वाह री कलयुगी औलाद...! 76 वर्षीय बाप Park में सोने को मजबूर तो मां यहां बिता रही जिंदगी

punjabkesari.in Monday, Jun 05, 2023 - 02:18 PM (IST)

अमृतसर(नीरज): बुजुर्ग माता-पिता पर अपनी ही औलाद की तरफ से अत्याचार किए जाने व घर से बाहर निकालने के आए दिन मामले सामने आने के बाद सरकार की तरफ से सीनियर सिटीजन्स एंड पेरेंट्स वैल्फेयर एक्ट का गठन किया गया और डिप्टी कमिश्नर से लेकर एस.डी.ए.म रैंक के अधिकारियों को इन केसों में सुनवाई करने व सख्त फैसले लेने के आदेश दिए गए, लेकिन डी.सी. की तरफ से इस एक्ट के तहत बुजुर्गों के हक में सख्त फैसले लिए जाने के बावजूद भी प्रशासन कलयुगी औलाद के आगे बेबस नजर आ रहा है।इसका एक बड़ा सबूूत 76 वर्षीय विनोद कोहली है, जो कैनेडी एवेन्यू की सरकारी पार्क में खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर है जबकि अदालत ने मां-बाप को घर पहुंचाने व 6 हजार रुपए खर्च देने के आदेश दे रखे हैं। इसके बावजूद भी 68 वर्षीय मां मातली देवी अपनी बेटियों के घर में रहने को मजबूर है, जबकि डी.सी. की अदालत ने मातली देवी के हक में फैसला सुनाया है। मातली देवी के बेटे ने डी.सी. के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में स्टे ले लिया है। इससे डिप्टी कमिश्नर दफ्तर व एस.डी.एम. दफ्तर में अब तक की गई मेहनत पर पानी फिर गया है।

बाप विनोद कोहली के आरोप
विनोद 
कोहली का आरोप है कि उसके बेटे व बहू ने अपने मालिक मकान के साथ मिलकर उसको घर से निकाल दिया है और उसका सारा सामान, जिसमें कपड़े व अन्य सामान भी अपने पास रखा लिया है। इस मामले में सबसे बड़ी बात जो सामने आई है, वो यह है कि विनोद कोहली का बेटा उसको मासिक खर्च देने को तैयार है, लेकिन उसको अपने साथ अपने घर में नहीं रखना चाहता है, जबकि विनोद कोहली चाहता है कि वह अपने बेटे के साथ अपने घर में रहे, क्योंकि उसका कहना है कि उसने अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया है, इसलिए सबसे ज्यादा हक बेटे पर उसका ही है। यह मामला भी इस समय डी.सी. के लिए काफी पेचीदा बना हुआ है। अदालत ने पुलिस व प्रशासन को आदेश दिए हैं कि विनोद को उसके घर में दाखिल करवाया जाए और बेटे से 6 हजार रुपया महीना खर्च भी दिलवाया जाए।

पुलिस ने नहीं की सुनवाई, उल्टा डाला दबाव
बाप
 विनोद कोहली ने बताया कि वह अदालत के आदेशों को लेकर एस.डी.एम. अमृतसर से लेकर पुलिस के उच्चाधिकारियों तक को मिला, लेकिन किसी भी अधिकारी ने उनकी सुनवाई नहीं की है। पुलिस भी अदालत के आदेश लेकर उसके घर गई, लेकिन बेटे ने एक नहीं चलने दी। एक पुलिस अधिकारी ने तो अदालत के आदेशों को ही नजरअंदाज करते हुए यहां तक कह दिया कि 3 हजार रुपया महीना खर्च ले लो और बाहर ही रहो, क्योंकि तुम्हारा बेटा घर रखने को तैयार नहीं है।

