एेसा है ट्रांसजेंडरज का जीवन, क्या जानते हैं इनके बारे में

punjabkesari.in Tuesday, Jan 19, 2016 - 02:48 PM (IST)

नई दिल्लीः ट्रांसजेंडर लोगों के लिए भारत सरकार ने ''ट्रांसजेंडर पर्सन्स विधेयक 2015 तो बना दिया लेकिन उनके साथ होने वाले भेदभाव अाज भी  जस के तस हैं।

क्या है ट्रांसजेंडर

ट्रांसजेंडर शब्द से उन लोगों के व्यवहार की व्याख्या होती है जो अपने जन्म से निर्धारित लिंग के विपरीत लिंग की भूमिका में जीवन बिताते हैं, लेकिन जो लोग किसी भी तरह के चिकित्सीय विकल्प को नहीं अपनाते, या वो लोग जो ट्रांससेक्सुअल होने की अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते वो स्वंय को दोनों लिंगों की बीच की कड़ी, या लिंग बदलाव के मध्य में मानते हैं। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बीच हुए कुछ अध्ययनों में उनके यौन झुकाव का अध्ययन किया गया जिसकी लगभग हर रिपोर्ट में ट्रांसजेंडर समूह के सदस्यों  ने बताया कि पूरी आबादी में उनका आकर्षण तुलनात्मक रूप से समान लिंग के व्यक्तियों की ओर ही होता है।

विभिन्न तरीकों से लिंग और लैंगिक अभिव्यक्ति के निश्चित नियमों को तोड़ने वालों के लिए ट्रांसजेंडर शब्द समान रूप से उपयोग किया जाता है। दूसरे शब्दों में, जब एक व्यक्ति जैविक, कानूनी, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक रूप से अपने लिंग से सरोकार नहीं रखता तो उसे ट्रांसजेंडर कहा जाता है। ट्रांसजेंडर होना किसी भी तरह से यौन अभिविन्यास से संबंधित नहीं है और ना ही इससे यह पता चलता है कि व्यक्ति विषमलिंगी, द्विलिंगी या समलैंगिक है। लड़के व लड़कियों जैसे विभिन्न लिंगों के व्यक्तियों के प्रति आकर्षण के बावजूद भी व्यक्ति के ट्रांसजेंडर होने की संभावना होती है।

इनके जीवन पर पड़ा असर

ट्रांसजेंडर शब्द से किसी के जीवन में कैसे उतार-चढ़ाव अाते है वे खुद बताते है। अक्कई पद्मशाली  बताती हैं जब वे 11 साल की थीं, तो उनके पिता ने उनकी टांगों पर उबलता हुआ पानी डालकर उन्हें ''ठीक'' करने की कोशिश की थी लेकिन उसका असर ये हुअा कि उसने ख़ुदक़ुशी करने के बारे में सोचने लगीं। गले में फंदा डालकर वो पंखे से लटककर शायद अपनी जान ले ही लेतीं पर उनके भाई ने उन्हें बचा लिया।

उम्र का ये वो दौर था जब उनका शरीर आदमी जैसा दिखाई देने लगा था और मन में औरत जैसी भावनाएं जगह बना रही थीं। इस उथल-पुथल को समझने की जगह उन्हें सिर्फ़ परेशान किया गया।12 साल की उम्र में चूहे मारने की दवा खाकर एक बार फिर अपनी जान लेने की कोशिश की. लेकिन फिर बचा ली गईं. लेकिन अब परिवारवालों ने उन्हें घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

अक्कई कहती हैं सरकार द्वारा पास विद्धेयक में कई सकारात्मक प्रावधान हैं, जैसे बच्चों को घर-परिवार से अलग नहीं किया जाएगा जब तक किसी अदालत ने ऐसा आदेश बच्चे की भलाई को देखते हुए न दिया हो। स्कूलों में सब बच्चों के साथ ट्रांसजेंडर बच्चों को भी पढ़ाया जाए, भेदभाव ना किया जाए, फ़ीस माफ़ की जाए और रहने का भी बंदोबस्त किया जाए।

