खरीददार न मिलने से खेतों में बिखरा आलू, दोहरी मार झेल रहा किसान

punjabkesari.in Monday, Feb 27, 2023 - 07:29 PM (IST)

मुल्लांपुर दाखा (कालिया): ''जट्ट सीरी के गल लग्ग रोवे,  अक्खिया चो नीर वगिया'' जैसी कहावत सच निकली जब ठेके पर जमीन आलू की महंगे दामों पर की खेती और बेचने के समय खरीददार न मिलने कारण आज आलू खेतों में इधर-उधक बिखर रहे हैं। दूसरा झटका किसान को मक्के का बीज ब्लैक में लेकर बोया जा रहा है जिससे किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

किसान कुलजिंदर सिंह बासिया बेट ने बताया कि उन्होंने 500 से 800 रुपए प्रति 50 किलो के आलू बोया था जिसमें प्रति एकड़ 4 गट्टू डी.ए.पी खाद, 2 गट्टू पोटाश, 10 किलो जिंक, 2 गट्टू यूरिया और 5-6 सप्रे और मंहगा डीजल फूक कर बुआई की थी, जिस पर पहले कोहरे की मार पड़ी और ठंड में रात को पानी लगाकर फसल को बचाया गया, फिर भी नुकसान हुआ। किसानों को उम्मीद थी कि आलू की फसल अच्छी कीमत पर बिकेगी, लेकिन खरीददार नहीं मिलने से आलू की फसल खेतों में ही इधर उधर बिखर रहे हैं और किसान परेशान हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि आलू की खुदाई व छंटाई पर करीब 60 से 65 हजार रुपए खर्च किए गए हैं, जिसमें जमीन का ठेका शामिल नहीं है।

उन्होंने कहा कि बाहरी राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश आदि में प्याज के दाम घटने के कारण व्यपारी और किसान बहुत घाटे पर जा रहे हैं और किसान प्याज से मुनाफा कमाकर आलू मंगवाते थे, अब आलू की खरीददारी से पीछे हट रहे हैं। इससे किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है।  इसलिए सत्ताधारी सरकारों को किसानों का हाथ पकड़ना चाहिए।

किसान कुलजिंदर सिंह ने बताया कि किसानों की पहली पसंद मक्का 9108 हो गई है, मक्का की बुआई का काम जोरों पर चल रहा है, लेकिन इसका बीज किसानों को 2000 रुपए का थैला (साढ़े 4 किलो) अब 2500 रुपए में मिलने लगा है। मजबूर किसानों को अब मक्के के बीज ऊंचे दामों पर खरीदने पड़ रहे हैं जिससे किसान को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है, इसलिए सत्ताधारी सरकार व उच्चाधिकारियों को ध्यान देना चाहिए।

सरकार खरीद एजेंसी मार्कफेड के माध्यम से खरीद करके आलू की फसल विदेशों में आयात करना चाहिए, क्योंकि अरब देशों में आलू की अच्छी कीमत मिलती है और केंद्र सरकार विदेशों से संबंध स्थापित  करते हुए बार्डर खोलने चाहिए ताकि आलू की फसल को बाहर भेजकर किसानों के भारी नुकसान को बचाने का प्रयास किया जा सके और आलू की फसल को गिरने से बचाया जा सके। आर्थिक मंदी का बोझ यदि नहीं तो कर्ज के बोझ तले दबे किसान अधिक कर्ज के कारण आत्महत्या करने को मजबूर हो जाएगे।

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News Editor

Kamini

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