इस दो नंबर के बिल को एक्सपोर्टर भी इस्तेमाल करके सरकार से पूरा रिफंड ले रहे हैं। यह समस्या किसी एक दो जिलों अथवा डिवीजनों की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश स्तरीय बिछे हुए जाल का हिस्सा है।
दिल्ली, एन.सी.आर. के बड़े डीलरों और बिल स्टोरियों के पास माल बेचने के बाद कंपनियों द्वारा दिया गया बिल उनके स्टॉक में सुरक्षित रह जाता है। इसके उपरांत बचे हुए बिल को बेचने की डीलिंग शुरू हो जाती है। इसका सीधा असर पंजाब के अतिरिक्त कई स्टेटों पर पड़ रहा है, क्योंकि जो भी माल दिल्ली अथवा एन.सी.आर. की मंडियों से मंगवाया जाता है, उनमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो इस प्रकार के बिल का प्रयोग कर रहे हैं। विभाग इसे चैलेंज करने में असमर्थ है, क्योंकि बिल की पृष्ठभूमि में इसके टैक्स की अदायगी हो चुकी होती है, लेकिन माल बिना बिल के निकल चुका होता है।
जी.एस.टी. बिल की उत्पादक हैं मल्टीनेशन-कंपनियां !
मल्टीनेशन कंपनियां अथवा कारपोरेट ग्रुप द्वारा भेजा गया माल दिल्ली अथवा बड़ी मार्केटों में जब पहुंचता है तो वहां के होलसेलर व बड़े-स्टोरिए माल की खेप आते ही दूसरे प्रदेशों में माल को बिना बिल ही दो-नंबरी ट्रांसपोर्टरों के माध्यम से बेच देते हैं। वहीं भेजे गए सामान के बाद पक्का बिल उनके पास बच जाता है, जबकि माल की कीमत जी.एस.टी. लगाकर ही पहले चरण में ही वसूल कर ली जाती है। अन्य प्रदेशों से माल खरीदने वाले लोग बिल को इसलिए अपने खाते में नहीं डालते, ताकि उनकी सेल पिछले वर्षों की अपेक्षा न बढ़ जाए। इसमें आयकर विभाग का डर भी सामने होता है। वहीं स्टोरिओं के पास बिल डिपॉजिट हो जाता है, जबकि स्टॉक बिक चुका होता है। उधर बचे हुए 18 प्रतिशत वैल्यू के जी.एस.टी. बिल को वहां के लोकल डीलरों को बेचा जाता है। पहले-पहल जी.एस.टी. लागू होते समय इस प्रकार के बिल की कीमत ज्यादा थी और 28 प्रतिशत का बिल 7 से 10 प्रतिशत में मिलता था। वहीं अब इसकी मार्केट ग्राऊंड फ्लोर वैल्यू 2-3 प्रतिशत से भी कम आ चुकी है। कई बार तो इस प्रकार का बिल एक प्रतिशत में भी मिल जाता है।
निर्यातक खरीदता है अपनी शर्तों के मुताबिक बिल !
पंजाब के औद्योगिक नगर लुधियाना में बड़ी संख्या में ऐसे एक्सपोर्टर है, जो माल का तो लुधियाना अथवा इसके निकटवर्ती इंडस्ट्रियल क्षेत्र से निर्माण करवाते हैं और उसका बिल बाहर से खरीद लेते हैं, जिनके पास बिल एडजस्टमेंट होती है। हालांकि एच. एस.एन. कोड सरकार द्वारा अलग-अलग चीजों के बनाए गए हैं, लेकिन उसी कोड पर जिसका नाम अलग लिख दिया जाता है तो सरकार की आंखों में धूल झौंक लेते हैं। इस प्रकार के बिल पर 3 से 6 प्रतिशत टैक्स दिया जाता है।
बताना जरूरी है कि इस प्रकार के बिल में वस्तु विक्रेताओं के वाले के पास उसकी खरीद नहीं होती बल्कि वस्तु अलग होती है, फिर भी इसके बावजूद बिलिंग जारी है। पिछले दशकों में करोड़ों के घोटालों के कई मामले सामने आए हैं, लेकिन बड़ी अमाउंट में बड़ी रंगदारी इसे दबा देती है।
एच.एस.एन. कोड भी हो रहे हैं बेअसर !
