...इसलिए 2020 बना पंजाब के लिए कभी न भूलने वाला साल

punjabkesari.in Monday, Dec 28, 2020 - 01:37 PM (IST)

चंडीगढ़ः पंजाब में 2020 में पूरे साल चाहे जो कुछ भी हुआ हो लेकिन केन्द्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ नवंबर के अंत और दिसंबर में किसानों के विरोध ने सबको पीछे छोड़ दिया। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई की बात करें या फिर जहरीली शराब पीने से 100 से ज्यादा लोगों की मौत का मामला हो। वहीं दो मंत्रियों की नाराजगी के कारण राज्य के शीर्ष नौकरशाह को अपने पद से हटना पड़ा। 

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मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू के संबंध भी सुधरते प्रतीत हुए। लेकिन इन सभी घटनाओं के बीच सबका ध्यान किसानों के प्रदर्शन पर रहा। केन्द्र द्वारा सितंबर में बनाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हजारों किसान राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर करीब एक महीने से डटे हुए हुए हैं। किसान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत केंद्र सरकार से कानूनों को वापस लेने और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने की मांग कर रहे हैं। दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों में से कुछ के चेहरों पर ही मास्क हैं और सामाजिक दूरी के नियम का पालन भी होता नहीं दिख रहा है। लेकिन पंजाब ने कोविड-19 महामारी के इस दौर में भारी कीमत चुकाई है। राज्य में 1.6 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हुए हैं वहीं 5,200 लोगों की मौत हुई है। दिल्ली की सीमाओं पर भले ही किसान कोविड-19 संबंधी सख्तियों का पालन नहीं कर रहे हों लेकिन पंजाब में स्थिति एकदम उलट है। राज्य में सभी शहरों और कस्बों में रात्रिकालीन कर्फ्यू लगा हुआ है। 

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पटियाला जिले में निहंग समुदाय के लोगों को लॉकडाउन के आदेश का उल्लंघन करने से रोकने का प्रयास करने पर एक पुलिसकर्मी का हाथ काट दिया गया था। पुलिस टीम पर हमला कर गुरुद्वारा में छुपे हमलावरों को गिरफ्तार कर लिया गया था।  सहायक उप निरीक्षक हरजीज सिंह का हाथ पीजीआई चंडीगढ़ के डॉक्टरों ने सही-सलामत वापस जोड़ दिया है। जुलाई-अगस्त में तरन तारन, अमृतसर और बटाला जिलों में जहरीली शराब पीने से 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना को लेकर राज्यसभा सदस्यों प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दुल्लो ने अपनी ही सरकार को निशाना बनाया और घटना की जांच किसी केन्द्रीय एजेंसी से कराने की मांग की। राज्य कांग्रेस ने इस बात को लेकर दोनों की शिकायत पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से की और ‘अनुशासनहीनता' को लेकर कड़ी कार्रवाई की अनुशंसा की। 

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एक अन्य घटनाक्रम में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने ही दो मंत्रियों के कारण असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। मनप्रीत सिंह बादल और चरणजीत सिंह चन्नी राज्य की आबकारी नीति के संबंध में मुख्य सचिव करण अवतार सिंह की टिप्पणी से नाराज हो गए। स्थिति ऐसी हो गई कि दोनों ने मुख्य सचिव की उपस्थिति वाली बैठकों में भाग लेने से इंकार कर दिया और मुख्यमंत्री को मंत्रियों या मुख्य सचिव में से एक को चुनने की परोक्ष धमकी भी दे डाली। दो सप्ताह तक चले घटनाक्रम के बाद मुख्य सचिव ने अफसोस जताया। लेकिन कुछ ही समय बाद उनकी जगह पर 1987 बैच की आईएएस अधिकारी विनी महाजन को राज्य की मुख्य सचिव बनाया गया। वह पद पर आसीन होने वाली राज्य की पहली महिला अधिकारी हैं। 

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गौरतलब है कि महाजन के पति दिनकर गुप्ता पंजाब पुलिस प्रमुख (पुलिस महानिदेशक) हैं। लेकिन पंजाब के पूर्व पुलिस प्रमुख सुमेध सिंह सैनी के लिए यह साल बहुत खराब रहा और उन पर हत्या का आरोप लगा। 1991 में सैनी पर आतंकवादी हमले के बाद एक जूनियर इंजीनियर को कथित रूप से पुलिस ने हिरासत में लिया था जिसके बाद से वह लापता हैं। सैनी 2015 में फरीदकोट के बेहबल कलां में पुलिस की गोलीबारी से जुड़े मामले में भी आरोपी हैं। गुरुग्रंथ साहिब के कथित अपमान को लेकर प्रदर्शन कर रहे दो लोगों की गोली लगने से मौत हो गई थी। कृषि कानूनों को वापस लेने और फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी को लेकर किसानों के प्रदर्शन के बीच, उनका रुख भांपते हुए शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा से दो दशक पुराने संबंध तोड़ते हुए स्वयं को केन्द्र की राजग सरकार से अलग कर लिया।

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इस विरोध प्रदर्शन के दौरान किसान संगठनों के बीच खासी एकजुटता दिखी और पंजाब के 30 से ज्यादा किसान संगठनों ने साथ मिलकर धरना और रेल रोको आंदोलन चलाया। रेल रोको आंदोलन के कारण भारतीय रेलवे ने पटरियों के खाली होने तक मालगाड़ी नहीं चलाने का फैसला किया। इस कारण ताप बिजली घरों और उर्वरक संयंत्रों में कोयले की कमी होने लगी तथा उद्योगों को भी नुकसान हुआ। इसके बाद दिल्ली चलो आंदोलन में पंजाब से बड़ी संख्या में किसानों ने राष्ट्रीय राजधानी की ओर कूच किया। उनके साथ हरियाणा के भी कुछ किसान नजर आए। किसान आंदोलन के दौरान पंजाब की कांग्रेस सरकार ने तत्काल अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि वह किसानों के साथ है। उसने विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर भाजपा नीत केन्द्र सरकार से कानूनों को वापस लेने की भी मांग की। सदन ने केन्द्र के कानूनों को राज्य में निष्प्रभावी करने के लिए विधेयक भी पारित किए। अमृतसर पूर्व से विधायक नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा अक्टूबर में आयोजित ट्रैक्टर रैली में भाग लिया। 


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