हिमाचली शोधकर्ता ने हड़प्पा लिपि और बोली की चाबी खोजी
punjabkesari.in Thursday, Sep 25, 2025 - 06:30 PM (IST)

पंजाब डैस्क : अब देश की राजधानी दिल्ली में रहने बाले हिमाचली शोधकर्ता और कैंसर विशेषज्ञ के तौर पर असाधारण अनुभव रखने वाले प्रो. (डॉ.) पुनीत गुप्ता ने हड़प्पा लिपि और भाषा के गुप्त भेद और गूढ़ रहस्य से पर्दा हटाने में सफलता प्राप्त की है। सिंधु लिपि को समझना 5000 सालों से सबसे चुनौतीपूर्ण विषयों में से एक रहा है।
देश की राजधानी में पिछले दिनों सिंधु सभ्यता संबंधी डिकोड पर अपने व्याख्यान के बाद प्रोफेसर (डॉ.) पुनीत गुप्ता को संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के द्वारा सभी 20 कृतियों की सार पुस्तक भेंट की गई, जो संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रकाशित गई है। भारत में प्राचीन पांडुलिपियों का दुनिया में सबसे समृद्ध संग्रह है, जिसमें लगभग 1 करोड़ ग्रंथ हैं, जो देश के पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए हैं। ताड़ के पत्तों, सन्टी की छाल, कपड़े, हाथ से बने कागज़ों और ऐसी ही अन्य सामग्रियों पर उत्कीर्ण ये पांडुलिपियाँ, "एक राष्ट्र की जीवित स्मृति और उसकी सभ्यतागत पहचान की नींव" के साथ-साथ भारत के प्राचीन इतिहास का प्रतिनिधित्व करती हैं।
हड़प्पा अभिलेखों की डिकोडिंग पर काम करने वाले अनेक विशेषज्ञों के बीच, प्रोफेसर (डॉ.) पुनीत गुप्ता का कार्य आश्चर्यचकित करने वाला है। उनका यह एकमात्र मॉडल है जो सिंधु लिपि को द्वि-कक्षीय अबुगिडा लेखन प्रणाली के रूप में वर्णित करता है। इसमें लगभग 700 प्रतीकों, (एकल और संयुक्त) संयोजन समूहों की पहचान की गई है, जो लगभग 4000 उत्कीर्ण वस्तुओं में पाए जाते हैं।
कैंसर विशेषज्ञ के रूप में डॉ. पुनीत गुप्ता ने जीभ के कैंसर से उच्चारण पर प्रतिकूल प्रभाव, कैंसर-रोगी उपचार द्वारा सुधार होने पर ध्वनि की पुनः प्राप्ति तथा आध्यात्मिक जीवविज्ञान (एप्लाइड स्पिरिचुअल बायोलॉजी के लेखक) से प्राप्त अंतर्दृष्टि को एकीकृत किया है। उनके इस कार्य से ध्वनियों से संबंधित हड़प्पा संकेतों के गुप्त रहस्य को समझने में काफी मदद मिली है।
प्रोफेसर (डॉ.) पुनीत गुप्ता ने सभी 4000 हड़प्पा लिपि अभिलेखों को डिकोड कर लिया है। उनके इस अभूतपूर्व कार्य ने हड़प्पा की रिक्तता को किनारा करते हुए लिखित रूप में पुनः प्राप्त कर लिया है। पहली बार, सभी 700 से अधिक चिह्नों की लिपि को पूरी तरह से डिकोड किया गया है। इन सभी हड़प्पा चिन्हों का ध्वन्यात्मक मानों के साथ व्यवस्थित रूप से मानचित्रण के कार्य को पूरा किया गया।
प्रोफेसर (डॉ.) पुनीत गुप्ता के हड़प्पा यूनिकोड प्रस्ताव में एक मानकीकृत डिजिटल फ़ॉन्ट का विकास करना शामिल है, जिससे हड़प्पा की लिपि को यूनिकोड में एकीकृत किया जा सके। एक प्रैक्टिशनर ऑन्कोलॉजिस्ट और ए.आई.एम.एस. फरीदाबाद के कैंसर सर्विस चेयरमैन व एम.वी.एन. यूनिवर्सिटी के प्रो. (डॉ.) पुनीत गुप्ता के अनुसार, "हड़प्पा के समरूप चिह्न मानव के जबड़े और जीभ की गतिविधियों की जैविक समरूपता को प्रतिबिंबित करते हैं। हड़प्पा भाषा को बाय-कैमरल अबुगिडा सिस्टम (बा.अ.प) सिस्टम कहा जाता है। हड़प्पा की भाषा के प्रत्येक विशिष्ट उच्चारण के लिए दो स्वतंत्र चिह्न (गैर-संयुक्त चिह्न) निर्दिष्ट किए गए हैं। यह बा.अ.प हड्डप्पन व्याख्या और भारत के पांडुलिपि लेखन के लिए बहुभाषी क्मप्युटर कीबोर्ड की उत्पत्ति की संयुक्त कुंजी प्रदान करता है। अब एक ही कंप्यूटर की-बोर्ड के द्वारा हड़प्पा की ब्राह्मी, अशोक-ब्राह्मी, कुषाण-ब्राह्मी, प्राकृत, पाली, गुप्ता-ब्राह्मी, संस्कृत, तमिल-ब्राह्मी, श्रीलंका-ब्राह्मी, हिंदी, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और अतीत व वर्तमान की सभी विशेषकर मात्रा वाली भारतीय लिपियों को लिखने में मदद कर सकता है।"