ट्रांसजेंडर लोगों के लिए ''सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी'' मुफ़्त उप्लब्ध हो और उन्हें अन्य पिछड़ी जाति मानकर आरक्षण का फ़ायदा मिले पर अक्कई ध्यान दिलाती हैं कि ऐसा ना करने पर विधेयक में कोई सज़ा या जुर्माना नहीं तय किया गया है।

वो कहती हैं, ''''समाज में ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति दुर्भावना है और बिना सज़ा या जुर्माने के डर के हर व्यक्ति की अपनी सोच ये तय करेगी कि अगर क़ानून बन जाए तो वो उसका पालन करें या ना करें।''''

बचपन में ये सारी प्रताड़ना झेलने के बाद अक्कई की पढ़ाई छूट गई। उन्हें देह व्यापार करना पड़ा। अब वो एक समाजसेवी हैं। कर्नाटक सरकार ने उन्हें प्रदेश स्तरीय सम्मान से नवाज़ा है पर भीख़ मांगने, देह व्यापार और समाजसेवा के अलावा बहुत कम ही ऐसे काम हैं जिनके ज़रिए ट्रांसजेंडर लोग अपनी जीविका चला पाते हैं।

इसी तरह सविता की ज़िंदगी भी दसवीं की पढ़ाई छूट जाने के बाद बदल गई। चार साल तक पुणे में देह व्यापार करने के बाद वो मुंबई की एक स्वयंसेवी संस्था के संपर्क में आईं. उन्हें वहां काम मिला। पढ़ाई पूरी ना होने की वजह से रोज़गार ना मिलना ट्रांसजेंडरों के लिए बड़ी समस्या है। सविता कहती हैं, ''''हमें रोज़गार के लिए ज़रूरी प्रशिक्षण के अवसर मिलने चाहिए। निजी और सरकारी, सभी क्षेत्रों में एक या दो फ़ीसद नौकरियां ट्रांसजेंडर लोगों के लिए आरक्षित होनी चाहिए।''''

ट्रांसजेंडरों के लिए सकारात्मक पहल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में ट्रांसजेंडर को ''थर्ड जेंडर'' के रूप में मान्यता दी थी। इसके बाद कई प्रमाण पत्रों में पुलिंग, स्त्रीलिंग के साथ ट्रांसजेंडर की तीसरी श्रेणी बनाई गई। इसके बाद दक्षिण भारत के कई राज्यों में ''ट्रांसजेंडर पॉलिसी'' भी बनाई गई. पर अक्कई के मुताबिक़ कर्नाटक में ''ट्रांसजेंडर पॉलिसी'' बनाए जाने के बावजूद उसपर कुछ ख़ास अमल नहीं हुआ है। पिछले साल डीएमके सांसद तिरुची शिवा ने एक निजी सदस्य विधेयक के ज़रिए पहली बार ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों के लिए विधेयक राज्यसभा में पेश किया जो ध्वनिमत से पारित भी हुआ।

इसके बाद ही सामाजिक न्याय मंत्रालय ने इसमें सुधार कर ''ट्रांसजेंडर पर्सन्स विधेयक 2015'' बनाया और अब उस पर आम लोगों से सुझाव मांगे गए। अलग-अलग संस्थाओं ने इसपर अपनी राय दी है। कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु से ट्रांसजेंडर लोगों की संस्थाओं के समूह, ''द साउथ इंडिया ट्रांसजेंडर समिति'', ने अपनी मांगों में शिक्षा, रोज़गार, ट्रांसजेंडर आयोग बनाने जैसी कई बातें कही हैं। इस समूह में अक्कई की संस्था भी शामिल है। इन मांगों में इस बात को प्रमुखता से कहा गया है कि मंत्रालय ट्रांसजेंडर लोगों से और बातचीत कर उनकी दिक़्क़तों के बारे में समझ बढ़ाएं।

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Related News