अब आलू की खेती नहीं करेंगे किसान,इस कारण हैं परेशान

punjabkesari.in Tuesday, Jan 08, 2019 - 10:30 AM (IST)

पटियाला/सनौर(जोसन): पटियाला के नजदीकी कस्बे सनौर तथा अन्य क्षेत्रों में आलुओं की अधिक खेती होने के बाद अब अच्छा दाम न मिलने के कारण किसान रो उठे हैं। गिरते दाम ने इन किसानों की तीसरी बार परीक्षा ली है, जब लगातार 3 वर्षों में किसानों को आलुओं का सही दाम नहीं मिला। यहां के आलू हमेशा पंजाब ही नहीं बल्कि हरियाणा सहित अन्य राज्यों में भी जाते हैं।

PunjabKesari

किसानों ने बताया कि सही रेट की उम्मीद में उन्होंने अपनी पिछली फसल को कोल्ड स्टोरों में रखवा दिया था, लेकिन अब पुरानी तो दूर नई फसल के भी खरीददार नहीं मिल रहे हैं। किसान अब परेशान होकर आलुओं की खेती ही छोड़ने के बारे में सोच रहे हैं। बौसर रोड सनौर के किसान चरनजीत सिंह और गुरजीत सिंह का कहना है कि लागत मूल्य भी वापस न आने पर वह सोच रहे हैं कि आलुओं को खराब होने से पहले किसी को मुफ्त में ही दे दें। सही दाम न मिलने पर ही फसल को कोल्ड स्टोर में रखा जाता है लेकिन हालात हर वर्ष बद से बदतर रहे हैं।  उन्होंने बताया कि आलू बीजने से लेकर निकालने तक लगभग 40-50 हजार रुपए प्रति एकड़ की लागत आती है, जिस हिसाब के साथ हर बोरी की उत्पादन कीमत लगभग 500 रुपए हो जाती है। पहले आलुओं की बोरी 600 से 700 रुपए तक बिकती थी। अब किसान अपनी पुरानी फसल को 20 से लेकर 70 रुपए प्रति बोरी के हिसाब के साथ बेचने के लिए मजबूर हैं।

PunjabKesari

आलुओं का समर्थन मूल्य तय करने की मांग की
किसानों ने बताया कि पिछले सालों में उनका कोल्ड स्टोर भी 4 से 6 करोड़ रुपए के घाटे में जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है अलग तरह की फसलें लाई जाएं लेकिन ऐसा करने वाले किसानों को तो फसल का पूरा मूल्य भी नहीं मिलता। उन्होंने सरकार से मांग की कि आलुओं का कम से कम समर्थन मूल्य तय किया जाना चाहिए। नहीं तो किसान पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे।

कई किसानों ने रोकी ताजा फसल की पुटाई
कई किसानों ने ताजा फसल की पुटाई भी रोक दी है क्योंकि सही मूल्य न मिलने के कारण वे पुटाई की मजदूरी भी अपनी ओर से खर्च करेंगे। किसान दुविधा में हैं कि वे अपनी फसल को इसी तरह ही सडऩे दें या पशुओं को खाने के लिए खुली छोड़ दें। ऐसे हालात में तकरीबन दर्जन भर किसानों ने आलुओं की काश्त से तौबा कर ली है लेकिन अपने आप को किसान हितैषी कहने वाली केन्द्र और राज्य सरकारों में से किसी ने भी किसानों की जमीनी हकीकत समझ कर इसका हल करने की ओर सार्थक कदम नहीं उठाए। किसान बस कर्ज माफी के आंकड़ों और लुभावने लारों में ही उलझाए जा रहे हैं।

PunjabKesari

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

swetha

Recommended News

Related News