क्या है सीनियर सिटीजन्स एंड पेरैंटस वैल्फेयर एक्ट
बुजुर्गों 
के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सीनियर सिटीजन्स एंड पेरैंट्स वैल्फेयर एक्ट के तहत डिप्टी कमिश्नर व एस.डी.एम. के दफ्तर में केस दायर किया जा सकता है। एस.डी.एम. की अदालत के बाद इसमें डी.सी. की अदालत में केस पेश किया जा सकता है और इसमें फैसला सुनाने के अधिकार भी डी.सी. के पास ही रहते हैं। इस केस में यदि बुजुर्ग माता-पिता ने अपनी संपत्ति अपनी औलाद के नाम कर दी हो और औलाद ने संपत्ति लेकर बाहर निकाल दिया हो तो डी.सी. संपत्ति का इंतकाल तोड़कर फिर से बुजुर्ग माता-पिता के नाम कर सकता है। यहां तक कि आम तौर पर रजिस्ट्री करते समय बकायदा एक्ट का नाम लिखा जाता है, जब कोई पिता या माता अपनी औलाद के नाम जमीन जायदाद की रजिस्ट्री कर रहा हो। इसके अलावा बुजुर्ग माता-पिता को घर में एंट्री करवाने व महीनावार खर्च देने के भी आदेश दिए जाते हैं। ड्यूटी मैजिस्ट्रेट पुलिस की मदद से पीड़ित बुजुर्ग को घर में एंट्री करवाता है, लेकिन इस एक्ट के तहत डी.सी. की तरफ से सुनाए गए आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दिए जाने से मामला फिर लटक जाता है और बुजुर्ग को अपना हक नहीं मिल पाता है।

पूर्व डी.सी. काहन सिंह पन्नू के समय लिए गए सख्त फैसले
अपने
 सख्त स्वभाव व इमानदार छवि के लिए विख्यात अमृतसर के पूर्व डिप्टी कमिश्नर काहन सिंह पन्नू के कार्यकाल के दौरान सीनियर सिटीजन्स एंड पेरैंट्स वैल्फेयर एक्ट को सख्ती के साथ लागू करवाया गया और कई केसों में सख्त फैसले भी लिए गए, लेकिन इसके बाद के कार्यकाल में बहुत कम केस देखने को मिले, जिसमें प्रशासनिक अधिकारियों ने बुजुर्ग माता-पिता के हक में सख्त फैसला दिया हो, हालांकि आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद पूर्व डी.सी. हरप्रीत सिंह सूदन व मौजूदा डी.सी. अमित तलवाड़ की तरफ से बुजुर्गों के हक में सख्त फैसले लिए जा रहे हैं।

डी.सी. व एस.डी.एम. की अदालतों में आज भी दर्जनों केस लंबित
सीनियर 
सिटीजन्स एंड पेरेंट्स वैल्फेयर एक्ट की बात करें तो आज भी डिप्टी कमिश्नर दफ्तर व अलग-अलग इलाकों के एस.डी.एम.एज. के दफ्तरों में दर्जनों केस लंबित पड़े हैं, जबकि औलाद से सताए गरीब माता-पिता तो इन अदालतों तक पहुंच ही नहीं पाते हैं, क्योंकि उनके पास संसाधन नहीं होते हैं। ऐसे में जब हाईकोर्ट जाना पड़ जाए तो कुछ बुजुर्गों के पास तो हाईकोर्ट जाने के लिए किराया व वकील करने के लिए रुपया नहीं होता है।

सरकारी ओल्ड ऐज होम नाकाफी
जिला 
प्रशासन की तरफ से एक ओल्ड ऐज होम बनाया गया है, लेकिन वहां बहुत कम लोग ठहर सकते हैं। कुछ निजी संस्थाओं की तरफ से ऐसे ओल्ड ऐज होम बनाए गए हैं, लेकिन वहां पर तीन हजार से लेकर दस हजार तक खर्चा लिया जा रहा है। डी.सी. हरप्रीत सिंह सूदन की तरफ से ओल्ड ऐज होम बनाने का ऐलान किया गया था, लेकिन उनके तबादले के बाद वह प्रोजैक्ट भी ठंडे बस्ते में पड़ चुका है।


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Vatika

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