चक्करों में Jalandhar वाले...! Flats में लगा दिए लाखों, कहीं आपने तो नहीं लगाया था पैसा..?

punjabkesari.in Tuesday, Aug 08, 2023 - 02:26 PM (IST)

जालंधर (अनिल पाहवा): 18 साल पहले शहर में शुरू हुए एक प्रोजैक्ट को देखकर न जाने के कितने लोगों के मन में खुशी की एक लहर दौड़ी थी, कि उनका एक आशियाना अपना होगा। वर्षों से किराए पर रहकर दुखी हो चुके लोग नीतिश्री के फ्लैट्स की योजना को लेकर बेहद खुश हुए थे। उन्हें लगता था कि अब उनका अपना घर होगा, जो उनके अपने नाम पर होगा और उन्हें वो हर सुख सुविधा मिलेगी, जिसकी वे वर्षों से आस लगाए बैठे थे। आज ठीक 18 साल बाद वही लोग अब भी उसी दुख में है कि उनका एक अपना आशियाना होगा। अंतर इतना है कि 18 साल में उनकी मेहनत की कमाई या रिटायरमैंट का पैसा खुर्द-बुर्द हो चुका है और अब उन्हें सिर्फ और सिर्फ सरकार और कानून व्यवस्था पर ही एक आस बची है। नीतिश्री जोकि अब शौर्या ग्रीन्स के नाम से जाना जाता है, में करोड़ों रुपए लोग इन्वैस्ट कर चुके हैं, कुछ ने तो इन्वैस्टमैंट के हिसाब से पैसे लगाए थे, लेकिन कुछ ऐसे भी थे, जो अपनी एक छत मिलने की सोच के साथ यहां पैसा लगाने आए थे।



आज तक एक भी रजिस्ट्री नहीं हुई
शौर्या ग्रीन्स में 2005 में शुरू हुए प्रोजैक्ट के तहत आज तक लोगों के नाम पर फ्लैट्स की रजिस्ट्री नहीं हुई है। सिर्फ एक अलाटमैंट पत्र के नाम पर ही उनकी मलकीयत है, जबकि लोग अपना लाखों रुपए का धन कंपनी को दे चुके हैं। 18 साल बाद भी शौर्या ग्रीन्स के फ्लैट्स में रहने वाले लोगों की रजिस्ट्रियां नहीं हो रही हैं, जिसके पीछे सीधे तौर पर बिल्डर कंपनी जिम्मेदार है। इस संबंध में यहां के रहने वाले लोगों ने प्रशासन के सामने भी गुहार लगानी शुरू की है। लोगों को आशंका है कि उनकी मेहनत की कमाई अब खुर्द-बुर्द हो चुकी है और लोगों ने अब विजीलैंस के साथ-साथ स्थानीय निकाय सरकारों तक भी आवाज उठाई है।

तय समय में नहीं तैयार हुए फ्लैट्स
वर्ष 2005 में जालंधर इंप्रूवमैंट ट्रस्ट ने नीतिश्री (अब शौर्या ग्रीन्स) के साथ समझौता हस्ताक्षर किया था और 2007 तक कंपनी ने 10 टावर तैयार करके देने थे। दो साल में काम पूरा नहीं हुआ तो 2009 तक के लिए एक्सटैंशन दे दी गई। लेकिन इसके साथ ही पनैल्टी का भी प्रावधान रखा गया। 2011 तक कंपनी की तरफ से टावर कंपलीट न किए जाने पर ट्रस्ट ने करीब 1.25 करोड़ प्रति वर्ष पनैल्टी लगाई। 2009 से 2011 तक की इस पनैल्टी का भुगतान भी नहीं किया गया। इस बीच 2008 में कंपनी ने रिव्यू प्लान जमा करवाया, जिसमें 5 नए टावर बनाने के लिए आवेदन किया गया। ट्रस्ट की तरफ से इस प्लान को पास कर दिया गया और इसके बदले में 4.85 करोड़ रुपए फीस जमा करवाने को कहा गया। शुरूआत में इस राशि का 25 प्रतिशत का भुगतान किया जाना था, बाकी 6 महीने के अंतराल के बाद भुगतान प्रतिशत भुगतान होना था, लेकिन ट्रस्ट को समय पर भुगतान नहीं हुआ।

जो दावा किया गया, कुछ भी पूरा नहीं हुआ
इस संबंध में ब्रिगेडियर कैलाश चंद का कहना है कि उन्होंने बड़ी उम्मीद के साथ इस जगह को रहने के लिए पसंद किया था। बड़े चाव से रिटायरमैंट का पैसा इन्वैस्ट भी किया ताकि बुढ़ापा सुकून से निकल सके, लेकिन यह नसीब नहीं हुआ। कंपनी ने जब बुकिंग की तो जो विज्ञापन दिखाए गए, उसमें से कुछ भी जमीनी स्तर पर नहीं हुआ। 7 स्टार सुविधाओं वाला क्लब बनाने की बात कही गई, लेकिन कुछ नहीं बना। जिससे यह बात साफ हो गई है कि यहां पर पैसा लगाने वालों के साथ धोखा हुआ है। शौर्या ग्रीन में एंट्री से लेकर एग्जिट तक सब जगह समस्याएं ही समस्याएं हैं।

सुविधा के अलावा सांप, चूहे, कुत्ते सब कुछ उपलब्ध
शौर्या ग्रीन्स में 2 साल पहले आए अनोख सिंह को यहां से शिफ्ट होने से पहले यहां की असलियत नहीं पता थी। उनका कहना है कि सोसाइटी में सांप, चूहे, कुत्ते इन सबके अलावा कुछ नहीं है। सुविधाओं के नाम पर परेशानी मिलती है। सोसाइटी के प्रबंधकों को एक काम के लिए बार-बार फोन करना पड़ता है, कभी पानी बंद तो कभी कुछ। बार-बार कहने पर भी काम नहीं होते। कुल मिलाकर मुझे लगता है कि मैंने 2 साल पहले यहां आकर गलती कर ली।  

कंस्ट्रक्शन की हालत देख तो कारीगर भी हंसने लगे
पूर्व आर्मी अधिकारी कर्नल (रिटा.) सुजिंद्र सिंह होरा का कहना है कि कुछ साल पहले बड़ी उम्मीद के साथ जिंदगी भर की कमाई यहां लगाई थी कि अपनी रिटायरमैंट के बाद की लाइफ सुकून से गुजारेंगे। जब फ्लैट में प्रवेश किया, कारपेंटर लगाए तो वे लोग भी हंसने लगे की आप कहां फंस गए। कंस्ट्रक्शन की हालत बेहद खराब थी। इसके बाद कई अन्य तरह की समस्याओं का सामना यहां आकर करना पड़ रहा है, जिस सुकून की तलाश में यहां आए थे, वो तो गायब ही हो गया।
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Vatika

Related News