हजारों लोगों को मौत की नींद सुला कर, चीन को प्रदूषण मुक्त भी कर रहा है कोरोना

punjabkesari.in Friday, Mar 13, 2020 - 10:14 AM (IST)

जालंधर(सूरज ठाकुर): चीन में कुदरत ने ऐसा रंग दिखाया है कि जहां कोरोना वायरस ने हजारों लोगों को मौत बनकर अपने आगोश में सुला दिया है वहीं दूसरी ओर इसके खौफ  से कई शहरों में बंद हुए उद्योगों और करोड़ों वाहनों की थमी रफ्तार से आसमान पर छाया रहने वाला काला धुआं छंटने लगा है। दो सप्ताह के भीतर ही चीन में वायु प्रदूषण कम हुआ है और कार्बन उत्सर्जन में 100 मिलियन मीट्रिक टन की कमी आई है। चीन में अभी तक कोरोना वायरस के कारण तीन हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जबकि वायु प्रदूषण की बात करें तो इससे देश के कई हिस्सों में 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। इसके अलावा हर साल अर्थव्यवस्था को करीब 26 हजार करोड़ का नुक्सान भी प्रदूषण के कारण ही झेलना पड़ता है। 

हजारों उद्योग और ट्रांसपोर्ट बंद
कोरोना वायरस फैलने के बाद नासा ने हाल ही में ट्विटर पर दो तस्वीरें शेयर की हैं। इन तस्वीरों में चीन के शहरों का जनवरी से फरवरी माह का वायु प्रदूषण दर्शाया गया है। नासा ने जानकारी दी है कि वायु प्रदूषण पर नियंत्रण रखने वाले सैटेलाइट ने चीन में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा में कमी पाई है। ऐसा माना जा रहा है कि पर्यावरण में यह बदलाव कोरोना वायरस के बाद आई आॢथक मंदी के बाद हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक चीन में 60 हजार से ज्यादा छोटे-बड़े उद्योग हैं। करीब 340 करोड़ वाहन और 6 हजार से ज्यादा एयरक्राफ्ट हैं। कोरोना के बाद चीन के कई शहरों को लॉकडाऊन करना पड़ा। ट्रांसपोर्ट सिस्टम की रफ्तार भी कम करनी पड़ी। कई हवाई और रेल सेवाएं भी स्थायी तौर पर बंद कर दी गई हैं जिसके चलते चीन को 100 अरब डॉलर का नुक्सान होने का भी अनुमान लगाया जा रहा है। बताया जा रहा है कि ऐसे में चीन के सिर पर काला दिखने वाला आसमान फिर से नीला दिखाई देने लगा है।

जहरीली गैसों के उत्सर्जन में चीन नंबर वन
पर्यावरण का आकलन करने वाली एजैंसी एडगर डाटाबेस के 2017 के आंकड़ों के अनुसार चीन दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सॢजत करने वाला देश है। चीन साल भर में करीब 10,641 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन करता है जोकि दुनिया की 30 प्रतिशत कार्बन का हिस्सा है। अमरीका लगभग 5,414 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन के साथ दूसरे, जबकि तीसरे स्थान पर भारत है जहां 2,274 मिलियन मीट्रिक टन कार्बन प्रति वर्ष उत्सॢजत होती है। कोरोना वायरस ने भले ही पूरे विश्व में अपने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं लेकिन इससे दो संदेश भी स्पष्ट हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण जीवन में आ रहे बदलावों और बीमारियों के प्रति सभी देशों को सचेत रहना होगा, दूसरा पर्यावरण को कम से कम नुक्सान पहुंचाकर विकास के पथ पर चलना होगा।

डब्ल्यू.एच.ओ. की चेतावनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के एक अनुमान के मुताबिक पर्यावरण परिवर्तन के चलते साल 2030 तक हर वर्ष अढ़ाई लाख से ज्यादा लोगों की मौत होने की संभावना है। रिपोर्ट के मुताबिक अगर व्यापक कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2050 तक ड्रग रजिस्टैंट डिजीज के चलते वर्ष 2050 तक हर साल एक करोड़ तक लोगों की मौत हो सकती है। डब्ल्यू.एच.ओ. ने नई पैदा होने वाली और फैलने वाली बीमारियों से निपटने के लिए क्लाइमेट चेंज और एंटी माइक्रोबियल रजिस्टैंस (ए.एम.आर.) दोनों से ही सतर्क रहने की आवश्यकता पर बल दिया है।

क्या कहते हैं पर्यावरणविद्
पर्यावरणविदों के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और दूषित हो रहा पर्यावरण कहीं न कहीं इस तरह की आपदाओं की एक वजह हो सकता है हालांकि ऐसा कोई शोध अभी नहीं हुआ है जो स्पष्ट संकेत देता हो। जलवायु परिवर्तन के कारण बैक्टीरिया और वायरस को फलने-फूलने की जगह मिल रही है। पर्यावरण साफ-सुथरा और अनुकूल होने पर मानव जीवन और वन्य प्राणियों में एक संतुलन था जो निरंतर कम हो रहा है। पर्यावरणविद् चंद्र भूषण का कहना है कि बीते दशक सार्स, मर्स, जीका और अब कोविड-19 ये सभी वायरस जानवरों से इंसान में आए हैं। वह कहते हैं कि यह सब आगे भी चुनौती रहेगी। ऐसे वायरस से निपटने का एकमात्र उपाय दवाएं और वैक्सीन ही हैं। 


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swetha

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