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित सम्मेलन में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त 20 प्रतिष्ठित वक्ताओं ने पीयर रिव्यू में भाग लिया, जिनमें पुरातत्वविद्, पुरालेखशास्त्री, भाषाविद्, इंजीनियर, कंप्यूटर वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और चिकित्सा विशेषज्ञ शामिल हुए।
इस सम्मेलन में प्रोफेसर (डॉ.) पुनीत गुप्ता ब्रेकथ्रू मॉडल पेपर प्रस्तुत किया। आपने प्रत्येक ध्वनि के लिए दो प्रतीक प्रस्तावित किए: एक मानव वाणी के पूर्व-ध्वनि चरण के लिए और दूसरा पश्चात-ध्वनि के लिए। सीधे शब्दों में कहें तो द्वि-कक्षीय प्रणाली का अर्थ है कि प्रत्येक ध्वनि, जैसे अंग्रेजी में बी बोल को छोटे "बी" और बड़े "बी" के रूप में लिखा जाता है।
प्रोफेसर (डॉ.) पुनीत गुप्ता ने लिपि की समरूपता को जबड़े और जीभ की गति से जोड़ते हुए बताया कि मनुष्यों में ऊपरी जबड़ा स्थिर रहता है जबकि निचला जबड़ा अस्थिर होता है, जिसमें 16 निचले दांत होते हैं जो हिंदू षोडशी प्रणाली में 16 देवियों से संबंधित 16 स्वरों के अनुरूप होते हैं (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, ऋ, ॠ, ऌ, ॡ ) वहीं दूसरी ओर, हड़प्पा संस्कृति में वजन मापने में 16 के गुणक का इस्तेमाल किया जाता है। षोडशी मंत्र (16) परंपरा का दत्तात्रेय परंपरा से निकटता से संबंधित है, जैसा कि षोडशी- दत्तात्रेय- परशुराम - कार्तावीर्य अर्जुन सहस्त्र बाहु- राम- अत्री परमपरा।
हड़प्पा यूनिकोड पर एक पुस्तक जल्द प्रेस रिलीज की जाएगी। डॉ. गुप्ता ने यह भी कहा, "एक-एक अक्षर और एक-एक शब्द को डिकोड किया गया है। अब कोई पहेली नहीं, कोई परिकल्पना नहीं, कोई अनुमान नहीं, कोई आकलन नहीं।" संस्कृति मंत्रालय के अनुसार भारत को अपना बहुभाषी की-बोर्ड लॉन्च करना चाहिए, जिसके इस्तेमाल से प्राचीन और आधुनिक, हड़प्पा ब्राह्मी से लेकर अशोकन ब्राह्मी, तमिल, प्राकृत और सभी आधुनिक लिपियों तक सभी भारतीय लिपियों को एक ही बार में टाइप करना संभव हो सके। उनकी परिकल्पना अद्वितीय, नवीन और स्वतंत्र है। बहुभाषी भारतीय की-बोर्ड विजन के तहत भारत से अपना स्वयं का बहुभाषी क्मप्युटर की-बोर्ड लॉन्च करने का आह्वान किया गया है, जो सभी भारतीय लिपियों, संस्कृत, ब्राह्मी और हड़प्पा को टाइप करने में सक्षम हो, जिससे संस्कृति और डिजिटल संप्रभुता मजबूत हो और भारत भाषा व लिपी का असल विश्व गुरु स्थान प्राप्त कर सके।
धार्मिक और दार्शनिक परंपराएँ जो आज तक कोई पढ नहीं पाया जैसे दत्तात्रेय, ललिता माता/ त्रिपुरा -कार्तिकेय -शिव- परम्परा; जैन परंपरा (जिनकी पुत्री ब्राह्मी को हड्डप्पन ब्राह्मी का पहला शिष्य माना जाता है); वेदों के स्पष्ट संदर्भ, (ऋग्वैदिक, यजुर्वेदीय और सामवेद) व आयुर्वेदिक चिकित्सा की लेखन से जुड़े हैं।
हड्डप्पा के इलावा पांडुलिपियों को भविष्य के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ के रूप में स्वीकार करते हुए, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन ने नई दिल्ली घोषणा को अपनाया ताकि उनके ज्ञान को संरक्षित करने, डिजिटल बनाने और प्रसारित करने के प्रयासों को बढ़ावा दिया जा सके, साथ ही मूल कृतियों को वापस लाया जा सके।