जी.एस.टी. में चोरी को रोकने के लिए विभाग द्वारा नए फार्मूलों में एच.एस.एन. कोड बनाए हुए हैं, जो वस्तुओं की कैटेगरी के मुताबिक होते हैं। इसमें बने कानून की यह कमजोरी है कि एक एच.एस.एन. कोड के साथ कैटिगरी तो इसके मुताबिक होती है, लेकिन वैरायटी को एच.एस.एन. कोड डिटेक्ट नहीं कर सकता क्योंकि हर कैटेगरी में 5 या 6 एचएसएन कोड होते हैं, लेकिन वैरायटी में वस्तुओं की मात्रा प्रति एचएसएन कोड 50 हजार से अधिक होती है इन परिस्थितियों में एच.एस.एन. कोड काम कैसे करेगा? बताना जरूरी है कि कई सैक्शन ऐसे हैं, जिसमें वैरायटी की गिनती 1-2 लाख भी होती है, लेकिन चंद गिनती में एच. एस. एन. कोड इनके राज को नहीं खोल पाते।
कई विभागों की बनती है जिम्मेदारी
18 प्रतिशत का बिल यदि 2-3 प्रतिशत के बीच बिकता है तो इसके लिए कई विभाग जिम्मेदार हैं। इसमें एक्साइज एंड टैक्सेशन इन्वेस्टिगेशन विंग, जी.एस.टी. डिस्ट्रिक्ट, जी.एस.टी. ऑडिट और सी.जी.एस.टी. भी इसमें हस्तक्षेप कर सकता है, लेकिन टैक्स चोर कई विभागों की आंख में धूल झोंकते अपना काम कर जाते हैं। बड़ी बात है कि जी.एस.टी. इन्वेस्टीगेशन अथवा मोबाइल विंग तो अपना काम फिर भी काफी हद तक पूरा कर देता है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट विभाग में तैनात कई अधिकारी इसमें रुचि नहीं रखते। मात्र मुखबिरों के माध्यम से ही काम चलता है।
क्रॉस-चैकिंग के लिए कमी है या...?
एक्साइज एंड टैक्सेशन विभाग के इस प्रकार के टैक्स चोरों को पकड़ने के लिए विशेषज्ञों की बेहद कमी है। हालांकि पिछले समय में विभाग ने करोड़ों रुपए टैक्स चोरी के कई केस पकड़े भी हैं, लेकिन सामान्य तौर पर इसका कर माफिया पर कोई असर नहीं है। जानकार लोगों की माने तो मात्र उन लोगों को पकड़वा दिया जाता है, जो छोटी मछलियां हैं लेकिन बड़े मगरमच्छ राजनीतिज्ञों की शरण में काम करते चले जाते हैं।
नव-नियुक्त अधिकारियों को है ट्रेनिंग की आवश्यकता, जानकारों के पास समय नहीं!
यह खेल इतना पेचीदा है कि साधारण अधिकारी इसे समझ ही नहीं पाते। इसमें सबसे बड़ी मुश्किल जी.एस.टी. विभाग के नेटवर्किंग की है, जिसमें कई पेचीदा टर्नओवर और एंट्री डिटेक्ट नहीं हो पाती। उधर चेन-बिलिंग करने वाले टैक्स माफिया काम में इतने निपुण है कि यदि विभाग के अधिकारी चाहें भी तो इस गुंजलदार गुत्थी को नहीं सुलझा पाते। इस गेम को पकड़ते पकड़ते वर्षों लग जाते हैं, वहीं इसे साबित करना और भी मुश्किल हो जाता है। हालांकि विभाग में कई शक्तिशाली और गहराइयों में जानने वाले पुराने नामवर अधिकारी हैं लेकिन वह महत्वपूर्ण पदों पर हैं इसलिए समय की कमी भी माफिया की ढाल बन जाती है।
उच्चाधिकारी भी दिखाई देते हैं बेबस! मात्र निचले अधिकारियों को बजते हैं दबके !
विशेषज्ञों का कहना है कि यह गंभीर मामला है, इसमें सरकार का भारी रेवेन्यू का नुक्सान होता है। इसमें उच्च-अधिकारियों को भी जानकारी की बेहद कमी है। बड़ी बात है कि विभागों के उच्च-अधिकारी जो कभी किसी विभाग के मुख्य सचिव, कभी डायरैक्टर, कभी किसी शहर के डिप्टी कमिश्नर, तो कभी पैराशूट से आकर जी.एस.टी. के स्टेट स्तरीय अधिकारी बन जाते हैं, लेकिन ऐसे अधिकारी जी.एस.टी. विभाग जो अत्यंत पेचीदा है की जमीनी जानकारी से कोसों दूर होते हैं। इन परिस्थितियों में केवल प्रदेश उच्च-अधिकारी मात्र जिला स्तर के छोटे अधिकारियों को ‘दबके’ मारकर चले जाते हैं।
पिछले वर्षों में एक तेज-तर्रार महिला अधिकारी एवं तत्कालीन ज्वाइंट डायरैक्टर मैडम हरदीप भावरा एक (अपने से बड़े) उच्चाधिकारी जो डायरैक्टर थे, के साथ अमृतसर मोबाइल विंग मुख्यालय में पहुंची तो मीडिया के प्रश्नों के समक्ष तत्कालीन प्रदेश डायरैक्टर भी नहीं टिक पाए। आखिर उनके कई प्रश्नों के उत्तर मैडम हरदीप भावरा ने ही दिए। उस समय मोबाइल विंग कार्यालय में बड़ी संख्या में अधिकारी उपस्थित थे। आखिरकार इधर-उधर की बातों में ही प्रश्नों के उत्तर हवा-हवाई हो गए। इसके उपरांत अब तक कई वर्षों में कोई भी जी.एस.टी. विभाग का प्रदेश स्तरीय उच्च-अधिकारी मीडिया के सामने आने की हिम्मत नहीं कर पाया, अगर प्रदेश स्तरीय अधिकारी आए भी हैं तो बंद कमरों में मीटिंग करके चले गए।
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