200 आंतकियों से भिड़े गए थे कामरेड बलविंदर सिंह , राज्यपाल भी थे उनके मुरीद

punjabkesari.in Saturday, Oct 17, 2020 - 04:19 PM (IST)

तरनतारन: सरहदी कस्बा भिखीविंड में शौर्या शौर्य चक्र विजेता कामरेड  बलविंदर  सिंह की अज्ञात व्यक्तियों ने गोलियां मारकर हत्या कर दी।  वह कई वर्षों तक आंतकियों से डट कर मुकाबला करते रहे। उनका परिवार हमेशा आतंकियों के निशाने पर रहा लेकिन वे कभी घबराए नहीं,  यहां तक कि तत्कालीन गवर्नर जेएफ रिबेरो भी उनके मुरीद हो गए थे। 

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आतंकवादी गतिविधियों को देख गुस्से से लाल हो जाता था कामरेड बलविंदर
जानकारी के अनुसार कामरेड बलविंदर सिंह जिसने आतंकवाद के काले दिनों में साल 1986 से ही आतंकवाद का विरोध करना शुरू कर दिया था। इसके अंतर्गत कामरेड ने अपने घर पर पक्के मोर्चे तैयार कर रखे थे। इस द्वारा उसने आतंकवादियों के साथ समय तय कर करीब 18 मुकाबले किए थे। इन मुकाबलों दौरान पंजाब पुलिस की तरफ से कामरेड बलविंदर सिंह और भाई रणजीत सिंह के परिवारों को सुरक्षा जवानों सहित हथियार दिए गए थे। बलविंदर सिंह जिसने घर में ही प्राइवेट स्कूल चलाते हुए बच्चों को भी आतंकवाद विरोधी पाठ पढ़ाया था, जो अक्सर आतंकवादियों का नाम सुनते ही गुस्से से लाल हो जाता था। इस बहादुरी को देखते हुए कामरेड बलविंदर सिंह, पत्नी जगदीश कौर, भाई रणजीत सिंह और भाभी बलराज कौर को राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने 1993 दौरान शौर्य चक्र के साथ सम्मानित किया था। 

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11 महीनों में परिवार पर हुए थे 11 हमले 
बलविन्दर सिंह संधू और उनके परिवार पर 11 महीनों में करीब 11 बार हमले हुए हैं। इन हमलों में 10 से 200 तक के आतंकवादियों के समूह शामिल थे। हर बार उनके परिवार ने मिल कर आतंकवादियों को मुंह तोड़ जवाब दिए। उनके परिवार पर पहला हमला 1990 में हुआ और आख़िरी हमला 1991 में किया गया था। लेकिन सबसे ख़तरनाक हमला 30 सितम्बर 1990 को 200 के करीब आतंकवादियों ने किया था। उनके घर को चारों तरफ़ से घेर लिया गया था और लगातार हमले करते रहे। उनके घर को आती सड़क पर बारूदी सुरंगे भी बिछाईं गई थीं जिससे उन्हें पुलिस या और सुरक्षा न मिल सके। संधू भाइयों और उनकी पत्नियों ने सरकार की तरफ से दिए हथियारों के साथ उनका डट कर मुकाबला किया और आतंकवादियों को पीछे मुड़ने से मजबूर कर दिया। इस बहादुरी के लिए कामरेड बलविन्दर सिंह, उनकी पत्नी जगदीश कौर, भाई रणजीत सिंह और उनकी पत्नी बलराज कौर को शौर्या चक्कर से सम्मानित किया गया था। 


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90 के दशक में कामरेड बलविन्दर सिंह और उनका परिवार आतंकवाद विरुद्ध डट कर लड़ता रहा। सैंकड़ों हथियारबंदों की तरफ से किए हमले का बहादुरी से सामना करते उसे पीछे मुड़ने के लिए मजबूर करने वाले कामरेड को आखिर घात लगाकर उनके उसी घर में ही मौत के घाट उतारा गया, जो कभी आतंकवादियों के साथ लड़ाई लड़ने वाला किला कहलवाता था। इसी दौरान मोटसाइकिल सवार आए नौजवान ने सड़क के दूसरी तरफ़ किसी अन्य निजी स्कूल के पास घात लगा कर खड़े थे। जैसे ही कामरेड अपने घर के अंदर घुसा तो दोनों ने पीठ पर गोलियां बरसाई। इलाके में यह भी चर्चा है कि जिस घर में कामरेड आतंकवादी हमलों का मुंह मोड़ता रहा उसी घर में ही अब सुरक्षा न होने के कारण उनकी हत्या कर दी गई। 

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