सरकार ने संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत एक प्रमुख पहल के रूप में ज्ञान भारतम मिशन की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य देश भर के शैक्षणिक संस्थानों, संग्रहालयों, पुस्तकालयों और निजी संग्रहों में स्थित एक करोड़ से अधिक पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, दस्तावेज़ीकरण, संरक्षण, डिजिटलीकरण और उन्हें सुलभ बनाना है।
हड़प्पा की लेखन प्रणाली (एच.डब्ल्यू.एस) में मुख्यतः ज्यामितीय आकृतियाँ, उभरे हुए वृत्त, अर्धवृत्त, क्रॉस, घुमावदार क्रॉस, त्रिभुज, कोण, अंडाकार, घुमावदार वृत्त, छह तीलियों वाले वृत्त, मेहराब, एक से नौ रेखाएँ, मुड़ी हुई रेखाएँ, वृत्त और अन्य आकृतियाँ प्रयुक्त होती थीं। इन ज्यामितीय चिह्नों को लेखन सिमिट्री व बोलने के अंगो की सिमिट्री से डिकोड किया गया। ईसमें मानव वाक् अंगों (होंठों के सापेक्ष जीभ, दांत, तालु) की सममित स्वर-संचालन स्थितियों को विशिष्ट उच्चारित ध्वनियों से संबंधित पाया गया ।
2000 ईसा पूर्व तक, दुनिया में चार प्रकार की लेखन प्रणालियाँ मौजूद थीं: मिस्री चित्रलिपि, सीरिया चित्रलिपि, क्यूनिफॉर्म और हड़प्पा लेखन प्रणाली (एचडब्ल्यूएस)। पहली तीन 3500 से 2000 ईसा पूर्व तक गैर-वर्णमाला गैर स्वर. गैर व्यंजन और गैर-अबुगिडा रहीं।
अन्य प्रमुख वर्णमाला लिपियाँ, जैसे फोनीशियन, ग्रीक, रोमन, ला फान अरबी और प्राचीन दक्षिण अरब, 2000 ईसा पूर्व के बाद ही उभरीं। 4000 ईसा पूर्व और 2000 ईसा पूर्व के बीच, परिपक्व हड़प्पा लिपि मानवता के उत्सव का प्रतीक था, जिसमें व्यजनों के पूर्ण और अर्ध दोनों रूपों का प्रयोग होता था ( बालाकोट पाकिस्तान पौट्री तकरीबन4000 ईसा पूर्व से लेकर किलामंडी गाँव तमिलनाडु पौट्री तकरीबन 1700 ईसा पूर्व) यह हड़प्पा सांस्कृतिक परिवेश को दर्शाता है, जिसमें हिंदू परंपराएँ शामिल हैं - हड़प्पन वैदिक, ललिता-त्रिपुरा सुन्दरी-शिव-कार्तिकेय, दत्तात्रेय-परशुराम, दत्तात्रेय-कार्तावीर्यअर्जुन,षोडशी- अगस्त्य व हड़प्प जैन। यह हड़प्पा की सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाता है, मुल के भीतर स्थानीय स्थानों के नाम और अन्य व्यक्तित्वों को दर्शाता है।
प्रोफेसर (डॉ.) पुनीत गुप्ता की अनूठी परिकल्पना समरूपता, जीव विज्ञान और ध्वनि उच्चारण पर आधारित है। यह हड़प्पा लिपि के लिए एक स्वतंत्र और सत्यापन योग्य ढाँचा प्रदान करती है। यह सफलता गणित, चिकित्सा, अध्यात्म, भाषा और ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति से जुड़ी प्रारंभिक जैन परंपराओं में हड़प्पा के योगदान को पुनः स्थापित करके ज्ञान के वैश्विक इतिहास में अपना स्थान पुनः स्थापित करती है। पहली बार, डॉ. गुप्ता ने प्रत्येक हड़प्पन लिपि के एक व्यंजन के लिए दो अलग-अलग प्रतीक चिन्ह (बड़े और छोटे रूप जैसे) निर्धारित किए हैं, जो अक्षरों की तुलना में एक कार्यात्मक लिखित भाषा प्रणाली है। यह शोध हड़प्पन लिपि को एक पूर्णतः ध्वन्यात्मक, सममित और व्यवस्थित लेखन प्रणाली के रूप में स्थापित करता है, जो हड़प्पन ज्ञान के आधार के रूप में स्थापित होने की ओर अग्रसर है।
प्रोफेसर (डॉ.) पुनीत गुप्ता ने हड़प्पा सभ्यता के सभी 4000 मौजूदा अभिलेखों की पहली पूर्ण डिकोडिंग करते हुए, उनके अर्थ को निर्धारित करने में एक क्रांतिकारी सफलता की घोषणा की है। एक अभिनव डिजिटल रंग-कोडित प्रणाली का उपयोग करते हुए, डॉ. गुप्ता ने हड़प्पा सभ्यता के अक्षरों और शब्दों को अनुमानों या परिकल्पनाओं के आधार पर अक्षर-अक्षर और शब्द-अक्षर डिकोड किया है। डॉ. पुनीत गुप्ता (एमबीबीएस, एमडी, डीएनबी, डीएम, एमबीए) द्वारा छोटे और बड़े अक्षरों वाले हड़प्पनअबुगिदा का पता पहली बार चिकित्सा विज्ञान के ध्वनिविज्ञान के माध्यम से चला।