दिल्ली स्टेट बुक सेलर्स एंड पब्लिशर्स एसोसिएशन ने पुस्तकों पर इम्पोर्ट ड्यूटी को लेकर रखी ये मांग
punjabkesari.in Friday, Jul 11, 2025 - 11:26 AM (IST)

नई दिल्ली : दिल्ली स्टेट बुक सेलर्स एंड पब्लिशर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हिमांशु चावला ने कहा कि इस इम्पोर्ट ड्यूटी से सरकारी राजस्व में कोई सार्थक बढ़ोतरी नहीं हुई है तथा न ही इम्पोर्ट ड्यूटी लागू होने के बाद विदेशी प्रकाशकों ने वैज्ञानिक और तकनीकी किताबों की प्रिंटिंग भारत से शुरू की है तथा इससे इस इम्पोर्ट ड्यूटी लगाने के दोनों उदेश्य पूरे नहीं हुए हैं।
उन्होंने बताया की इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि विकसित देशों में किताबों के आयात पर कोई इम्पोर्ट ड्यूटी नहीं लगाई जाती और भारत द्वारा लगाई गई इम्पोर्ट ड्यूटी के जबाब में यह देश भी किताबों पर इम्पोर्ट ड्यूटी लगा सकते हैं जिससे देश की प्रिंटिंग इंडस्ट्री को आर्थिक नुकसान पहुंचेगा और विदेशी राजस्व कलेक्शन पर प्रभाव पड़ेगा तथा रोजगार के साधन सीमित हो जायेंगे।
एसोसिएशन के अध्यक्ष हिमांशु चावला ने कहा की इस समय देश में इंग्लैंड, अमेरिका तथा यूरोपीय देशों से साइंस, टेक्नोलॉजी और मेडिकल शिक्षा की किताबें आयात की जाती हैं जोकि ऑक्सफोर्ड, हारवर्ड, एम.आई.टी. जैसे विश्व प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा वर्षों के शोध के निष्कर्ष के आधार पर प्रकाशित की जाती हैं तथा यह किताबें भारत में उच्च शिक्षण संस्थानों में रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए प्रयोग की जाती हैं। उन्होंने बताया की इन किताबों पर इम्पोर्ट ड्यूटी लगाने से यह महंगी हो रही हैं जिससे युवा वैज्ञानिक, छात्रों की शिक्षा प्रभावि हो रही है और मध्यम वर्ग से सम्बन्ध रखने बाले परिवारों के छात्र सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।
अध्यक्ष हिमांशु चावला ने कहा की कहा इस इम्पोर्ट ड्यूटी को भारतीय प्रिंटिंग इंडस्ट्री को प्रमोट करने तथा विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अपनी किताबें भारत में प्रिंटिंग करने के उद्देश्य से लागू किया गया था लेकिन यह दोनों उद्देश्यों में फेल साबित हुआ है क्योंकि इम्पोर्ट ड्यूटी लागू होने के बाद न तो किसी बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनी ने भारत से पुस्तकों का प्रकाशन शुरू किया है और न ही सरकार को कोई बड़ा राजस्व हासिल हुआ है बल्कि उल्टे शैक्षणिक किताबों की कीमतों में बढ़ोतरी से छात्र वर्ग विशेषकर गरीब और पिछड़े तवके के छात्रों पर बोझ बढ़ा है जिससे उनको उच्च शिक्षा ग्रहण करने में बाधा उत्पन्न हो रही है।
उन्होंने कहा कि शैक्षणिक किताबों पर इम्पोर्ट ड्यूटी से इनकी कीमतों में बढ़ोतरी की बजह से अनुसंधान संस्थानों और पब्लिक पुस्तकालयों में विपरीत असर पड़ा है क्योंकि यह संसथान कोविड महामारी के बाद बजट की तंगी से जूझ रहे हैं तथा महंगी किताबें लेने से परहेज कर रहे हैं जिसकी वजह से छात्र मुश्किल का सामना कर रहे हैं।
उन्होंने कहा की इम्पोर्ट ड्यूटी लागू होने से प्रिंटिंग उद्योग को धरातल पर कोई फायदा नहीं हुआ है और इम्पोर्ट ड्यूटी लागू होने के बाद किसी बड़ी बिदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनी ने भारत में प्रकाशन शुरू नहीं किया गया। उन्होंने कहा की प्रिंटिंग उद्योग कठिन दौर से गुजर रहा है और सरकार से प्रिंटिंग उद्योग में रिफॉर्म्स लाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि हालांकि किताबों को जी.एस.टी. से मुक्त रखा गया है लेकिन पुस्तकों के प्रकाशन से जुड़े फ्री लांस उद्योगों, कॉपी एडिटर, प्रूफ रीडर्स, इलस्ट्रेटर आदि पर 18 प्रतिशत जी.एस.टी. लागू है जबकि लेखकों की रॉयल्टी पर 12 प्रतिशत जी.एस.टी. लागू है।
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