महामारी से पंजाब में पहले भी हो चुकी है 8 लाख लोगों की मौत, कोरोनाकाल में सबक की जरुरत!

punjabkesari.in Tuesday, Jul 14, 2020 - 01:32 PM (IST)

 जालंधर: पंजाब में 22 मार्च के बाद कर्फ्यू और लॉकडाउन से गुजरने के बाद पंजाब की हालात कोरोनावायरस से काफी सुधरी है, लेकिन लोग अभी भी सरकार के दिशा निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। जिसके चलते अब सीएम अमरेंद्र सिंह ने फिर से कड़े आदेश जारी किए हैं। सौ साल पहले पंजाब ऐसी ही महामारी स्पैनिश फ्लू (इंफ्लुएंजा) का दंश झेल चुका है। 

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इतिहासकारों के अनुसार 1918 में पंजाब में इस महामारी दौरान  8 लाख 16 हजार 317 लोगों की मौत हो गई थी, जिस कारण 4 फीसदी से ज्यादा आबादी 25 दिनों में ही घट गई थी। उस समय राज्य की कुल आबादी 1 करोड़ 93 लाख 37 हजार 146 थी, जिसमें हिमाचल, हरियाणा और लाहौर के इलाके भी शामिल थे। अगर बात करें जालंधर शहर की तो यहां 31803 लोगों की मौत हुई थी। 

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बीमारी के लक्षण
पंजाब के तत्कालीन सेनेटरी कमीश्नर के मुताबिक यह एक ऐसा बुखार था जिसमें मरीज को 80 से 90 की पल्स के साथ 104 डिग्री बुखर आता था। इससे सिर, पीठ और अंगों में बहुत दर्द होता था। मरीज को शरीर के वायु मार्ग में सूजन के साथ-साथ सांस लेने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। इन्फ्लूएंजा के कारण नाक और फेफड़ों से रक्तस्राव होता था। बीमारी के संपर्क में आने वाले लोग अक्सर 3 दिनों के भीतर मर जाते थे। मौत आमतौर पर बैक्टीरिया द्वारा फेफड़ों पर हमला करने के कारण होती थी। इस दौरान "इन्फ्लूएंजा के लिए जिम्मेदार जीव के बारे में समकालीन शोध सुनिश्चित नहीं था। सबसे पहले यह मई 1918 में बॉम्बे में विश्व युद्ध से लौटे सैनिकों में दिखा जहां से यह उत्तरी भारत के दिल्ली और मेरठ जिलों में फैल गया था।

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पंजाब में 100 साल पहले ऐसे फैली थी महामारी
पंजाब में सबसे पहले स्पैनिश फ्लू की शुरूआत अंग्रेजों की सैनिक छावनियों से शुरू हुई थी। इससे ग्रस्त होने वाले ज्यादातर अंग्रेज सैनिक ही थे। ब्रिटिश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 1 अगस्त 1918 को शिमला में स्पैनिश फ्लू पहला मरीज सैनिक पाया गया था। इसके बाद हिमाचल की जतोग, डगशाई, सोलन और कोटगढ़ की छावनियों में मरीज सामने आए। हरियाणा की अंबाला और पंजाब के लाहौर, अमृतसर, फतेहगढ़ की छावनियों में भी यह फ्लू फैल गया। शिमला में इस बीमारी की चपेट में आने वाले सभी लोग यूरोपियन थे जबकि पंजाब सहित अन्य मैदानी इलाकों में भारतीय थे। जुलाई 1918 तक पंजाब में स्पैनिश फ्लू होने के बारे में अनश्चितता बनी हुई थी और लाहौर के अलबर्ट विक्टर और मेयो अस्पताल में किसी भी मरीज को भर्ती नहीं किया गया था। अगस्त माह में अमृतसर, शिमला और लाहौर में यूरोपियन और भारतीयों में स्पैनिश फ्लू के लक्षण पाए गए जो अंग्रेजों में ज्यादा प्रबल थे।  

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महामारी से सबक लेने की जरूरत
स्पैनिश फ्लू के प्रसार में संचार ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। संभवतः यह भी कोरोनावायरस की तरह उस समय यह एक आधुनिक बीमारी थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों की आवाजाही, जहाजों के माध्यम से व्यापार और वाणिज्य, और डाक नेटवर्क ने इस बीमारी को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक पहुंचाया था। प्रथम विश्व युद्ध और सैनिकों की एक देश से दूसरे देश में आवाजाही से यह बीमारी विश्व के कई देशों में फैली थी। स्पैनिश फ्लू से हमें सौ साल बाद भी सबक लेने की जरूरत है। यही वजह है कि बीमारी की रोकथाम को भीड़ से दूर रह कर कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने जो गाइडलाइन्स निर्धारित कर रखी है उस पर हमें अमल कर समझदारी दिखानी चाहिए।


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