मौत के आगोश में समाए मरीजों को मिली नई जिंदगी, पढ़ें पूरी खबर
punjabkesari.in Friday, Dec 09, 2022 - 02:35 PM (IST)

चंडीगढ़ (पाल): इस दुनिया में जब एक इंसान की मौत होती है तो पूरा परिवार उसके गम में टूट जाता है, लेकिन मौत के आगोश में समाए 3 युवकों ने मर रहे 11 लोगों को नई जिंदगी दी है। मृतकों के परिवारों ने जो किया है वह हर किसी के बस की बात नहीं है। इन परिवारों ने अपने मृत सदस्यों के अंगों का दान कर जीवन का सबसे बड़ा पुण्य प्राप्त किया है। जानकारी के अनुसार पी.जी.आई. तीन ब्रेन डेड युवकों का ट्रांसप्लांट किया गया है जिससे 11 मरीजों को नई जिंदगी मिली है। उनमें से एक 22 वर्षीय नमन का दिल ग्रीन कॉरिडोर बनाकर 2500 किलोमीटर दूर चेन्नई के एक अस्पताल से शेयर किया गया है। जहां 13 वर्षीय की लड़की का दिल ट्रांसप्लांट किया गया है। पंचकूला के सेक्टर-3 के निवासी नमन को सड़क हादसे में घायल होने के बाद को पी.जी.आई. आपात स्थिति में लाया गया। सिर में गंभीर चोट लगने के कारण उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। दो हफ्ते तक जिंदगी और मौत की जंग लड़ने के बाद 5 दिसंबर को नमन को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था।
पिता सेवाराम और पत्नी ईशा ने नमन के अंग दान करने का फैसला किया है। मरीज का हार्ट, किडनी और कॉर्निया दान कर दिया गया है लेकिन युवक का हार्ट पी.जी.आई. में किसी मरीज से मेल नहीं था, जिसके बाद चेन्नई के एम.जी.एम. अस्पताल में एक मरीज से मैच हो गया। पी.जी.आई. से मोहाली एयरपोर्ट से 22 मिनट में ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया और दिल चेन्नई एयरपोर्ट पर सुबह 8.30 बजे विस्तारा एयरलाइंस की फ्लाइट से दोपहर 3.25 बजे पहुंचा। यहां से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर दिल अस्पताल ले जाया गया, जहां 13 साल की बच्ची का हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया है जबकि किडनी और कॉर्निया पी.जी.आई. में मरीजों का प्रत्यारोपण किया गया है इस साल अब तक पी. जी.आई. मरीजों का ट्रांसप्लांट किया गया है। इस वर्ष अब तक पी.जी.आई. 39 ब्रेन डेड मरीजों के अंग ट्रांसप्लांट किए हैं।
10 अंग पी.जी.आई. में हुए प्रत्यारोपण
22 नवंबर को गांव लोधीपुर का रहने वाला 20 वर्षीय अमनदीप सिंह भी सड़क हादसे का शिकार हो गया था। अमनदीप 11 दिन से वेंटिलेटर पर था लेकिन डॉक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद उसकी जान नहीं बच सकी। सभी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए तीन दिसंबर को उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। पिता कुलदीप सिंह, बेटे की किडनी व कार्निया पी. जी.आई. में दान किया वहीं पटियाला निवासी 28 वर्षीय बलजिंदर सिंह को ब्रेन डेड होने के बाद उसकी किडनी पी.जी.आई. में दान हुई।
ऐसे परिवार दूसरों के लिए रोल मॉडल होते हैं
पी.जी.आई.एम.एस. और वहीं 'रोटो' के नोडल अधिकारी प्रो. विपन कौशल ने कहा कि ऐसे परोपकारी परिवार दूसरों के लिए आदर्श होते हैं। ऐसा लगता है कि वह जागरूकता पैदा करने में एक लंबा सफर तय कर चुके हैं। ट्रांसप्लांट कॉर्डिनेटर इस पूरी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो लोगों को अंग दान के बारे में शिक्षित करते हैं। उनके समन्वयक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। यदि अंग प्राप्त करने वालों के परिवारों की बात को मान लिया जाए तो वे दानी और उनके परिवार का जीवन भर अहसान नहीं चुका सकते। यदि इस समय अंग नहीं मिला होता, तो उन्हें नहीं लगता कि वह अधिक समय तक जीवित रहता। जिन लोगों को अंगमिले हैं वह जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर थे। अगर उन्हें अंग न मिलते तो वह शायद जीवित न रहते।
परिवार के इस जज्बे और फैसले को सलाम
इन परिवारों के जज्बे और फैसले को सलाम करते डायरेक्टर पी.जी.आई. डॉ. विवेक लाल ने कहा कि इन्होंने इतना बड़ा फैसला लेकर बहुत सारे लोगों को नई जिंदगी दी है। पी.जी.आई. टीम का भी इसमें बड़ा योगदान है, जिसने इन लोगों के अंग ट्रांसप्लांट किए हैं। जिन जरूरतमंदों को अंग ट्रांसप्लांट किए गए है उनकी हालत बेहद नाजुक थी और वह अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर थे। उम्मीद की जाती है कि अधिस से अधिक लोग जागरूक होकर अंगदान के लिए आए आएं और प्राप्त करने वाले और दान करने वाले अंतर को घटाया जा सके।
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